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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्वेता के साथ -सच का 'हाथ'



Shweta Bhatt, the wife of suspended IPS officer Sanjiv Bhatt. File Photo.

 कॉंग्रेस ने गुजरात के निलंबित आई.पी.एस.अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट को मणिनगर सीट पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उतारकर अपने विरोधियों का मुहं बंद कर दिया है . गुजरात दंगों का सच सामने लाने वाले बहादुर एवं ईमानदार अधिकारी संजीव भट्ट के परिवार को जो ज्यादती झेलनी पड़ी है -उसका जवाब जनता नरेंद्र मोदी को हराकर दे सकती है .जो लोग ''वन्दे मातरम'' का उद्घोष करते हुए एवं ''राष्ट्रीय ध्वज '' लहराते हुए दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरुद्ध सीना तानकर खड़े थे और भ्रष्टाचार के लिए एकमात्र जिम्मेदार 'कॉंग्रेस 'को ठहराने की जिद पर अड़े थे क्या आज गुजरात में जाकर श्वेता के साथ  खड़े हो सकेंगें ?क्या वे भ्रष्टाचार से भी ज्यादा गंभीर मुद्दे साम्प्रदायिकता के खिलाफ श्वेता के कदम से कदम मिलाकर नरेन्द्र मोदी को हराने की मुहीम में शामिल होंगें ?पिछले दस साल से गुजरात में लोकतंत्र की धज्जिया उड़ाते इस तानाशाह के खिलाफ खड़े होने का साहस करने वाली श्वेता ने 'नेता के रूप में' मोदी से अपने को कमतर आंकते हुए कहा है की -''हालाँकि मैं मानती हूँ की मेरा और मोदी का मुकाबला बराबरी का नहीं है ''  लेकिन इस सन्दर्भ में ये उल्लेखनीय है की श्वेता और मोदी का मुकाबला बराबरी का हो ही नहीं सकता क्योंकि सच और झ्हूठ का कोई मुकाबला होता ही नहीं .गुजरात दंगों के मुख्य दोषी नरेंद्र मोदी को भले ही किसी अदालत द्वारा सजा न सुनाई गयी हो क्योंकि उनके आतंक के चलते   एक एफ.आई.आर.तक उनके खिलाफ किसी थाने   में दर्ज न हो सकी किन्तु बहादुर व् ईमानदार अधिकारी संजीव भट्ट ने उनके आतंक के आगे घुटने नहीं टेके .फिर भट्ट परिवार के सच और मोदी के झूठ  का मुकाबला कैसे हो सकता है ?श्वेता जिस सच का हाथ थामकर मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी हैं उस सच का ओहदा मोदी के झूठ और षड्यंत्रों से कहीं ऊँचा है .नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी को समझ लेना चाहिए की श्वेता का उनके खिलाफ खड़ा होना ''सत्यमेव जयते ''की एक शुरुआत भर है .ये सिलसिला अब दूर तक जारी रहेगा .गुजरात के प्रत्येक नागरिक से श्वेता जैसे बहादुर -ईमानदार उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की अपील करते हुए मैं यही कहूँगी -
''आतंक के आगे घुटने मत टेको !
जिंदगी को मौत बनने से रोको !
हर हालत को सह  जाना  हौसला नहीं !
एक बार खिलाफत करके भी देखो !!
                                     शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 21 नवंबर 2012

ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

India No 1 in road accident deaths

India No 1 in road accident deaths

 

 एक चूक जाती है जिंदगी निगल
ध्यान से तू चल भैया  ध्यान से तू चल !

 हो  सवारी पर या  हो  पैदल
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 पीकर शराब कभी वाहन न चलाना ,
तय रफ़्तार से तेज न भगाना ,
सीट बैल्ट बांधकर चलाना तू कार ,
हैलमेट पहन कर हो बाइक पर सवार ,
अब तक ना संभला तो अब तो संभल  !
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 पैदल चलने वाले जरा हो जा होशियार ,
लाल बत्ती पर कर सड़क को पार ,
हैड फोन लगाकर सड़क पर ना चलना
रेल की पटरी को खेल ना समझना ,
मोबाइल साइलेंट कर के निकल !
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 शिखा कौशिक 'नूतन ''

 

 

 

सोमवार, 19 नवंबर 2012

मात गंगे हमें क्षमा करो !


युग युग से हम सभी के पापों को धोती माता गंगा आज स्वयं प्रदूषण  के गंभीर संकट से जूझ  रही हैं .हम कितनी कृतघ्न संतान हैं ?हमने माता को ही मैला कर डाला .हे माता हमें क्षमा करें -

 

मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !


 तुम ब्रह्मलोक  से आई तुमने जन जन संताप हरे ,
हे पतित पावनी तुमने हम सबके पाप हरे ,
और हमने कर डाला दूषित तेरा ही जल !


 तेरे अमृत जल से हरियाई भूमि ,
संत लगाते तेरे तट पर नित दिन धूनी ,
हे कल्याणी बदले में कर डाला हमने छल !


 मंदमति संतान हैं हम ;माँ सद्बुद्धि  दो ,
करें शीघ्र प्रयास जल की शुद्धि हो ,
मल व् मैल से मुक्त जल हो जाये निर्मल !  


मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !







                                                                       सन्दर्भ
                                               

 [साभार -http://hi.wikipedia.org/s/1y4f ]
एक अनुमान के अनुसार हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली नदी में बीस लाख लोग रोजाना धार्मिक स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि यह नदी भगवान विष्णु के कमल चरणों से (वैष्णवों की मान्यता) अथवा शिव की जटाओं से (शैवों की मान्यता) बहती है. इस नदी के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व की तुलना प्राचीन मिस्र वासियों के लिए नील नदी के महत्त्व से की जा सकती है. जबकि गंगा को पवित्र माना जाता है, वहीं पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित इसकी कुछ समस्याएं भी हैं। यह रासायनिक कचरे, नाली के पानी और मानव व पशुओं की लाशों के अवशेषों से भरी हुई है, और गंदे पानी में सीधे नहाने से (उदाहरण के लिए बिल्हारज़ियासिस संक्रमण) अथवा इसका जल पीने से (फेकल-मौखिक मार्ग से) स्वास्थ्य संबंधी बड़े खतरे हैं।
लोगों की बड़ी आबादी के नदी में स्नान करने तथा जीवाणुभोजियों के संयोजन ने प्रत्यक्ष रूप से एक आत्म शुद्धिकरण का प्रभाव उत्पन्न किया है, जिसमें पेचिश और हैजा जैसे रोगों के जलप्रसारित जीवाणु मारे जाते हैं और बड़े पैमाने पर महामारी फैलने से बच जाती है. नदी में जल में घुली हुई ऑक्सीजन को प्रतिधारण करने की असामान्य क्षमता है.[1


प्रदूषण

1981 में अध्ययनों से पता चला कि वाराणसी से ऊर्ध्वाधर प्रवाह में, नदी के साथ-साथ प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक में जैवरासायनिक ऑक्सीजन की मांग तथा मल कोलिफोर्म गणना कम थी. पटना में गंगा के दाहिने तट से लिए गए नमूनों के 1983 में किए गए अध्ययन पुष्टि करते हैं कि एशरिकिआ कोली (escherichia coli) (ई. कोलि (E.Coli)), फीकल स्ट्रेप्टोकोकाई (Fecal streptococci) और विब्रियो कोलेरी (vibrio cholerae) जीव सोन तथा गंडक नदियों, उसी क्षेत्र में खुदे हुए कुओं और नलकूपों से लिेए गए पानी की अपेक्षा गंगा के पानी में दो से तीन गुना तेजी से मर जाते हैं.[2]
तथापि हाल ही में[कब?] इस की पहचान दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक के रूप में की गई है. यूईसीपीसीबी (UECPCB) अध्ययन के अनुसार, जबकि पानी में मौजूद कोलिफोर्म (coliform) का स्तर पीने के प्रयोजन के लिए 50 से नीचे, नहाने के लिए 500 से नीचे तथा कृषि उपयोग के लिए 5000 से कम होना चाहिए- हरिद्वार में गंगा में कोलिफोर्म का वर्तमान स्तर 5500 पहुंच चुका है।
कोलिफोर्म (coliform), घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन के स्तर के आधार पर, अध्ययन ने पानी को ए, बी, सी और डी श्रेणियों में विभाजित किया है. जबकि श्रेणी ए पीने के लिए, बी नहाने के लिए, सी कृषि के लिए और डी अत्यधिक प्रदूषण स्तर के लिए उपयुक्त माना गया.
चूंकि हरिद्वार में गंगा जल में 5000 से अधिक कोलिफोर्म (coliform) है और यहां तक कि जल में घुली हुई ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन का स्तर निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है, इसे श्रेणी डी में रखा गया है.
अध्ययन के अनुसार, गंगा में कोलिफोर्म (coliform) के उच्च स्तर का मुख्य कारण इसके गौमुख में शुरुआती बिंदु से इसके ऋषिकेश के माध्यम से हरिद्वार पहुँचने तक मानव मल, मूत्र और मलजल का नदी में सीधा निपटान है.
हरिद्वार तक इसके मार्ग में पड़ने वाले लगभग 12 नगरपालिका कस्बों के नालों से लगभग आठ करोड़ नब्बे लाख लिटर मलजल प्रतिदिन गंगा में गिरता है. नदी में गिरने वाले मलजल की मात्रा तब अधिक बढ़ जाती है जब मई और अक्तूबर के बीच लगभग 15 लाख(1.5 मिलियन) लोग चारधाम यात्रा पर प्रति वर्ष राज्य में आते हैं।
मलजल निपटान के अतिरिक्त, भस्मक के अभाव में हरिद्वार में अधजले मानव शरीर तथा श्रीनगर के बेस अस्पताल से हानिकारक चिकित्सकीय अपशिष्ट भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में योगदान दे रहे हैं।
इस का परिणाम यह है कि भारत के सबसे मूल्यवान संसाधनों में से एक की क्रमिक हत्या को रही है. गंगा की मुख्य सहायक नदी, यमुना नदी का एक खंड कम से कम एक दशक तक जलीय जीव विहीन रहा है।
भारत के सबसे पावन नगर वाराणसी में कोलिफोर्म (coliform) जीवाणु गणना संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्थापित सुरक्षित मानक से कम से कम 3000 गुना अधिक है. कोलिफोर्म (coliform) छड़ के आकार के जीवाणु हैं जो सामान्य रूप से मानव और पशुओं की आंतों में पाए जाते हैं और भोजन या जलापूर्ति में पाए जाने पर एक गंभीर संदूषक बन जाते हैं।

पर्यावरण जीवविज्ञान प्रयोगशाला, प्राणीविज्ञान विभाग, पटना विश्वविद्यालय द्वारा एक अध्ययन में वाराणसी शहर में गंगा नदी में पारे की उपस्थिति देखी गई. अध्ययन के अनुसार, नदी के पानी में पारे की वार्षिक सघनता 0.00023 पीपीएम थी. सघनता की सीमा एनटी (NT) (नहीं पाया गया) से 0.00191 पीपीएम तक थी।
1986-1992 के दौरान भारतीय विषाक्तता अनुसंधान केंद्र (ITRC), लखनऊ द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि ऋषिकेश, इलाहाबाद जिला और दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के जल में पारे की वार्षिक सघनता क्रमशः 0.081, 0.043, तथा 0.012 और पीपीबी (ppb) थी।
वाराणसी में गंगा नदी, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पीने के पानी के लिए निर्धारित अधिकतम अनुमेय स्तर 0.001 पीपीएम से कम ही था।[3]
दिसंबर 2009 में, गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक £ 6000 लाख ($1 अरब) उधार देने पर सहमत हुआ था.यह धन भारत सरकार की 2020 तक गंगा में अनुपचारित अपशिष्ट के निर्वहन का अंत करने की पहल का हिस्सा है. इससे पहले 1989 तक इसके पानी को पीने योग्य बनाने सहित, नदी को साफ करने के प्रयास विफल रहे थे

गंगा कार्य योजना

नदी में प्रदूषण भार को कम करने के लिए 1985 में श्री राजीव गांधी द्वारा गंगा कार्य योजना या गैप (GAP) का शुभारंभ किया गया था. कार्यक्रम खूब धूमधाम के साथ शुरू किया गया था, लेकिन यह 15 वर्ष की अवधि में 901.71 करोड़ (लगभग 1010) रुपये व्यय करने के बाद नदी में प्रदूषण का स्तर कम करने में विफल रहा. http://www.cag.gov.in/reports/scientific/2000_book2/gangaactionplan.htm[5]
1985 में शुरू किए गए जीएपी चरण 1 की गतिविधियों को 31 मार्च 2000 को बंद घोषित कर दिया गया. राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की परिचालन समिति ने गैप (GAP) की प्रगति और गैप (GAP) चरण 1 से से सीखे गए सबकों तथा प्राप्त अनुभवों के आधार पर आवश्यक सुधारों की समीक्षा की; इस योजना के अंतर्गत 2.00 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं. दस लाख लीटर मलजल को रोकने, हटाने और उपचारित करने का लक्ष्य है।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह ' दिल में रख लेना याद मेरी ,



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[पाकिस्तान के लाहौर में हाफिज सईद के नेतृत्व वाले जमात उद दावा और दूसरे कट्टरपंथी संगठनों के दबाव के आगे झुकते हुए लाहौर जिला प्रशासन ने अपने ही एक चौक शामदन चौक का नाम शहीद भगत सिंह के नाम पर रखने की योजना ठंडे बस्ते में डाल दी है । इससे शहीद के परिजन क्षुब्ध है। 

गुरुवार को होशियारपुर के कचहरी चौक पर स्थित अपने निवास पर शहीद भगत सिंह की भतीजी भूपिंदर कौर व नाती एडवोकेट सुखविंदर जीत सिंह संघा ने कहा कि शहीद किसी भी जाति व धर्म से ऊंचा स्थान रखते हैं, ऐसे में लाहौर के शामदन चौक जिसे सिटी सेंटर चौक के नाम से भी जाना जाता है, का नाम स्वयं लाहौर के जिला प्रशासन ने ही 31 अगस्त को शहीद-ए-आजम भगत सिंह रख, वहां पर उनकी मूर्ति व उनकी लिखी कविता को पत्थर पर उकेर कर लगाने की बात कह पूरे संसार में एक सदभावना के तौर पर मिसाल कायम की थी। अब कट्टरपंथियों के आगे जिस तरह लाहौर जिला प्रशासन व वहां की सरकार अपने वायदे से मुकर रही है, उससे शहीद के परिजनों को ठेस पहुंची है।

लाहौर के सौंदर्यीकरण के लिए बनाए गए समिति दिलकश लाहौर के सदस्य एजाज अनवर ने कहा कि चौक का नाम बदलने का फैसला कुछ समय के लिए टाल दिया गया है। भुपिंदर कौर व सुखविंदरजीत सिंह ने प्रधानमंत्री से अपील की कि वह इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चयोग से बात कर इस मामले का हल करें।]
इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता  है .शहीद  -ए-आज़म  के नाम  पर  एक  चौराहे  के नाम रखने तक में पाकिस्तान  में आपत्ति  की जा  रही है .जिस युवक ने   देश की आज़ादी के खातिर प्राणों का उत्सर्ग करने तक में देर  नहीं की उसके  नाम पर एक चौराहे का नाम रखने तक में इतनी देर ....क्या  कहती  होगी  शहीद भगत  सिंह  की आत्मा ?यही  लिखने का प्रयास किया है -

आज़ादी  की खातिर हँसकर फाँसी को गले लगाया था ,
हिन्दुस्तानी  होने का बस अपना फ़र्ज़ निभाया था .

तब नहीं बँटा था मुल्क मेरा  भारत -पाकिस्तान में ,
थी दिल्ली की गलियां अपनी ; अपना लाहौर चौराहा था .

पंजाब-सिंध में फर्क कहाँ ?आज़ादी का था हमें जूनून ,
अंग्रेजी  अत्याचारों से कब पीछे कदम हटाया था ?

आज़ाद मुल्क हो हम सबका; क्या ढाका,दिल्ली,रावलपिंडी !
इस मुल्क के हिस्से होंगे तीन ,कब सोच के खून बहाया था !

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह ' दिल में रख लेना याद मेरी ,
'रंग दे बसंती ' जिसने अपना चोला कहकर रंगवाया था .

बांटी तुमने नदियाँ -ज़मीन  ,मुझको हरगिज़ न देना बाँट  ,
कुछ शर्म  करो खुद पर बन्दों ! बस इतना  कहने आया  था !!!

जय  हिन्द !
शिखा  कौशिक  'नूतन '