फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

ये पूछने का हक़ हर भारतीय मुसलमान को है !


Omar Abdullah
[इन.कॉम से साभार ]
जब भी कोई हिन्दुस्तानी सच कहने की हिम्मत दिखाता है उसे सबकी आलोचना का शिकार होना पड़ता है .आखिर क्यों ? जम्मू  -कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री ने २४ कैरेट  शुद्ध  सवाल पूछा है -क्या भारत में तब भी ऐसी ही मूक प्रतिक्रिया होती यदि j &k  विधानसभा ''अफजल गुरु ''की फांसी की सजा पर दया हेतु फिर से विचार हेतु प्रस्ताव पारित करती .उनका कहना सौ फीसदी सच है .आज तमिलनाडु की सरकार ने श्री राजीव गाँधी हत्याकांड के तीन दोषियों की फांसी की सजा पर दया के आधार पर पुनर्विचार का प्रस्ताव  पारित कर जिस परम्परा का बीजारोपण किया है अगर उमर अब्दुल्लाह जी इसे आगे बढ़ाते हैं तो उसमे गलत क्या है ?केवल ये न कि राजीव जी  एक पार्टी विशेष के थे -इससे आगे हमारे राजनीतिज्ञ और उनके चेले  कुछ सोच नहीं पाते .इसलिए उनके हत्यारों को  सजा मिले या न मिले किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता पर ''अफजल गुरु ''का नाम आते ही इन सभी के खून में उबाल आ जाता है  .इस मुद्दे को सियासी रंग में रंग दिया जाता है .देश की अस्मिता पर हमले का नाम देकर भावनाओं को भड़काया जाता है .यदि वे तीन तमिल हमारे पूर्व प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या करके भी दया के हक़दार हैं तो अफजल गुरु क्यों नहीं ? मेरा मानना है कि सभी हत्यारों को जितनी जल्दी हो फांसी पर  लटका दिया जाना चाहिए .सभी हत्यारों को सजा मिलने में जब भी देर हो हमारी प्रतिक्रिया एक समान होनी चाहिए .तभी हम कह सकते हैं -हम केवल हिन्दुस्तानी है -हिन्दू या मुसलमान नहीं .वरना उमर जी जैसा सवाल करने का हक तो हर हिन्दुस्तानी मुसलमान को है ही .
            
                       शिखा कौशिक

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

यादें-बाबा जी की

यादें-बाबा जी की
पिता की मृत्यु के पश्चात् जो बालक जन्म लेता है उसकी व्यथा को शायद वो या उसके जैसी परिस्थिति  से गुजरने वाला बालक ही समझ सकता है.आज मैं उस बालक की  मनोस्थिति को कुछ कुछ  समझने का प्रयास करती हूँ तो मुझे अपने बाबा जी से एकाएक 
सहानूभूति  हो आती है .हमारे  पड़बाबा  जी   की अट्ठारह  वर्ष की अल्प आयु में मृत्यु के छः माह पश्चात् हमारे बाबा जी  का जन्म हुआ .संयुक्त परिवार में ऐसा बालक दया का अधिकारी तो हो जाता है पर पिता का स्नेह उसे कोई नहीं दे सकता .यही कारण था कि वे अपनी माता जी  के बहुत निकट रहे और उनकी मृत्यु होने पर अस्थियों को काफी समय बाद गंगा में प्रवाहित किया .एक अमीन के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई पर हमारे लिए तो वे केवल बाबा जी थे .जब तक जीवित रहे तब तक हमने कभी उन्हें लड़का-लड़की में भेद करते नहीं देखा . किसी भी प्रतियोगिता में यदि हम इनाम पाते तो उन्हें अत्यधिक हर्ष होता  .एक बुजुर्ग का साया प्रभु की कितनी बड़ी नेमत होती है -वे ही जान सकते है जिन्हें ये नसीब होता है .हमें ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिए हम प्रभु के आभारी हैं .रोजमर्रा की बातों में ही उन्होंने हमारे अन्दर संस्कारों के बीज बो दिए .आज हमारे बाबा जी का जन्मदिन है -मैं अपने समस्त परिवार की ओर से प्रभु से कामना करती हूँ की वे उनकी आत्मा को शांति दें व् हमें ऐसी सद्बुद्धि दें कि हम उनके दिखाए आदर्श  पथ से कभी न भटकें .