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शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

संत काव्य में वैकल्पिक समाज की परिकल्पना (बाबा फरीद, गुरू नानक व कबीर दास के विशेष सन्दर्भ में)

                                                                         शोध-पत्र
संत काव्य में वैकल्पिक समाज की परिकल्पना (बाबा फरीद, गुरू नानक व कबीर दास के विशेष सन्दर्भ में) -       
                                                                                     डॉ शिखा कौशिक 
                                                                                            कांधला [शामली ]


हिंदी साहित्य के इतिहास का विद्वानों ने दीर्घ कालावधि के आधार पर व् तत्कालीन चित्तवृत्तियों का आश्रय लेकर काल-विभाजन  व् नामकरण किया है | डॉ जयकिशन प्रसाद के अनुसार - '' चौदहवीं शताब्दी से जिस भक्ति साहित्य का सृजन प्रारम्भ हुआ , उसमें ऐसे महान साहित्य की  रचना हुई , जो भारतीय इतिहास में अपने ढंग का निराला साहित्य है |''[ हिंदी दिग्दर्शन : हिंदी साहित्य का इतिहास ,प्रकाशक : जगदीश पब्लिकेशन ,आगरा -३ , पृष्ठ-५६ ] अपने ढंग के निराले इस साहित्य की धारा को ' भक्तिकाल ' के नाम से जाना जाता है | भक्तिकाल को दो धाराओं में विभक्त किया गया है - निर्गुण व् सगुण | निर्गुण काव्यधारा के अंतर्गत संत काव्य व् सूफी काव्य और सगुण काव्यधारा के अंतर्गत राम काव्य व् कृष्ण  काव्य को रखा गया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निर्गुण काव्यधारा को ' निर्गुण ज्ञानाश्रयी ' काव्यधारा के नाम से अभिहित किया है तो प्रसिद्द आलोचक आचार्य हजारी प्रसाद द्वेदी ने इसे ' निर्गुण भक्ति-साहित्य ' का नाम दिया | डॉ रामकुमार वर्मा द्वारा किया गया इसका नामकरण ' संत-काव्य ' ही आज सर्वाधिक प्रसिद्द है | डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार -' उत्तर भारत में मुसलमानी प्रभाव की प्रतिक्रिया के रूप में निराकार और अमूर्त ईश्वर की भक्ति का जो रूप स्थिर हुआ ; वही साहित्य  के क्षेत्र  में संत-काव्य कहलाया |'[ हिंदी.: हिंदी साहित्य का इतिहास , प्रकाशक : जगदीश पब्लिकेशन ,आगरा-३ , पृष्ठ -५६ ]
                     अनेक विद्वानों ने संत काव्य का आरम्भ बारहवीं शताब्दी से माना है | कुछ विद्वानों का मत है कि संत परम्परा का सर्वप्रथम पथ-प्रदर्शन भक्त कवि जयदेव ने किया था और उनके पश्चात् यह काव्यधारा निरंतरता के साथ अक्षुण्ण गति से प्रवाहित हुई | सोलहवीं शताब्दी तक आते-आते इस काव्यधारा में नामदेव , रामानंद , कबीर , पीपा , रैदास आदि संत कवियों के नाम जुड़ते गए | इसमें अन्य महत्वपूर्ण नाम हैं- गुरु नानक , दादू , सुन्दरदास , मलूकदास ,बुल्ला साहब व् बाबा फरीद आदि |

संत काव्य की सामाजिक पृष्ठभूमि एवं वैकल्पिक समाज की परिकल्पना
संत- काव्य की पृष्ठ्भूमि पर दृष्टिपात करें तो समाज जाति-पाँति के भेदभाव , सामंती संस्कृति , साम्प्रदायिकता आदि विषम सामाजिक परिस्थितियों से युक्त  था। पाश्चात्य विद्वान बर्नियर  ने तत्कालीन समाज  की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए लिखा है - ' हिन्दुओं के पास धन संचित करने के कोई साधन नहीं रह गए थे। अभावों और आजीविका के लिए निरंतर संघर्ष में जीवन बिताना पड़ता था।  प्रजा के रहन-सहन का स्तर निम्न कोटि का था। करों का सारा भार उन्हीं पर था।  राज्य पद उनको  अप्राप्य थे।  राज्य शक्ति पक्षपात पूर्ण थी।  हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ।  बाल-विवाह का प्रचलन हुआ।  मुसलमान हिन्दू स्त्रियों को हराम में रखते थे। ''
                       इसके अतिरिक्त समाज शासक व् शासित के आधार पर दो वर्गों में बंटा हुआ था , जिसमें शासक- वर्ग के बादशाह , राजा , अमीर , सामंत, सेठ -साहूकार धनाढ्य थे व् विलासी जीवन व्यतीत करते थे। शासितों पर अन्याय  व् अत्याचार करते  थे जबकि  शासित वर्ग अभावों से युक्त जीवन व्यतीत करने के लिए विवश था।भ्रष्टाचार चरम पर  था।  राज्य-कर्मचारियों द्वारा दुकानदारों से सामान बिना मूल्य चुकाए ; अपने पद  का दुरूपयोग  करते  हुए हड़प लिया जाता था।  किसान  के पास खेती करने  के लिए उचित साधन  न थे  , व्यापारी को व्यापार में हानि उठानी पड़ती थी , कामगारों  के लिए काम न था। वर्ग विशेष को छोड़कर पूरा समाज अभावों , असुविधाओं से युक्त जीवन से अभिशापित था।  हिन्दू-समाज के सामने धार्मिक  उन्मादी इस्लामिक संस्कृति भी चुनौती बनकर खड़ी हुई थी , जिससे रक्षा हेतु हिन्दू-समाज अपने सामाजिक बंधनों को दृढ व् संकीर्ण बनाने  के लिए  विवश  हुई और  इसी सामाजिक दुर्दशा के विरुद्ध संत कवियों ने  अपने पूर्ववर्ती  सिद्ध व् नाथपंथी कवियों के स्वरों में स्वर मिलाते हुए आवाज उठाई।
                 जातिगत कठोरता , धर्मगत संकीर्णता , शासकों  द्वारा किये  जा रहे  अत्याचार व् शोषण से त्रस्त जनता को मुक्त कराने हेतु संत कवियों ने एक ऐसे समाज की परिकल्पना  की  , जो तमाम संकीर्णताओं से मुक्त हो , भ्रष्ट आचरण  से मुक्त  हो , जिसमें समाज के सभी जन समान हो , जो समाज धार्मिक-सौहार्द व् मानवीयता की भावना से युक्त हो।  इस सन्दर्भ में हम कबीर दास , गुरु नानक व् बाबा फरीद द्वारा रचित संत-काव्य का अध्ययन कर सकते हैं।
संत-कवियों  द्वारा परिकल्पित वैकल्पिक समाज की मुख्य विशेषताएं-
१- सामाजिक अन्याय से मुक्त समाज -  
सभी संत कवियों ने एक स्वर में शक्तिसम्पन्न वर्ग द्वारा निर्बल वर्ग  के शोषण  का तीव्र विरोध किया और शक्तिशाली वर्ग  को सचेत  भी किया कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब तुम भी उस कमजोर तबके के द्वारा रौंद दिए जाओगे। अतः अन्याय का मार्ग छोड़  कर एक ऐसे समाज का निर्माण करो जिसमेँ अन्याय के लिए कोई स्थान  न हो।
                    पंजाब के महान संतों में  से एक व् पंजाबी के पहले कवि माने जाने वाले बाबा फरीद , जो मुस्लिम होते हुए भी हिन्दुओं द्वारा समान रूप से सम्मानित रहे हैं; का यह दोहा इसी दिशा की ओर संकेत  करता है  -

फरीदा खाकु न निन्दिये , खाकु जेड्ड न कोई ,
जीवदिआ पैरा तले , मुइआ उपरि होइ ||

अर्थात बाबा फरीद कहते हैं कि मिटटी/खाक की बुराई कदापि न करें , क्योंकि उसके जैसा और कोई नहीं है।  जब तक आप जिन्दा रहते हो वह आपके पैरोंतले होती है किन्तु मृत्यु होने पर मिटटी तले दब जाते हो। तात्पर्य यह है  कि तुच्छ समझे जाने  वाले जन पर भी अन्याय व् अत्याचार नहीं करना चाहिए क्योंकि वक्त बदलते देर नहीं लगती है।

२-साधारण धर्म से युक्त समाज -  
इस्लामिक एकेश्वरवाद  व् अनेकों मत-मतान्तरों को संज्ञान   में  लेते हुए संत-कवियों  ने एक ऐसे  समाज की परिकल्पना की जिसमे सभी एक साधारण धर्म का पालन करें। गुरु नानक ने हिन्दू-मुस्लिम के भेद को मिटाते हुए कहा -एक जोत से  सब उपजाया  '' और कबीर गा उठे - मोको कहा ढूंढें रे बन्दे ,मैं तो तेरे पास रे। '' कबीर ने ईश्वर को निर्गुण  कहा तो  गुरु नानक ने निरंकार। वास्तव में एक साधारण धर्म के पालन की परिकल्पना कर संत कवियों ने समाज  को यही सन्देश दिया कि धर्म के नाम पर विद्वेष रखना , संघर्ष करना व्यर्थ है क्योंकि धर्म तो मनुष्य  को एक -दूसरे से जोड़ने का काम करता है न कि दुराग्रहों को बढ़ाने का।

३- बाह्याडम्बरों से मुक्त समाज की परिकल्पना -
संत कवियों ने समाज में फैली हुई कुरीतियों का जमकर विरोध किया। उनहोंने हिन्दू  व् मुसलमानों की आडम्बर युक्त उपासना पद्धितियों को निशाने पर लेते हुए धर्म के मर्म को जानने पर जोर दिया। यथा-
''पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़ ,
ताते यह चाकी भली पीस खाये संसार ||[कबीर  ]
*****************************************
 काकर -पाथर जोरि के मस्जिद लै चिनाये ,

ता चढ़ी मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाई || [ कबीर ]

४-जाति -पाँति के बंधन से मुक्त समाज-
जातिगत आधार पर समाज में व्याप्त भेदभाव व् अन्याय -शोषण ने संत कवियों को व्यक्तिगत  रूप से भी शोषित किया . कबीर  सहित सभी संत कवियों ने जातिगत भेदभाव  को समाज  से जड़ से उखड फेंकने का  प्रयास किये। उन्होंने एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जिसमें जाती व्यक्ति की पहचान न होकर  केवल हरि भक्ति ही मानव की पहचान बने -

''जाति -पाती पूछे नहीं कोय ,हरी को भजे सो हरि का होय '' [ कबीर ]

५-आचरण की पवित्रता से युक्त समाज की परिकल्पना -
कबीर , गुरु नानक , बाबा फरीद सहित सभी संत कवियों  ने आचरण की पवित्रता  से युक्त समाज की परिकल्पना की। कथनी व् करनी की समानता , प्रेम ,सत्य, अहिंसा , सहदयता , मानव मात्र के प्रति सम्मान व् उदारता की भावना , अतिथि-सेवा , सद्गृहस्थ  के गुणों से युक्त आचरण व् सत्य वाचन , मीठी बानी को सामाजिक समरसता हेतु आवश्यक माना। सत्य-भाषण को तो  सर्वश्रेष्ठ तप बतलाते हुए कबीर ने कहा है -
'' साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ,

जाके ह्रदय साँच है , ताके ह्रदय आप ||''
पराये दुख की पीड़ा को समझने वाला संवेदनशील समाज संत कवियों की परिकल्पना  का समाज  था - ''
''कबीर सोइ पीर है जो जाने पर पीर ''
उनका मत था कि जियो और जीने दो।
   निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि संत कवियों ने तत्कालीन  समाज में व्याप्त समस्त विषमताओं , विवशताओं , दुराग्रहों को पहचान कर एक ऐसे वैकल्पिक समाज की परिकल्पना की जो संकीर्णताओं [ धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक  ] से ऊपर उठकर मानव को मानव बनने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। धार्मिक-उन्मादों से मुक्त , समन्वय की भावना से युक्त , जातिगत दुराग्रहों से मुक्त उदारमना समाज ही संत-कवियों की परिकल्पना का वैकल्पिक समाज है जिसके निर्माण की दिशा में अभी भी बहुत कदम आगे बढ़ाने हैं।

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

                                   शोध -पत्र 
  वैवाहिक जीवन में क्रूरता का हिंदी महिला उपन्यासकारों द्वारा चित्रण 
                    [उत्तर-आधुनिककालीन हिंदी महिला उपन्यासकारों के विशेष सन्दर्भ में ]



विषय-प्रवेश -भारतवर्ष में 'भारतीय दंड संहिता ' की धारा '498 -क'में पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता को परिभाषित कर दंडनीय अपराध घोषित किया गया है व  हिन्दू-विवाह अधिनियम के अंतर्गत 'क्रूरता' को [पति -पत्नी के परस्पर व्यवहार में क्रूरता ] विवाह-विच्छेद का एक आधार माना गया है |विधि-विशेषज्ञ डॉ पारस दीवान के अनुसार -''क्रूरता संप्रत्यय प्रत्येक काल में और प्रत्येक समाज में भिन्न-भिन्न रहा है | सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के परिवर्तन के साथ-साथ उसके अर्थ में भी परिवर्तन होते रहे हैं |--------क्रूरता की भारतीय व्याख्या और पश्चिमी व्याख्या में अंतर होना स्वाभाविक है |हमारी सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां वहां से नितांत भिन्न हैं |भारतीय समाज का सबसे विशिष्ट तथ्य है -संयुक्त परिवार -व्यवस्था | अधिकांश युगल आज भी संयुक्त परिवार में रहते हैं |-----अतः क्रूरता के भारतीय व्याख्या अपने ढंग की हो तो आश्चर्य की कुछ बात नहीं है |''1[आधुनिक हिन्दू विधि की रूप रेखा -डॉ पारस दीवान ,इलाहाबाद लॉ एजेंसी पब्लिकेशन ,तीसवां संस्करण:२०१४,पृष्ठ- ११३]
                                                                        उत्तर-आधुनिककालीन हिंदी की महिला उपन्यासकारों ने वैवाहिक जीवन की क्रूरताओं के अनेक चित्र अपने उपन्यासों में उकेरे हैं |वर्तमान में जहाँ भारतीय संयुक्त परिवार टूटकर अणु-परमाणु परिवारों में रूपांतरित हो रहे हैं , वहां वैवाहिक जीवन में क्रूरता के अनेकों वीभत्स रूप नित्य ही संज्ञान में आ रहे हैं |उत्तर-आधुनिककालीन कथा-तत्व में यथार्थ की अभिव्यक्ति प्रमुख रही है और चूंकि वैवाहिक जीवन की क्रूरता पूर्व में भले ही दबे-छिपे रूप में प्रकट होती रही हो पर उत्तर-आधुनिककालीन महिला उपन्यासकारों ने सच्चाई व् गहराई के साथ अपने उपन्यासों में इसे खुलकर निरूपित किया है |

*भारतीय कानून में ' क्रूरता ' की परिभाषा -

-  भारतीय दंड संहिता की धारा 498 -क  के अंतर्गत किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना परिभाषित किया गया है -
*498 -क    - जो कोई , किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए , ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा , वह कारावास से , जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी , दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा | 2  [भारतीय दंड संहिता -रतनलाल तथा धीरजलाल ,पृष्ठ -1541 ,संस्करण -चौंतीसवां ,2016 ]
      इस धारा के अंतर्गत 'क्रूरता ' से तात्पर्य ऐसे व्यवहार से है जिससे उस स्त्री के जीवन को [शारीरिक अथवा मानसिक रूप से ] गंभीर हानि या संकट उत्पन्न होने की सम्भावना हो , उस स्त्री को आत्महत्या के लिए उकसाया गया हो | इसके अतिरिक्त ससुरालवालों द्वारा स्त्री या उसके नातेदारों से संपत्ति अथवा मूल्यवान की मांग करना ,मांग पूरी न होने पर स्त्री को प्रताड़ित आदि भी इस धारा के अंतर्गत 'क्रूरता ' माना गया |
*113 -क - किसी विवाहिता स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के सम्बन्ध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में यह धारा बढ़ा दी गयी | जब प्रश्न यह उपस्थित हो कि किसी विवाहिता स्त्री द्वारा आत्महत्या करना उसके पति या उसके पति के नातेदारों द्वारा दुष्प्रेरित किया गया हो और विवाह हुए सात वर्ष की समय सीमा के अंदर स्त्री ने आत्महत्या की हो तब न्यायालय परिस्थितियों को मद्देनज़र रखते हुए ये उपधारणा कर सकेगा कि स्त्री द्वारा की गयी ऐसी आत्महत्या उसके पति अथवा पति के सम्बन्धियों द्वारा दुष्प्रेरित की गई थी |

-हिन्दू विवाह अधिनियम  में 'क्रूरता ' को 'विवाह-विच्छेद ' का एक आधार माना गया है | यद्यपि हिन्दू विवाह अधिनियम में अभिव्यक्ति 'क्रूरता 'को परिभाषित नहीं किया गया है बल्कि इसे वैवाहिक त्रुटियों के अंतर्गत रखा गया है | ये मानसिक व् शारीरिक दोनों रूप में हो सकती है | '' यदि पति या पत्नी का व्यवहार ऐसा है कि इसमें दूसरे पक्षकार के मन में अपने कल्याण के बारे में यह आशंका उत्पन्न कर देता है तब ऐसा आचरण 'क्रूरता ' की कोटि में आता है | विवाह जैसे संवेदनशील मानवीय संबंधों में , किसी भी व्यक्ति को मामले की सम्भाव्यताओं पर विचार करना होता है | ''3 [आधुनिक हिन्दू विधि की रूपरेखा -डॉ पारस दीवान ,पृष्ठ -113 ]
   स्पष्ट है  कि 'क्रूरता ' का निर्णय वैवाहिक जीवन के पूर्ण मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है | क्रूरता शारीरिक व् मानसिक हो सकती है | ऐसा प्रत्येक मानवीय आचरण या मानवीय व्यवहार जो दूसरे पक्षकार पर प्रतिकूल प्रभाव कारित करता हो -क्रूरता है |
        शारीरिक क्रूरता  के निर्धारण में तो न्यायलय को कोई कठिनाई नहीं आती है किन्तु मानसिक क्रूरता के अंतर्गत निम्न बिंदुओं पर विचार किया जाता है -

*मानसिक क्लेश एवं उत्पीड़न पहुंचाने वाले आचरण की निरंतरता अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत क्रूरता का गठन कर सकते हैं | मानसिक क्रूरता में ऐसी मौखिक रूप से दी गयी गालियां और गन्दी -गन्दी भाषाओं में बेइज्जती सम्मिलित हो सकती है जिससे दूसरे पक्षकार की मानसिक शांति में निरंतर दखल उत्पन्न हो जाता है | 4 [विधि निर्णय एवं सामयिकी 53 एस सी ]

*क्रूरता का निर्धारण करते समय पति -पत्नी के व्यवहार में आये मनोवैज्ञानिक बदलावों , मस्तिष्क में पीड़ा उत्पन्न करने वाले आचरण की गंभीरता का गहन मंथन करना न्यायालय का कार्य है |

*चूंकि वैवाहिक जीवन की नींव सहनशक्ति ,सामंजस्य व् सहयोग -सम्मान जैसे मूल्यों पर टिकी होती है अतः क्रूरता का निर्धारण करते समय न्यायलय दिन प्रतिदिन के सामान्य झगड़ों को इसका आधार नहीं बना सकता है | इस सम्बन्ध में पक्षकारों के शारीरिक व् मानसिक दशाओं ,उनके चरित्र तथा सामाजिक स्थिति को आधार बनाते हुए क्रूरता का निर्णय किया जाता है |

* ' वैवाहिक जीवन में क्रूरता बिना किसी आधार के भी हो सकती है जो गूढ़ या जघन्य हो सकती है | यह शब्दों , हाव -भाव  या मात्र चुप्पी , हिंसात्मक या अहिंसात्मक हो सकती है | 5 [विधि निर्णय एवं सामयिकी ,नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली ,२००६ [40 ] ए आई सी 1 ]

* वैवाहिक -जीवन में क्रूरता व् हिंदी -महिला उपन्यासकारों द्वारा चित्रण -
  क्रूरता की परिभाषा व् उनमें अन्तर्निहित तथ्यों के द्वारा यह स्पष्ट होता है कि वैवाहिक जीवन में 'क्रूरता '' का अध्ययन व् हिंदी -महिला उपन्यासकारों द्वारा उनके चित्रण का  निम्न बिंदुओं के अंतर्गत अनुशीलन किया जा सकता है -

*आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण -
    किसी विवाहिता स्त्री अथवा पुरुष द्वारा पति अथवा पत्नी व् उसके नातेदारों द्वारा उत्पीड़न के कारण आत्महत्या करना  [ स्त्री के सम्बन्ध में दहेज़ प्रथा से सम्बंधित उत्पीड़न विशेष रूप से ] वैवाहिक क्रूरता का सबसे प्रमुख रूप है | प्रसिद्ध महिला उपन्यासकार अलका सरावगी ने अपने उपन्यास ''शेष कादंबरी '' में मुख्य पात्र रूबी दी के माध्यम से ऐसी ही विषम परिस्थिति का चित्रण किया है | सत पीढ़िया शाह परिवार की गोद ली गयी रूबी दी का विवाह साधारण परिवार के सुधीर के साथ होता है | ससुराल वाले लालची हैं और इस कारण रूबी दी का निरंतर उत्पीड़न किया जाता है | ससुरालवालों की प्रताड़ना के कारण रूबी दी शारीरिक व् मानसिक रूप से बीमार हो जाती हैं | उनकी गंभीर अवस्था का चित्रण करते हुए उपन्यासकार लिखती हैं -
''डॉ डेविस जैसे नामी चिकित्सक के मुंह से रूबी के लिए 'सीरियसली इल ' सुनकर सुधीर सचमुच घबरा गए थे | वे जानते थे कि रूबी ने बहुत कुछ सहा है | --------------------- पर डॉ से रूबी के लिए 'हाइली सुसाइडल '-गंभीर रूप से आत्महत्या की प्रवर्ति लिए -सुनकर सुधीर दंग रह गए थे | बात यहाँ तक पहुँच गयी और उन्होंने कभी ध्यान तक नहीं दिया इसकी किसी बात  पर | बेचारी अकेली सहती रही - न जाने क्या-क्या | कुछ कहती भी तो नहीं आजकल | शुरू शुरू में शिकायतें  करती थी , उसे दूध न दिए जाने का किस्सा उन्हें मालूम है | पर शायद उनके रूखेपन के कारण ही अब चुप लगा जाती है | ''[ शेष कादम्बरी -अलका सरावगी ,पृष्ठ -89 -90 ,संस्करण -2004 ,राजकमल प्रकाशन ]
आकड़ों के अनुसार प्रतिदिन इक्कीस महिलाएं अपना जीवन गँवा देती हैं -
                                    ''The National Crime Records Bureau (NCRB) states that in 2015, as many as 7,634 women died in the country due to dowry harassment. Either they were burnt alive or forced to commit suicide over dowry demand.''[ इंडिया टुडे मैगज़ीन ]
 
                                     

*जीवन की मूल आवश्यकताओं से वंचित रखने की क्रूरता - 
पति-पत्नी के बीच जीवन की मूल आवश्यकताओं से वंचित रखने जैसी क्रूरता के दर्शन भी सामान्यतः हो जाते हैं . उत्तर-आधुनिक हिंदी की महिला उपंन्यासकारो ने बहुत सूक्ष्मता के साथ इसका चित्रण किया है . आधुनिक नारी के लिए रोटी-कपड़ा और मकान की साथ-साथ अपने अस्तित्व की पहचान बनाना भी मूल आवश्यकताओं में सम्मिलित है .चित्रा मुद्गल के उपन्यास -' एक ज़मीन अपनी ' की अंकिता और सुधांशु ने प्रेम विवाह किया था . किन्तु '' मुश्किल से तीन साल साथ रह पाये वे ....'' अंकिता द्वारा सुधांशु को उसके गलत आचरण पर टोकने एवं अपने लिए ये कहने पर -'' मैं सिर्फ गृहिणी ही नहीं हूँ.... एक स्त्री भी हूं... जो पढ़ना चाहती हूं पढ़ सकूं.... लिखना चाहती हूं लिख सकूं?.... लो इसी वक्त यह रिश्ता खत्म. 'उसने अपनी कलाइयों की चूड़ियां झन्न से फर्श पर उछाल दी थी.... सुधांशु पगलाए सांड सा टूट पड़ा था उस पर,' रस्साली रंडी... यही तो तेरा असली रूप है... प्रोफेसर बनना चाहती है, तू कभी नहीं बन सकेगी... कभी नहीं... "सुधांशु ने उसकी कविताओं की कॉपी चिथड़े - चिथड़े कर कूड़ेदान में फेंक दी थी. वह फटी - फटी आंखों से उन चिथड़ों को घूरती रही..... सुबह आईने में चेहरा अपना होने से इंकार कर रहा था. दाहिनी आंख सूजकर गूलर हो उठी थी, निचला होंठ कटकर फटे गुब्बारे से फुलाई गई पुटकी सा सुआ आया था. "" (एक जमीन अपनी :चित्रा मुद्गल, पृष्ठ - 15)
शेष कादंबरी उपन्यास में रूबी दी को तो ससुराल में दूध तक पीने के लिए नहीं मिल पाता.


*पर स्त्री -पुरुष से सम्बन्ध रखने रुपी क्रूरता -

पति /पत्नी के रहते दूसरे पुरुष / स्त्री से संबंध बनाने की क्रूरता वास्तव में वैवाहिक जीवन में जहर घोल देती है. मंजुल भगत के उपन्यास 'अनारो' में निम्न आय वर्ग की अनारो का पति नंदलाल स्वयं तो दूसरी स्त्री छबीली को लाकर उसकी छाती पर रख देता है और जब अनारो की बेटी का विवाह होता है तब दामाद भी दूसरी स्त्री के चक्कर में उसकी बेटी का जीवन बर्बाद करने लगता है.
एक जमीन अपनी- का विवाहित सुधीर गुप्ता मॉडल नीता से अंतरंग संबंध बनाता है और बिना विवाह के नीता उसकी बच्ची की मां बनती है. पत्नी के प्रति इससे बढ़कर क्रूरता और क्या हो सकती है!!!
पीली आंधी (प्रभा खेतान) - में पति के सम लैंगिक होने के कारण बच्चे की चाह में पत्नी सोमा सुजीत से संबंध बनाती है जिसके कारण उसका अपना परिवार तो टूटता ही है, सुजीत की पत्नी चित्रा को भी चार साल की बेटी के साथ घर छोड़कर जाना पड़ता है.
चाक - (मैत्रेयी पुष्पा) की सारंग भी पति रंजीत के होते हुए श्री धर मास्टर से संबंध बनाती है.
मीना शर्मा के उपन्यास 'अनाम प्रसंग' में भी विवाहित पुरुष के अन्य स्त्री से संबंध का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है.
गीतांजलि श्री के माई व शशि प्रभा शास्त्री के उपन्यास 'नावें में भी दूसरी स्त्री से विवाहित पुरूष के संबंध का चित्रण कर वैवाहिक जीवन में की जाने वाली क्रूरता को दर्शाया गया है.

*पुत्री -जन्म पर प्रताड़ित करने सम्बन्धी क्रूरता -

पुत्री को जन्म देना भी वैवाहिक जीवन में कटुता उत्पन्न कर देता है. पुत्री को जन्म देने वाली पत्नी - बहू को पति व ससुराल वालों की प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. चौदह फेरे - में पति कर्नल तो पत्नी नन्दी को अपमानित करता ही रहता है ऊपर से नंदी द्वारा पुत्री को जन्म देने पर - 'पंडित के मंत्रों के बीच ही उग्र पितामह की गालियों का क्रम चालू था :शिबिया के पल्ले नहान की परदेशिन पड़ी, अपने कुमाऊं की छोरी होती तो पहलौठी में ही दन्न से बेटा जनती.... इस साली ने खानदान की रीत बिगाड़ दी पहले पहल चेहड़ी, देखता हूं हरवंश का पाठ कराना होगा. "
इनके अलावा संयुक्त परिवार से अलग रहने सम्बन्धी क्रूरता,पति -पत्नी का परस्पर ताना देना  रुपी क्रूरता, द्विविवाह रुपी क्रूरता, सतीत्व पर प्रहार रुपी क्रूरता, बदला लेने की भावना से तंग करने वाली मुकदमेबाज़ी द्वारा क्रूरता करना आदि वैवाहिक जीवन में पति - पत्नी, ससुराल वालों के द्वारा की जाने वाली क्रूरतायें है जिनका उत्तर आधुनिक कालीन महिला उपन्यासकारों ने यथार्थ चित्रण किया है. यद्यपि सामाजिक परिदृश्य अभी निराशा से युक्त है क्योंकि स्त्री बहुत कुछ क्रूरतायें सहते हुए अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने हेतु न तो सक्षम है और न ही चैतन्य. 

शुक्रवार, 19 मई 2017

शोध - विषय - " चुनावी हिंदी - हिंदी भाषा का नवीन स्वरूप" - डॉ शिखा कौशिक

शोध - विषय - " चुनावी हिंदी - हिंदी भाषा का नवीन स्वरूप"      - डॉ शिखा कौशिक

अरस्तू से लेकर आज तक अनेक राजनीतिक विचारकों ने शासन का सञ्चालन करने वाली अनेक प्रणालियों अथवा सरकारों के रूपों के सम्बन्ध में विभिन्न मत प्रस्तुत किये हैं ; जिनमें प्रमुख हैं -
राजतन्त्र , अधिनायक तंत्र या तानाशाही , कुलीनतंत्र , प्रजातंत्र या लोकतंत्र , संसदात्मक शासन प्रणाली , अध्यक्षात्मक शासन-प्रणाली , एकात्मक शासन-प्रणाली , संघात्मक शासन-प्रणाली आदि .
                  इन सभी शासन प्रणालियों में से  आधुनिक युग में प्रजातंत्र  अथवा लोकतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन -प्रणाली माना जाता है . प्रजातंत्र में शासन सत्ता जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में रहती है . इसीलिए प्रजातंत्र में चुनाव का व्यापक महत्व है .प्रजातंत्र में शासन सत्ता की प्राप्ति का एकमात्र साधन चुनाव हैं .चुनाव जीतनें के लिए विभिन्न राजनीतिक दल  अपने कार्यक्रमों एवम नीतियों का प्रचार-प्रसार करके जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं और विजयी होने पर सरकार बनाकर शासन-सत्ता ग्रहण करते हैं . चुनाव ही प्रजातंत्र का आधार होता है .1
                15  अगस्त 1947  को ब्रिटिश शासन की गुलामी से आजाद होने के पश्चात् 26  जनवरी 1950  को भारत  का संविधान पूरे देश में  [जम्मू-  कश्मीर राज्य को छोड़कर  ] लागू किया गया  .,जिसमें भारत को ' लोकतंत्रात्मक संघात्मक गणराज्य ' घोषित किया गया अर्थात भारत  में लोकतंत्र शासन की स्थापना की गयी ,जिसके अन्तर्गत देश का शासन ' जनता का  , जनता के लिए तथा जनता द्वारा किये जाने की घोषणा की गयी .संघात्मक शासन प्रणाली के अन्तर्गत शक्तियों का विभाजन केंद्र व् राज्यों के बीच किया गया ..
       केंद्रीय शासन के अन्तर्गत  भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया . भारत की संसद राष्ट्रपति ,राज्य -सभा तथा लोक-सभा से मिलकर बनती है .राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा राज्य-सभा स्थाई सदन है और प्रधानमंत्री व् उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है जो लोकसभा के गठन के लिए होने वाले चुनावों द्वारा चुनकर आते हैं ; बहुमत दल के चुने हुए सांसद ही अपने में से किसी को प्रधानमंत्री चुनते हैं .
        लोक-सभा के सदस्यों का निर्वाचन वयस्क-मताधिकार [18  वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को मताधिकार है ] के आधार पर राज्य की जनता द्वारा किया जाता है .इसी प्रकार  राज्यों की व्यवस्थापिका राज्यपाल व् द्विसदनीय विधान-मंडल से मिलकर बनती है .जहाँ निचला-सदन विधान सभा व् उच्च सदन विधान परिषद् होती है .विधान-सभा के सदस्यों का निर्वाचन भी वयस्क -मताधिकार के आधार पर किया जाता है .इस प्रकार लोकतंत्र को वास्तविक रूप प्रदान करने का श्रेय चुनावों को ही जाता है ,जिनसे सम्बंधित कार्यों का सञ्चालन चुनाव -आयोग करता है .यह भी हम भारतवासियों के लिए गर्व का विषय है कि  भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है .लोकतंत्र के आधार रूप इन चुनावों अथवा  निर्वाचनों में भारत में राष्ट्र भाषा के पद पर विराजमान हिंदी भाषा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा एक प्राणी अपने भावों व् विचारों को दूसरों तक पहुँचाता है . ''आज भारत में यूँ तो 826  भाषाएँ प्रयुक्त की जाती हैं ,मगर इनमें सर्वोपरि ,सर्वप्रधान और सर्वव्यापक भाषा हिंदी ही है .''2
         कई विरोधों के बावजूद हिंदी के महत्त्व और भारतीय जनता के हिंदी के प्रति लगाव के कारण ही सं १९५० में भारतीय -संविधान [धारा 343 :1 ]में स्पष्टतया स्वीकार किया गया है कि ' संघ की राजभाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी .'' इसी हिंदी भाषा में जनता से संवाद स्थापित कर कितने ही राजनैतिक दलों ने सत्ता का सुख भोगा और कई अहिन्दी राज्यों  में हिंदी का विरोध कर कई राजनैतिक दल सत्तारूढ़ हुए . उदाहरण के लिए तमिलनाडु की राजनीति तो जैसे हिंदी - विरोध के आस - पास ही सिमटकर रही है -

"The Anti-Hindi imposition agitations of Tamil Nadu were a series of agitations that happened in the Indian state of Tamil Nadu (formerly Madras State and part of Madras Presidency) during both pre- and post-Independence periods. The agitations involved several mass protests, riots, student and political movements in Tamil Nadu concerning the official status of Hindi in the state.

The first anti-Hindi imposition agitation was launched in 1937, in opposition to the introduction of compulsory teaching of Hindi in the schools of Madras Presidency by the first Indian National Congress government led by C. Rajagopalachari (Rajaji). This move was immediately opposed by E. V. Ramasamy (Periyar) and the opposition [Justice Party (India)|Justice Party] (later Dravidar Kazhagam). The agitation, which lasted three years, was multifaceted and involved fasts, conferences, marches, picketing and protests. The government responded with a crackdown resulting in the death of two protesters and the arrest of 1,198 persons including women and children. Mandatory Hindi education was later withdrawn by the British Governor of Madras Lord Erskine in February 1940 after the resignation of the Congress Government in 1939.

The adoption of an official language for the Indian Republic was a hotly debated issue during the framing of the Indian Constitution after India's independence from the United Kingdom. After an exhaustive and divisive debate, Hindi was adopted as the official language of India with English continuing as an associate official language for a period of fifteen years, after which Hindi would become the sole official language. The new Constitution came into effect on 26 January 1950. Efforts by the Indian Government to make Hindi the sole official language after 1965 were not acceptable to many non-Hindi Indian states, who wanted the continued use of English. The Dravida Munnetra Kazhagam (DMK), a descendant of Dravidar Kazhagam, led the opposition to Hindi. To
allay their fears, Prime Minister Jawaharlal Nehru enacted the Official Languages Act in 1963 to ensure the continuing use of English beyond 1965. The text of the Act did not satisfy the DMK and increased their skepticism that his assurances might not be honoured by future administrations.

As the day (26 January 1965) of switching over to Hindi as sole official language approached, the anti-Hindi movement gained momentum in Madras State with increased support from college students. On 25 January, a full-scale riot broke out in the southern city of Madurai, sparked off by a minor altercation between agitating students and Congress party members. The riots spread all over Madras State, continued unabated for the next two months, and were marked by acts of violence, arson, looting, police firing and lathi charges. The Congress Government of the Madras State, called in paramilitary forces to quell the agitation; their involvement resulted in the deaths of about seventy persons (by official estimates) including two policemen. To calm the situation, Indian Prime Minister Lal Bahadur Shastri gave assurances that English would continue to be used as the official language as long as the non-Hindi speaking states wanted. The riots subsided after Shastri's assurance, as did the student agitation.

The agitations of 1965 led to major political changes in the state. The DMK won the 1967 assembly election and the Congress Party never managed to recapture power in the state since then. The Official Languages Act was eventually amended in 1967 by the Congress Government headed by Indira Gandhi to guarantee the indefinite use of Hindi and English as official languages. This effectively ensured the current "virtual indefinite policy of bilingualism" of the Indian Republic. There were also two similar (but smaller) agitations in 1968 and 1986 which had varying degrees of success."2
राजनीतिक दल [ जिनके लिए प्रो.मुनरो ने यहाँ तक लिखा है कि -''स्वतंत्र राजनैतिक दल ही प्रजातंत्र का दूसरा नाम हैं .''] चुनावों में हिंदी भाषा का प्रयोग कर उसको क्या स्वरुप प्रदान कर रहे हैं ,ये आज चिंतन का गंभीर मुद्दा है .विभिन्न बिंदुओं के अन्तर्गत हम इसका विश्लेषण व् विवेचन कर सकते हैं -
अ-हिंदी भाषा में चुनाव अथवा निर्वाचन से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावली -
*प्रजातंत्र अथवा लोकतंत्र- जनतंत्र का प्रयोग भी प्रजातंत्र  के लिए किया जाता है   . ' लोकतंत्र अंग्रेजी के डेमोक्रेसी शब्द का हिंदी अनुवाद है . डेमोक्रेसी शब्द यूनानी भाषा के दो  शब्दों से मिलकर बना है -'डेमास' का अर्थ है जनता और 'क्रेसिया ' का अर्थ शासन होता है .इसप्रकार लोकतंत्र का अर्थ जनता का शासन हुआ .''3
*जनमत- जनमत का सामान्य अर्थ है -जनता का मत या विचार .
*चुनाव  अथवा निर्वाचन -प्रजातंत्र में शासन सत्ता  की प्राप्ति  का एकमात्र साधन  चुनाव है .चुनाव से तात्पर्य है -''पद के लिए उम्मीदवारों में से बहुमत के आधार पर चुनना .'' निर्वाचन से भी यही तात्पर्य है-' वोट द्वारा चुनाव करना .''
* निर्वाचन-आयोग- भारत में निर्वाचन संबंधी कार्यों का सञ्चालन निर्वाचन अथवा चुनाव आयोग के द्वारा सम्पादित होता है . केंद्र व् राज्यों के पृथक -पृथक निर्वाचन आयोग होते हैं .
* मतदाता -जिस नागरिक को चुनाव में मत देने का अधिकार प्राप्त हो ,उसे मतदाता कहते है .
*वयस्क-मताधिकार-''वयस्क-मताधिकार का आशय यह है की पागल, दिवालिया व् कुछ विशेष अयोग्यताओं को रखने वाले व्यक्ति को छोड़कर सभी स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त हो .भारत में संसद व् विधान-मंडलों के चुनावों में मताधिकार की आयु 62वें संविधान-संशोधन द्वारा 18वर्ष निश्चित की गयी है .उत्तर-प्रदेश में स्थानीय संस्थाओं के सदस्यों के निर्वाचन के लिए मताधिकार की आयु 18 वर्ष ही है .4
* चुनाव-चिन्ह-प्रत्येक राजनीतिक दल का एक  पंजीकृत चिन्ह  होता है . निर्दलीय उम्मीदवारों को पृथक चुनाव-चिन्ह आवंटित किये जाते हैं.राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में जैसे कांग्रेस का 'हाथ का पंजा' व् भारतीय जनता पार्टी का ' कमल का फूल '' आदि पंजीकृत चुनाव-चिन्ह हैं .
*ई.वी.एम्.-  वर्तमान में मतदान हेतु 'इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ' का प्रयोग किया जाता है ,जिसे संक्षेप में ई.वी.एम्. कहकर संबोधित करते हैं .
*मत-पत्र-  प्रत्येक मतदाता को मतदान हेतु एक ऐसा कागज दिया जाता है जिसमें सभी प्रत्याशियों के चुनाव-चिन्ह व् नाम मुद्रित होते हैं ,इस कागज को ही 'मत-पत्र' कहते हैं .
*मतदान-प्रणाली- प्रजातंत्र में प्रतिनिधियों का निर्वाचन जिस विधि से किया जाता है ,उसे मतदान प्रणाली कहते हैं .भारत में निर्वाचन -आयोग का अध्यक्ष अथवा चुनाव आयुक्त चुनाव संबंधी प्रक्रियाओं का सञ्चालन करता है .'' चुनाव की विभिन्न प्रक्रियाओं का विवरण निम्नवत है -
1-निर्वाचन -क्षेत्रों का निर्धारण- सर्वप्रथम चुनाव-आयोग जनसँख्या के आधार पर प्रतिनिधियों के लिए निर्वाचन -क्षेत्रों का निर्धारण करता है .
2 - मतदाता-सूची का निर्माण - चुनाव आयोग मतदान क्षेत्र के मतदाताओं की सूची का निर्माण कराता है और अंतिम संशोधित सूची को तैयार करवाकर प्रकाशित करवाता है .
3 -चुनाव की घोषणा- चुनाव संबंधी तैयारियां पूरी होने पर सरकार चुनाव संबंधी आवश्यक तिथियों की विधिवत घोषणा कर देती है .इसके साथ नामांकन  -पत्र प्रस्तुत करने , उसकी जाँच करने , नाम वापस लेने आदि की प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं .
4 - प्रत्याशियों का नामांकन- एक निश्चित तिथि तक चुनाव में भाग लेने वाले सभी प्रत्याशी अपना नामांकन-पत्र भर  कर जमा  कर देते हैं .
5 -नामांकन -पत्रों की जाँच - निर्धारित समय में नामांकन पत्रों की चुनाव-आयोग द्वारा जांच कराई जाती है और अशुद्ध व् अपूर्ण नामांकन-पत्रों को रद्द  कर दिया जाता है .
6 -नामांकन-पत्रों की वापसी-निर्धारित तिथि तक चुनाव न लड़ने की इच्छा होने पर प्रत्याशी अपना नामांकन-पत्र वापस ले सकते हैं .
7-चुनाव-चिह्नों का वितरण-जो प्रत्याशी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं , उन्हें चुनाव आयोग चुनाव-चिन्ह वितरित करता है .
8 -मतपत्रों का अथवा ई.वी.एम्.पर प्रकाशन- स्वीकृत नामांकन-पत्रों के आधार पर चुनाव आयोग मत -पत्रों का प्रकाशन करता है .इसमें  प्रत्याशियों के नाम उनके चुनाव-चिन्ह सहित मुद्रित किये जाते हैं .वर्तमान में भारत में अधिकांश चुनाव चूंकि ई.वी.एम्. द्वारा सम्पादित हो रहे  हैं इसलिए चुनाव-आयोग ई.वी.एम्. पर ये सब कार्य प्रदर्शित करता है .
9 -मतदान-केंद्रों की स्थापना- चुनाव-आयोग सम्पूर्ण निर्वाचन क्षेत्र में जनता की सुविधा को ध्यान में रखकर स्थान-स्थान पर विभिन्न मतदान-केंद्रों की स्थापना करता है .
10 -मतदान- निश्चित तिथि को मतदान होता है .जो विभिन्न चरणों में विभक्त किया जाता है .यदि ई.वी.एम्. पर मतदान किया जाता है तो इच्छित  चुनाव-चिन्ह के सामने वाला बटन दबाकर अपना मत दिया जाता है और यदि मत-पत्र द्वारा मतदान किया जाता है तब मत -पत्र पर इच्छित प्रत्याशी के नाम-व् चुनाव चिन्ह के सामने मुहर लगाकर मत-पत्र मतपेटी में डाल  दिया जाता है .
11 -मतगणना  -मतदान के बाद चुनाव-अधिकारियों के संरक्षण में मत-पत्रों अथवा ई.वी.एम्. पर मतों की गणना की जाती है .जो प्रत्याशी सर्वाधिक मत प्राप्त करता है ,उसे विजयी घोषित किया जाता है .5
* राजनीतिक दल-  लोकतान्त्रिक शासन -व्यवस्था में भिन्न-भिन्न सिद्धांतों व् राजनीतिक विचारधारा के आधार पर राष्ट्र-हित में संगठित समूह को  राजनीतिक दल कहते  हैं .प्रो.मुनरो का कथन है कि-''स्वतंत्र राजनीतिक दल ही प्रजातान्त्रिक सरकार का दूसरा नाम है  .''
* विरोधी दल-  सार्वजनिक निर्वाचन  में जो  राजनीतिक दल व्यवस्थापिका में बहुमत प्राप्त करने में असफल रह जाते हैं तथा सरकार में सम्मिलित नहीं होते हैं  ,उन्हें विरोधी -दल की संज्ञा दी जाती है .
*चुनाव घोषणा -पत्र - प्रत्येक  राजनीतिक दल एक चुनाव घोषणा पत्र जारी करता है , जिसमे वह  अपने उद्देश्यों ,नीतियों ,कार्यक्रमों और उपलब्धियों से सामान्य जनता को अवगत कराता  है और जनमत प्राप्त करने का प्रयत्न करता है . चुनाव घोषणा-पत्र राजनीतिक दल के महासचिव अथवा अध्यक्ष द्वारा जारी किया जाता है .
     उपर्युक्त के अतिरिक्त प्रत्याशी,उम्मीदवार ,मुख्यमंत्री  ,प्रधानमंत्री  ,केंद्रीय-सरकार ,राज्य-सरकार, राज्य-विधान मंडल ,संसद, लोक-सभा, राज्य-सभा , विधान-सभा , विधान-परिषद् ,सांसद , विधयक ,चुनाव-परिणाम , बहुमत ,अल्पमत ,गठबंधन ,निर्दलीय आदि हज़ारों शब्द आज भारतीय चुनाव के परिप्रेक्ष्य में अत्यधिक प्रचलन में हैं .निश्चित रूप से चुनावों के माध्यम से हिंदी भाषा की शब्दावली में अनेक नए शब्द जुड़े  व् प्रचलित हुए हैं .

आ-चुनाव और हिंदी का  बढ़ता  शब्द भण्डार  -

यह तो सर्वज्ञात ही है कि  '  भाषा विचार-विनिमय का साधन है. भावों और विचारों की सपाट बयानी के लिए विश्व की प्रत्येक गतिशील  भाषा अन्यान्य भाषाओँ से सुविधानुसार शब्द-समूह ग्रहण करती है .6
शब्द समूह से तात्पर्य ऐसी शक्ति  से होता है ; जो किसी भाषा को समृद्ध बनाता है . हिंदी का शब्द-समूह बहुत विशाल एवं संपन्न है .हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में जहाँ अपभ्रंश का महत्वपूर्ण स्थान है ,वही हिंदी को एक विस्तृत संपत्ति प्रदान करने का श्रेय संस्कृत भाषा और साहित्य को जाता है .इसी प्रकार भारत की राजनैतिक परिस्थितियों के उथल -पुथल के युग ने मध्यकाल में जहाँ मुस्लिम -शासकों की सत्ता  के कारण अरबी -फ़ारसी के शब्दों से हिंदी-शब्द-समूह को समृद्ध कराया , वही आधुनिक काल में पुर्तगाली ,फ्रांसीसी  ,डच ,अंग्रेजी शासन के कारण विदेशी भाषाओँ के हज़ारों शब्द हिंदी में आ मिले .
चुनावी  हिंदी के शब्द-समूह में भी संस्कृत , अरबी-फ़ारसी के शब्दों के बाहुल्य के साथ-साथ अंग्रेजी के शब्दों का बहुत प्रयोग किया जा रहा .चुनावी हिंदी  के प्रमुख रूपों में एक तो हिंदुस्तानी रूप है ;जिसमे अरबी-फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग अधिक किया जाता है और दूसरा रूप जिसमे परिनिष्ठित खड़ी बोली का प्रयोग अधिक  किया जाता है ,इसमें संस्कृत से सीधे हिंदी में आये [तत्सम ] शब्दों का प्रयोग किया जाता है . साथ ही वर्तमान में चुनावी हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों का बढ़ता प्रयोग एक नयी भाषायी समीकरण -हिंदी-+इंग्लिश =हिंग्लिश की ओर संकेत कर रहा है .
चुनावी -हिंदी में प्रयुक्त होने वाले हिंदी के शब्द-समूह का वर्गीकरण दो भागों में किया जा सकता है -
क- भारतीय भाषाओँ के शब्द - चुनावी हिंदी के शब्द -भंडार को सर्वाधिक समृद्ध आर्य-भाषाओँ के शब्दों ने ही बनाया है क्योंकि ये ही हिंदी भाषा की मातृ-समान संरक्षिका भाषा हैं .
भारतीय आर्य भाषाओँ में संस्कृत से मूल  रूप में हिंदी में आये शब्दों का योगदान चुनावी हिंदी में अत्यधिक महत्वपूर्ण है .इन्हें तत्सम शब्द कहा जाता है . ''किसी भाषा के वे शब्द जो मूल रूप में ही दूसरी भाषाओँ  द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं ,तत्सम कहलाते हैं .हिंदी में संस्कृत भाषा से मूल रूप में जो शब्द आये ,उन्हें तत्सम शब्दों की संज्ञा दी गई है .'7
चुनावी हिंदी ,जो राजनैतिक दलों के प्रवक्ताओं ,प्रतिनिधियों  व् मीडिया द्वारा चुनावों के दौरान  प्रयुक्त की जाती है उसमे अनेक तत्सम शब्दों के बहुलता रहती है .उदाहरणार्थ -
* प्रभारी       *सभा   *बाहुबली -विधायक
*आयोग      *चिन्ह   *जन-सेवक
*प्रत्याशी          *अभियान   *जन-प्रतिनिधि
*प्रजा    *शासक   *रणनीति
* प्रचार     *आदर्श आचार संहिता
*प्रतिद्वंदी   *प्रचारक    *मत
*घोषणा-पत्र  *निरीक्षक  *जंगलराज
*मतदानाधिकार   *ध्रुवीकरण  *नेता *नेत्री
विधायक   *संसद   *सांसद   *संघर्ष  *बहुमत   *अल्पमत * खंडित-जनादेश
तत्सम शब्दों के साथ-साथ अर्ध-तत्सम ,तद्भव ,देशज ,संकर ,अनुकरणात्मक ,प्रतिध्वन्यात्मक आदि शब्द भी चुनावी हिंदी शब्द समूह में प्रयोग किये जाते हैं . देशज शब्दों के अन्तर्गत ऐसे शब्द आते हैं ''जो हिंदी में प्रचलित तो हैं  किन्तु उनकी व्युत्पत्ति  का कुछ पता नहीं चलता और देशी बोलियों में मिलते हैं , वे देशज कहलाते हैं .'' चुनावी हिंदी में प्रयुक्त होने वाले शब्द - घपला , भोंपू  ,गड़बड़ ,वोटकटवा आदि ऐसे ही शब्द हैं .
चुनावी हिंदी में प्रतिध्वन्यात्मक शब्दों के दर्शन भी होते  हैं .प्रतिध्वन्यात्मक शब्दों से तात्पर्य है कि जिन शब्दों के प्रकार और सम्बन्ध का ज्ञान करने के लिए आंशिक आवृति कर दी जाये .यथा - चंदा-वंदा ,नेता-वेता आदि .
चुनावी हिंदी वर्तमान में जिस दिशा में जिस दिशा में बढ़ रही है ,उसके  सर्वाधिक  महत्वपूर्ण  बिंदु  हैं  -'संकर' शब्द . '' जो शब्द दो भाषाओँ के योग से बने हैं ,उन्हें 'संकर '  शब्द कहते  हैं .' 8  यथा -
* अमन-सभा  [अरबी+संस्कृत]
*काउन्सिल-निर्वाचन [अंग्रेजी+संस्कृत ]
*स्टार-प्रचारक [अंग्रेजी+संस्कृत]
*कांग्रेसी [अंग्रेजी+संस्कृत ]
*कांग्रेस-अध्यक्ष [अंग्रेजी+संस्कृत ]
*भारतीय जनता पार्टी [सं+सं+अंग्रेजी ]
*पैदल-मार्च [हिंदी+अंग्रेजी ]
*विधान-सभा -सीट [ सं+अंग्रेजी]
* सिटिंग -विधायक [अंग्रेजी+संस्कृत]
*पार्टी-अध्यक्ष [अंग्रेजी+संस्कृत ]
*पार्टी-उम्मीदवार {अंग्रेजी+फ़ारसी]
*पार्टी-प्रत्याशी[अंग्रेजी+संस्कृत ]
*माफिया-राज  [अंग्रेजी+हिंदी ]
चुनावी हिंदी में बंगाली, मराठी ,पंजाबी ,गुजरती आदि आधुनिक भारतीत्य आर्य-भाषाओँ के शब्द भी सम्मिलित हुए हैं .यथा -गुजरती से 'हड़ताल' , मराठी से 'चालू ' ,लागू' ,बंगला से 'भद्र्लोग ' इत्यादि .
भारतीय-आर्य भाषाओँ के अतिरिक्त चुनावी हिंदी में आर्येतर भाषाओँ के शब्दों प्रचलन भी प्रमुखता के साथ किया जाता है .अनार्य-भाषाओँ के शब्दों में तमिल, तेलुगू , मलयालम , कन्नड़ भाषाओँ के शब्द मुख्य रूप से प्रचलित हैं .यथा-कटु , कलुष , महिला , माला आदि .
द्रविड़ परिवार के अतिरिक्त आग्नेय व् मुंडा कुल की भाषाओँ के शब्द भी चुनावी हिंदी में प्रयुक्त किये जाते हैं .

ख-विदेशी भाषाओँ के शब्द -   चुनावी हिंदी में समय-समय पर वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों एवम भारतीय परिस्थितियों के कारण  अनेक विदेशी भाषाओँ  के शब्दों का प्रचलन बढ़ है .इन विदेशी शब्दों के स्रोतों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है -
१-मुस्लिम संपर्क से आये शब्द और चुनावी हिंदी - मुस्लिम नेताओं और गंगा-जमुना दोआब के आस-पास की जनता द्वारा  हिंदी भाषा के जिस रूप प्रयोग किया जाता है उसे हिंदुस्तानी की संज्ञा दी जाती है और चुनावों के दौरान  राजनैतिक दलों व् नेताओं द्वारा जनता से संवाद स्थापित करने में वे इसी का प्रयोग करते है .हिंदुस्तानी भाषा में उर्दू ,अरबी, फ़ारसी ,ईरानी ,पश्तो ,तुर्की आदि शब्दों का बाहुल्य  है .चुनावी हिंदी में मुस्लिम-संपर्क से आये  प्रमुख शब्द कुछ इस प्रकार हैं -
* ईरानी शब्द- क्षत्रप , तीर आदि .
*पश्तो शब्द- लुच्चा , अटकल ,गुंडा आदि
*तुर्की शब्द-  बाबा , काबू , कुर्ता , कैंची ,तुर्क आदि .
*अरबी-फ़ारसी शब्द - चुनावी हिंदी में मुस्लिम संपर्क से आये  अरबी-फ़ारसी भाषा के ही शब्द सर्वाधिक प्रयुक्त किये जाते हैं क्योंकि मध्यकाल में भारत में मुस्लिम शासकों का शासन रहा और उस समय की राजभाषा फ़ारसी ही थी ..चुनावी हिंदी में चूंकि जन-जन की बोलचाल की भाषा के प्रचलित शब्द ही प्रयुक्त होते हैं और अरबी-फ़ारसी के शब्द भारतियों की हिंदी भाषा में इस तरह घुल-मिल गए हैं कि वे हिंदी के ही लगते हैं .उदाहरणार्थ -
* सरकार [फ़ारसी]    *जंग [फ़ारसी]
*वादा [अरबी]      *मुद्दा [अरबी]
* उम्मीदवार [फ़ारसी]   *सियासत [अरबी ]
* सियासी [अरबी]  * बगावत [अरबी]
* बागी [अरबी]      *ऐलान [अरबी]

२-योरोपीय प्रभाव से आये शब्द और चुनावी हिंदी -चुनावी हिंदी में अनेक शब्द योरोपीय देशों से संपर्क के कारण भी प्रचलित हुए .इनमे पुर्तगाली , फ़्रांसिसी , अंग्रेजी शब्दों की बहुलता है .चुनावी-हिंदी में योरोपीय भाषाओँ में से सर्वाधिक शब्द अंग्रेजी के प्रयुक्त होते हैं .यथा -
*लीडर   *इलेक्शन     *रोड-शो
*सिम्बल   *पार्टी    *पब्लिक
*कैंडिडेट    *रिजल्ट   *स्पीच
*स्टेज    *इ.वी, एम्.    *बूथ
*बूथ-कैप्चरिंग   *कमेटी   *कांग्रेस
*पब्लिसिटी     *वर्कर   *वर्किंग -कमेटी
*सोशल-इंजीनियरिंग   *पार्टी-सुप्रीमो
*वोट    *वोटर      *वोट-बैंक
*मार्च   * गेम-चेंजर   * पॉलिटिकल-इंजीनियरिंग

उपर्युक्त वर्णित शब्द-समूहों के अतिरिक्त अनेक योरोपीय भाषाओँ के साथ-साथ अन्य महाद्वीपों के संपर्क में आने के कारन उनके शब्द भी हिंदी के चुनावी स्वरुप को समृद्ध कर  रहे  हैं  .इसप्रकार स्पष्ट है की चुनावी-हिंदी का शब्द-समूह निरंतर बढ़ रहा है और नित नवीन शब्द इसके शब्दकोष में जुड़ रहे हैं .

इ-चुनावी हिंदी और मुहावरे - '' मुहावरा शब्द हिंदी में उर्दू के संपर्क से आया है .उर्दू भाषा में यह   शब्द अरबी से गृहीत है और इसका तत्सम रूप है -मुहावर:, जिसका अर्थ है -बोलचाल या बातचीत .किसी भाषा की बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले वे शब्द-युग्म या वाक्यांश ;जो जन-भाषा का अंग बन गए हो और जिनका अर्थ शब्दार्थ या वाक्यार्थ से भिन्न और चमत्कारपूर्ण होता है ,मुहावरे कहलाते  हैं .........मुहावरों के प्रयोग से भाषा की व्यंजना -शक्ति में पंख लग जाते हैं .वंचित प्रयोजन को व्यक्त करने में इनसे वक्त को बड़ी सफलता मिलती है .'' 9
चुनाव के दौरान मीडिया व्  राजनैतिक दलों के प्रवक्ताओं , चुनाव-रैली में नेताओं-नेत्रियों  द्वारा प्रायः मुहावरेदार भाषा का प्रयोग किया जाता है .यथा-
* भाजपा के लिए  'नाक का सवाल ' बना मणिपुर चुनाव 10
* आपके फैसले पर टिकी पूरे देश की निगाहें .11
*बसपा-भाजपा के 'चक्रव्यूह में फंसे ' माताप्रसाद 12
*पांचवें दौर में सभी दलों के बीच 'कांटे की लड़ाई '13
*चौथा चरण:राजा भैया सहित दिग्गजों की 'प्रतिष्ठा दांव पर '14
*चुनावी चक्रव्यूह का छठ द्वार भेदने की रोचक जंग 15
* 'शायद इसलिए मोदी और शाह ने पूर्वांचल की दूसरी समस्याओं के साथ इस मुद्दे पर भी ' हमला बोलना ' जरूरी समझ  .16
* पूर्वांचल में बागी 'बने सिरदर्द '17
* ताल-ठोकना ,दामन थामना
न केवल हिंदी के प्रचलित मुहावरों का प्रयोग चुनावी हिंदी में किया जाता है वरन  चुनावी -हिंदी में कुछ नवीन मुहावरे भी सृजित हो रहे हैं -
*पार्टी का चेहरा होना -पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता .
*चुनावी -जंग होना - दो पार्टी के प्रत्याशियों के बीच चुनाव में विजय प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा .
*गठबंधन की राजनीति - कई राजनैतिक दलों द्वारा मिलकर सरकार बनाना .
*वोट-बैंक की राजनीति -किसी विशेष सम्प्रदाय को आकर्षित करना राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव में .
*सत्ता पर काबिज होने का सपना देखना -चुनाव में बहुमत प्राप्त करने की अभिलाषा करना .
*चुनावी-वादे - ऐसे आश्वासन जिनके पूरे होने की आशा नहीं करनी चाहिए .
ये ही नहीं प्रमुख नेताओं द्वारा भाषणों में मुहावरों का भरपूर प्रयोग किया जाता है .यथा -
'' मझवां के चंदईपुर में शुक्रवार को सभा में [प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ]ने कहा कि खाट बिछाने वालों क़ी खाट तो लोग पहले ले गए , अब इनकी '' खटिया खड़ी करने क़ी '' बारी है .''18
इस प्रकार स्पष्ट है कि चुनावी भाषा का मुहावरेदार होना इसकी एक प्रमुख विशेषता है.
i-'प्रतीकों'' से प्रहार -  हिंदी साहित्य में ' प्रतीक' का सामान्य अर्थ है -संकेत -चिन्ह , जिसका प्रयोग किसी अन्य अर्थ के स्थान पर किया जाता है .दूसरे शब्दों में जब कोई प्रदार्थ किसी भाव या विचार का संकेत बन जाता है ,तो प्रतीक कहलाता है .........प्रतीक योजना का उद्देश्य साहित्य में प्रमुखतः कथ्य को आकर्षक रूप प्रदान करना होता है .''19
              चुनाव के दौरान चाहे नेता-नेत्रियां हो अथवा मीडिया -सभी अपने कथ्य को आकर्षक व्   जन-जन तक अपनी बात मजबूती के साथ पहुँचाने के लिए 'प्रतीकों' के माध्यम से विपक्षियों पर प्रहार करते हैं ,साथ ही इनकी एक और मंशा यह भी होती है कि  प्रतीकों के माध्यम से विपक्षियों को कटु-भड़काने वाले  वचन भी कह दिए जाये और ये निर्वाचन आयोग की आचार संहिता से भी बचे रहें . उदाहरणार्थ -
*भगवा पार्टी - भारतीय जनता पार्टी के लिए विपक्षियों द्वारा ये प्रतीक प्रयोग किया किया जाता है .
*बहन जी - बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा सुश्री मायावती जी के लिए बहन जी शब्द का प्रयोग किया जाता जाता है .
*बाहुबली- आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के लिए बाहुबली शब्द का प्रयोग किया जाता है .
*पप्पू - सोशल साइट्स पर विरोधियों द्वारा  पप्पू प्रतीक बनाया गया है कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष  श्री राहुल गाँधी की राजनीतिक अपरिपक्वता का .
*फेंकू - विपक्षियों द्वारा सोशल साइट पर लोक-सभा चुनाव 2014  के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किये जाने वाले चुनावी-वादों को लेकर उनके लिए यह प्रतीक प्रयोग किया गया .
       उपर्युक्त के अतिरिक्त राजनैतिक दल को निर्वाचन आयोग द्वारा जो चुनाव-चिन्ह आवंटित किये जाते हैं वे भी उनके प्रतीक बन जाते हैं -जैसे कांग्रेस पार्टी का चुनाव-चिन्ह 'हाथ' व् भारतीय जनता पार्टी का 'कमल का फूल '' चुनाव-चिन्ह हैं .
*चुनावी-हिंदी व् नारे- 'नारों से तात्पर्य ऐसी पनकी अथवा शब्द-समुच्चय से होती है जो किसी व्यक्ति, वस्तु , कंपनी , राजनैतिक दल , के समर्थकों द्वारा स्व-हित मेंउच्चरित किये जाते हैं अथवा पोस्टरों ,विज्ञापनों व् सोशल-साइट्स पर प्रदर्शित किये जाते हैं .
       लोकतंत्र में जितना महत्त्व चुनाव का है ,चुनाव में उतना ही महत्त्व 'नारों ' का होता है .एक सार्थक नैरा पूरे चुनाव का रूख ही पलट देता है .चुनाव-प्रचार के महत्वप[ऊर्ण अंश जिन्होंने भारतीय-राजनीती को दिशा प्रदान की कुछ इस प्रकार हैं -
* 'जनसंघ को वोट दो ,बीड़ी पीना छोड़ दो ,बीड़ी में तम्बाकू है ,कांग्रेस वाला डाकू है ''-[1967  चुनाव]
*ये देखो इंदिरा का खेल ,खा गयी शक्कर ,पी गयी तेल [जनसंघ चुनाव प्रचार ]
*गरीबी हटाओ ,इंदिरा लाओ ,देश बचाओ [1971  चुनाव प्रचार कांग्रेस ]
*''जब तक सूरज-चाँद रहेगा ,इंदिरा तेरा नाम रहेगा ''[1984  चुनाव ]
*हर हर मोदी ,घर घर मोदी [लोकसभा चुनाव 2014 ]
*यूं.पी को ये साथ पसंद है [विधानसभा चुनाव २०१७उत्तर प्रदेश ]
*सबका साथ -सबका विकास [भारतीय जनता पार्टी ]
         
*चुनावी हिंदी और गद्य-पद्य विधाओं का रूप -चुनाव के दौरान जहाँ मौखिक रूप में भाषण ,नारों आदि के माध्यम से प्रचार किया जाता है वही राजनैतिक दल जनता को आकर्षित करने के लिए हिंदी की गीत विधा का भी भरपूर प्रयोग करते हैं .चुनावी गीत टेलीविजन ,वेबसाइट्स के साथ-साथ गली-गली में लाउडस्पीकर पर बजाये जाते हैं .गीतों  में चुनावी मुद्दों का प्रचार व् विपक्षियों की भर्त्सना की जाती है .कई बार ये फ़िल्मी गानों की धुन पर तैयार किये जाते हैं और कई बार हिंदी के लोक गीतों की धुन पर इन्हें तैयार किया जाता है .सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का प्रचार गीत -अच्छे दिन आने वाले हैं '' अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था .गीत के अतिरिक्त चुनाव से सम्बंधित [हिंदी पद्य की विधाओं में] छंद जैसे -दोहा ,कुंडलिनी ,पद आदि समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते हैं ,जिनके माध्यम से रचनाकार या तो किसी पार्टी विशेष का समर्थन करता  है अथवा जनता को जागरूक  करने का प्रयास करता है .अमर-उजाला दैनिक ने विधान-सभा चुनाव २०१७ के दौरान एक पूरा पृष्ठ 'महासंग्राम'' नाम से चुनाव की रिपोर्टिंग को ही समर्पित किया हुआ था .उस पृष्ठ पर ''सनद रहे '' कॉलम के अन्तर्गत हिंदी के चुनावी -छंद लेखन को प्रोत्साहित करते हुए नित्य छंद प्रकाशित किये जाते रहे .उदाहरणार्थ -बनज कुमार बनज का दोहा -
'' लोकतंत्र जीवित रखो , दो जाकर के वोट
ऐसा लेना फैसला ,ना हो जिसमे खोट !'' 20
    हिंदी गद्य की विधाओं में चुनावी हिंदी के अन्तर्गत रिपोर्टिंग ,यात्रा-वृतांत , महान नेताओं की जीवनी व् आत्मकथा , समाचार-पात्र,पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख आदि महत्वपूर्ण रूप से इसके स्वरुप को निखार रहे हैं .

*चुनावी-हिंदी की अन्य विशिष्टताएं -
१- चुनावी हिंदी में अभिधा शब्द-शक्ति के स्थान पर लक्षणा व् व्यंजना का भरपूर प्रयोग किया जाता है .यथा-
''जनता ने बिछाया ऐसा तार ,सपा-बसपा और कांग्रेस को लगेगा करंट :मोदी ''21
 यहाँ तार बिछाने व् करंट लगाने से तात्पर्य यह है की जनता इस चुनाव में सपा-बसपा को वोट न देकर बीजेपी को वोट करेगी .
२-प्रसिद्द हिंदी-उर्दू के कवियों -शायरों की पंक्तियों का प्रयोग कर भाषा को अलंकारमय बनाया जाता है .यथा -
* कवि अशोक चक्रधर के हवाले से कहा कि किसी भी काम को कराने के लिए नज़राना , शुकराना , हक़राना  ,ज़बरन पेश करना होता है .इससे मुक्ति का एक ही उपाय है इनको -''हराना' :मोदी '22
*''मैं हिंदी और उर्दू का दोआब हूँ ,
  मैं वो आइना हूँ जिसमे हम और आप हैं'' :राहुल गाँधी '२३
३-शब्द-संक्षेपण व् विस्तारण -चुनावी हिंदी में दोनों ही प्रवर्तियाँ परिलक्षित हो रही हैं .शब्द-संक्षेपण के अन्तर्गत कई शब्दों के प्रारंभिक अक्षर को लेकर एक नया ही शब्द बना दिया जाता है .यथा -
*भारतीय जनता पार्टी -बीजेपी
*बहुजन समाज पार्टी- बसपा
*समाजवादी पार्टी -सपा
*राष्ट्रीय लोकदल-रालोद
* नरेन्द्र मोदी- नमो
     चुनावी हिंदी में शब्द-विस्तारण के अन्तर्गत किसी एक शब्द को लेकर उसकी नयी ही व्याख्या प्रस्तुत की जाती है .इसके अन्तर्गत अंग्रेजी शब्दों की हिंदी व्याख्या ज्यादा प्रचलन में है. यथा -उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में SCAM अंग्रेजी के  शब्द का विस्तारण  मोदी जी व् राहुल जी द्वारा चुनावी रैलियों में भिन्न-भिन्न किया गया ,वही मोदी जी ने बसपा शब्द -संक्षेप का विस्तारण कुछ और ही कर दिया .यथा-बहन जी की संपत्ति पार्टी .24
*चुनावी हिंदी में दिए जाने वाले भाषणों की शैली मुख्यतः व्यंग्यात्मक ,उद्बोधनात्मक ,आलंकारिक ,सरस होती है .व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग अधिकांश मंझें हुए नेताओं द्वारा किया जाता है .वर्तमान में श्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में इस शैली के दर्शन सर्वाधिक होते हैं .यथा -''लोग अच्छा काम करते हुए गायत्री मन्त्र बोलते हैं ,लेकिन सपा-कांग्रेस वाले गायत्री प्रजापति मन्त्र बोल रहे हैं .''25[यहाँ पर एक बलात्कार के आरोपी विधायक  का साथ देने का आरोप लगाते हुए पैना व्यग्य किया गया है सपा-कांग्रेस पर ]
*चुनावी हिंदी में अंग्रेजी का बोलबाला- चुनावी हिंदी के स्वरुप के सम्बन्ध में सर्वाधिक चिंतनीय विषय यह है कि वर्तमान में इसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा है .अधिकांश नेता युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं .मीडिया भी इसी भेड़चाल का शिकार हो रहा है .हाल ही में संपन्न विधानसभ चुनाव 2017में भी नेताओं ने पलटवार करने में अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी की तुलना में ज्यादा तरजीह दी .यथा -
*'मायावती का पलटवार ,बोली नरेन्द्र मोदी का मतलब-निगेटिव दलित मैन''26
*''हार्वर्ड पर भरी हार्डवर्क :मोदी '27
*चुनावी हिंदी में अपशब्दों का बढ़ता प्रयोग - '' भारतीय राजनीति की भाषा में ऐसी गिरावट शायद पहले कभी नहीं देखी गयी .....राजनीति से व्यंग्य गायब है ,हंसी गायब है ,परिहास गायब है ...उनकी जगह गालियों और कटु वचनों ने ले ली है .''28
  वास्तव में आज न किसी को अपने पद का लिहाज रह गया है ,न आयु का .तब भाषा की मर्यादा को कौन बचाये ? चुनावी हिंदी के गिरते हुए स्तर के प्रमाण हर चुनाव में सबके सामने आ ही जाते हैं .यथा -
* अखिलेश बोले-अब तो गुजरात के गधों के विज्ञापन आने लगे हैं .''29
* पी.एम्. को अपशब्द कहने पर लालू के खिलाफ परिवाद-''आरोप है कि जौनपुर सदर विधानसभा क्षेत्र के गभीरं बाजार में २८ फरवरी २०१७ को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में आयोजित सभा में भाषण के दौरान पी.एम्. नरेन्द्र मोदी की तुलना हिजड़े से करते हुए हिजड़ा जैसा शब्द से संबोधित किया .''
         चुनावी हिंदी की इस विद्रूपता पर विचार व्यक्त करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञानं विभाग के पूर्व -अध्यक्ष डॉ.एस.के.द्वेदी का कहना सटीक ही है -''सियासी दलों का मन्तव्य कुछ भी हो ,उन्हें भाषा का स्तर बनाये रखना चाहिए .स्तरहीन भाषा जनतांत्रिक परिपक्वता का संकेत नहीं है .संसद के भीतर और बहार जिस तरह आचरण होने लगा है ,उस पर सभी को विचार करना चाहिए .सभी को भाषा की मर्यादा बनाये रखनी चाहिए . ''30

निष्कर्ष- उपर्युक्त समस्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि साढ़े दशकों से लोकतान्त्रिक प्रक्रिया  चुनावों का अंग होते हुए जहाँ भाषा की दृष्टि से हिंदी के शब्द समूह में नए-नए शब्द जुड़े हैं वही जिन्होंने हिंदी का एक नया ही स्वरुप ''चुनावी हिंदी '' सृजित कर दिया है वही अंग्रेजी शब्दों के अधिक प्रयोग के कारन चुनावी हिंदी ''हिंग्लिश'' होने की ओर अग्रसर है .भारतीय जनता ,नेताओं ,हिंदी मीडिया को इस ओर विशेष ध्यानाकर्षण करने की आवश्यकता है .चुनावी हिंदी में अपशब्दों का बढ़ता प्रयोग भी इसके स्वरुप को विकृत कर रहा है .अतः इन पर सख्त पाबन्दी लगाई जानी चाहिए .नवीन उपमेय ,उपमान ,प्रतीकों के प्रयोग द्वारा चुनावी हिंदी हिंदी साहित्य के प्रयोगवादी काल का स्मरण कराती है . समय व् प्रयोजन से भाषा का स्वरुप परिवर्तित होता आया है और ये एक स्वाभाविक प्रक्रिया है .चुनावी हिंदी ने हिंदी भाषा को सामयिक महत्ता प्रदान करने में जो योगदान दिया है ,निश्चय ही सराहनीय है .

                         सन्दर्भ -सूची

संदर्भ-स्रोत       सन्दर्भ -संख्या        पृष्ठ-संख्या
................................................................
*प्रजातंत्र में             1                        211
जन-जीवन ,            3                       216
चित्रा हाईस्कूल         4                       213
सामाजिक विज्ञानं    5                        212
*भाषा-विज्ञानं           2                        262    
हिंदी-भाषा :
हिंदी के विविध
रूप ,पूजा साहित्य
सीरीज ,सरन
प्रकाशन मंदिर
पीयूष बी.ए.हिंदी      6                     64
दिग्दर्शन                 7                      66
                            8                      66-67
*हिंदी-भाषा              9                     79
डॉ,नारायण
स्वरुप शर्मा,
संस्करण 1990                                              
*उपकार-प्रकाशन      19                 203T
UGC /नेट/JRF /
सेट/हिंदी                                                    
* अमर-उजाला   10,11,12,13,14, [23 FEB.
हिंदी दैनिक ,         20,30                  2017]
मेरठ                    15,16,             [ 28FEB .
संस्करण                                      2017]
                        18,21,22,23,     [4मार्च
                                                  2017]
                          24,27,29           [21FEB
                                                   २०१७]
                          25                     [5मार्च
                                                   २०१७]
                           27                       [2मार्च  
                                                  2017]
*कलम करेगी      28                  [8मार्च
धमाका                                      2017]
समाचार-पत्र

                       

शुक्रवार, 3 जून 2016

हिंदी ब्लॉगिंग और महिला सरोकार : ['भारतीय -नारी ' सामूहिक ब्लॉग के सन्दर्भ में ]

भारतीय समाज विभिन्न धर्मों , समूहों और जातियों से मिलकर बना है ,जिसमें char वर्णों के अतिरिक्त एक एक और जाती भी है .वह जाति है -स्त्री की . आज इक्कीसवीं  सदी  में प्रविष्ट  होकर भी स्त्री को अनेक  प्रकार से उत्पीड़न  का  शिकार होना पड़ रहा है .आज भी उसकी सामाजिक स्थिति दोयम दर्जे की है .
                                                         प्राचीन काल से लेकर आज के 'ग्लोबल विलेज ' काल तक  पितृसत्तात्मक  व्यवस्था ही स्त्री का सामाजिक कद निर्धारित करती आई है . इसी पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने स्त्री को दो श्रेणियों में विभाजित किया है --

प्रथम - देवी स्वरूपा स्त्री ,जो पुरुष द्वारा निर्धारित नैतिक मापदंडों पर खरी उतरती है , पुरुष की आज्ञा का शीश झुकाकर पालन करती है , पतिव्रता , सती -साध्वी स्त्री ।

द्वित्य -इस श्रेणी में उन स्त्रियों को रखा गया जो पुरुष द्वारा निर्धारित आचरण की सीमाओं को लांघती हैं और इसी कारण उन्हें कुलटा , पुनश्छली , कर्कशा , वेश्या , बदचलन ,व्याभिचारिणी आदि अभद्र संज्ञाओं से विभूषित किया जाता है ।

                                       'त्रिया चरित्रं देवो न जानाति कुतो मनुष्य '' जैसी कुटिल उक्तियों से स्त्री-जाति की गरिमा की धज्जियाँ उड़ाते हुए पुरुष -वर्ग ने अपने पशु -बल का प्रयोग कर स्त्री की ज्ञानेन्द्रियों पर बलात ताला ठोक दिया और स्त्री को देह की कोठरी तक सीमित कर , उस देह पर भी अपना एकाधिकार घोषित कर दिया ।  ''मानवी प्रगति के इतिहास में वह दिन सबसे दुर्भाग्य का है जब नर -नारी के बीच एक को वरिष्ठ और दूसरे को कनिष्ठ मानने के भेदभाव की परंपरा आरम्भ हुई ।  भारतीय -संस्कृति के इतिहास में कलंक का ऐसा पृष्ठ जुड़ा जिसे पढ़ने पर सिर लज्जा से झुक जाता है। तब से नारी की स्थिति दिन -प्रतिदिन गिरती ही गई। भोग्या , अबला , कामिनी ,माया जैसी कितनी ही असम्मान सूचक उपाधियां उसे दी गई। कितनों ने तो नर को वरिष्ठ व्  नारी को कनिष्ठ सिद्ध करने के लिए धर्मतंत्र के मनोवैज्ञानिक हथियारों का प्रयोग किया। .... निःसंदेह तथाकथित विद्वानोँ की यह खुली साज़िश थी जो नारी -शक्ति को गिराने के लिए धर्मतंत्र का दुरूपयोग करने तक पर उतारू हो गए। शास्त्र के नाम पर कुछ ऐसे पृष्ठ तक बनाये गए तथा श्लोक जोड़ दिए गए जो नारी की छवि धूमिल करते हैं। समाज में बहुतायत उन व्यक्तियों की होती है , जिनका स्वयं का अपना कोई मौलिक चिंतन नहीं होता। भीड़ जिस प्रवाह में बहती है , उसी में वे डूबते -उतराते बहते देखे जाते हैं।  शास्त्र के नाम पर अथवा परम्परा के नाम पर जो भी चिंतन थोपा गया ; आँख मूँदकर पीढ़ी -दर -पीढ़ी यह वर्ग अपनाता चला गया।  एक बार नारी को पुरुष की तुलना में हेय मानने की प्रथा आरम्भ हुई , वह क्रमशः पोषण पाकर सुदृढ़ होती रही। ''1
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1-'' नारी को रमणी न मानें जननी का सम्मान दे ''-ब्रह्मवर्चस , पृष्ठ -3-4 : [युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि , मथुरा ] संस्करण -2006

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                                             वैदिक युगीन शास्त्रार्थ में पारंगत गार्गी ,मैत्रेयी  उत्तरवैदिक काल , मौर्य काल , गुप्त काल , राजपूत काल ,मुग़ल काल तक आते आते पुरुष हेतु मात्र भोग की वस्तु बन कर रह गयी।  पुरुष के आसुरी शोषण की शिकार नारी की स्थिति आज भी बहुत संतोष प्रद नहीं है जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात संविधान ने महिला को पुरुष के समान अधिकार प्रदान किये व् नारी हित में अनेक महत्वपूर्ण कानूनों का निर्माण किया गया। स्थिति यह है कि स्त्री -विरूद्ध अपराधों में निरंतर वृद्धि हो रही है। ''राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो , भारत '' के अनुसार-  '' incidents of crime against women increased 6.4% during 2012, and a crime against a woman is committed every three minutes. In 2012, there were 244,270 reported incidents of crime against women, while in 2011, there were 228,650 reported incidents. Of the women living in India, 7.5% live in West Bengal where 12.7% of the total reported crime against women occurs. Andhra Pradesh is home to 7.3% of India's female population and accounts for 11.5% of the total reported crimes against women.65% of Indian men believe women should tolerate violence in order to keep the family together, and women sometimes deserve to be beaten.[3] In January 2011, the International Men and Gender Equality Survey (IMAGES) Questionnaire reported that 24% of Indian men had committed sexual violence at some point during their lives.''1
             


ऐसे  में यह कैसे संभव है कि साहित्यकारों का ध्यान इस ओर न आकृष्ट हो। ''साहित्यकार तो बहुत

ही संवेदनशील होता है। ...... वह तो जो समाज में घटित होते हुए देखता है , उसे अपनी रचनाओं के माध्यम

से अभिव्यक्ति प्रदान करता है। ''2 आज यही साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से अपना संदेश

पाठकों तक प्रेषित करने के लिए इस इंटरनेट युग की देन '' ब्लॉगिंग '' का प्रयोग कर रहा है।  आज न केवल

प्रतिष्ठित साहित्यकार वरन आम -जन मानस भी अपने विचार ,भावनाओं को ब्लॉगिंग के माध्यम से

अभिव्यक्त कर रहे हैं। ब्लॉगिंग में अन्य किसी विषय व् मुद्दे की तुलना में जिस एक विषय को सर्वाधिक

महत्ता प्रदान की गयी है वो है ''महिला सरोकार '' ,इसका प्रमाण है प्रत्येक ब्लॉग की सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग-

पोस्ट में महिला -आधारित ब्लॉग -पोस्ट की उपस्थिति और अन्य ब्लॉगर्स की टिप्पणियां। हिंदी साहित्य -

संसार को समृद्ध करती व् नारी आधारित मुद्दों को बहस के केंद्र में लाकर खड़े कर देने वाला यह माध्यम -

'ब्लॉगिंग '' नवीन अवश्य है किन्तु इसने हिंदी पट्टी के साहित्यकारों विशेष कर स्त्री रचनाकारों [जिनमें आम

भारतीय नारी भी सम्मिलित है ] को अपने अनुभव व् विचाराभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया है।


* हिंदी ब्लॉगिंग -ब्लॉग का अर्थ , आरम्भ व् प्रकार


  * ब्लॉग का अर्थ -आज सम्पूर्ण विश्व कम्प्यूटरमय होने की दिशा में प्रयासरत है।  बैंकिंग क्षेत्र ,तकनीकी संस्थान और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान कम्प्यूटर के यंत्र -मस्तिष्क से लाभान्वित हो रहे हैं , वहीं जन -जन की जीवन रेखा बनकर इंटरनेट ने दुनिया भर के कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़कर सम्पूर्ण विश्व को 'ग्लोबल फैमिली '' में परिवर्तित कर दिया है। इसी क्रम में ''वर्ड प्रेस ''[https://wordpress.com ] व्   ''ब्लॉगर ''[https://www.blogger.com] आदि चर्चित ब्लॉग पब्लिशिंग सेवाओं

से सम्बन्धित वेबसाइट द्वारा इंटरनेट उपभोक्ताओं को फ्री  ब्लॉग निर्माण की सुविधा प्रदान की गई है। इस सुविधा से

लाभान्वित होते हुए आज हिंदी सहित अनेक भाषाओँ में हज़ारों ब्लॉग स्थापित किये जा चुके हैं।  सरल शब्दों में

'ब्लॉग किसी व्यक्ति द्वारा लिखित निजी डायरी का ही ऑनलाइन रूप है ; जिसमें ब्लॉग -स्वामी अपनी रचनाएँ

स्वयं लिखकर स्वयं प्रकाशित कर सकता है तथा पाठकों [जो अनुसरणकर्ता के रूप में ब्लॉग से जुड़े होते हैं ] द्वारा

त्वरित टिप्पणी भी प्राप्त कर सकता है ।



...................................................................................................................................................                   1-इ -लिंक - Violence against women in India-https://en.wikipedia.org/wiki/Violence_against_women_in_India
2-हिंदी भाषा :डॉ नारायण स्वरुप शर्मा 'सुमित्र ',पृष्ठ -115
......................................................................
*हिंदी ब्लॉगिंग का आरम्भ व् विकास -''हिंदी में ब्लॉगिंग के आरम्भ का श्रेय ''आलोक कुमार '' को दिया जाता है। ''1  आलोक कुमार हिंदी के प्रथम ब्लॉगर और उनके  ' नौ दो ग्यारह [9 -2 -11 ]' ब्लॉग को हिंदी का प्रथम ब्लॉग माना जाता है। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में आरम्भ हुए ब्लॉगिंग के इस सफर का नामकरण हिंदी में  आलोक कुमार ने ही ''चिठ्ठा '' शब्द देकर किया ; जो बहुत तेज़ी के साथ हिंदी के अन्य ब्लॉगर्स द्वारा अपनाया गया। शीघ्र ही हिंदी में ब्लॉगिंग के लिए ''चिठ्ठा ' शब्द एक मानक शब्द बन गया और हिंदी ब्लॉगर्स को ''चिठ्ठाकार '' कहा जाने लगा।
                     प्रारम्भ में देवनागरी लिपि की टाइपिंग से सम्बंधित कठिनाइयों के कारण हिंदी ब्लॉगिंग की गति बहुत धीमी रही और सीमित व्यक्तियों  द्वारा  ही  हिंदी में ब्लॉगिंग की जाती रही , किन्तु सन 2000 ई से सन 2007 ई  के मध्य हिंदी टाइपिंग उपकरणों की उपलब्धता के फलस्वरूप हिंदी ब्लॉगर्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज़ की जाने लगी।
                                      जैसा कि पूर्व में ही बताया गया है सन 2007 ई में हिंदी ब्लॉगर्स की संख्या तेज़ी से बढ़ी। इसके पीछे कारण था कि यूनिकोड फ़ॉन्ट्स ने हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओँ को ऑनलाइन टाइपिंग में अधिक उन्नत उपकरणों के माध्यम से सहायता  पहुँचाना आरम्भ कर दिया था। यनिकोड़ से तात्पर्य है -The material on this website was created using a unicode compliant Devanagari font. Unicode is a 16-bit encoding standard that allows all characters of every major language in the world to be represented. Unicode is platform independent, meaning if you typed something in Windows, it would appear the same way on a Macintosh machine. Most modern systems have built-in unicode support and often require nothing more than a unicode compliant font for any particular language.''2

                     इसके अतिरिक्त मुख्यधारा की मीडिया द्वारा हिंदी ब्लॉग्स पर प्रकाशित सामग्री को हाथों हाथ लिए जाने ने जन सामान्य का ध्यान ब्लॉगिंग की ओर आकर्षित किया।

*हिंदी -ब्लॉग के प्रकार :स्वरुप व् गठन - विषय के आधार पर  हिंदी ब्लॉग्स को अनेकों श्रेणियों में बाँटा जा सकता है ; जैसे -तकनीकी ब्लॉग ,आध्यात्मिक ब्लॉग ,सामाजिक -राजनैतिक ब्लॉग , रचनात्मक ब्लॉग ,कानूनी ब्लॉग आदि।
            शरुआती दौर में हिंदी जहाँ व्यक्तिगत ब्लॉग्स  का निर्माण अधिक करने की ओर  हिंदी ब्लॉगर्स का रूझान था ; वहीं समय के साथ साथ हिंदी ब्लॉगर्स ने सामूहिक ब्लॉग्स का निर्माण करने में रूचि लेना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार स्वरुप व् गठन के आधार पर हिंदी ब्लॉग जगत में दो प्रकार के ब्लॉग्स सृजित किये जाने की परम्परा का आरम्भ हुआ -

1 - व्यक्तिगत ब्लॉग -   इस प्रकार के  ब्लॉग पर केवल ब्लॉग -स्वामी अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर सकता है। एक ही व्यक्ति ब्लॉग -स्वामी होता है और वही एकमात्र योगदानकर्ता होता है। इस प्रकार के ब्लॉग के सृजन का उद्देश्य ब्लॉग -स्वामी की निजी भावनाओं , विचारों , विशिष्ठ रचनाओं अथवा अन्य रुचिकर विषयों का प्रकाशन मात्र होता है , यथा -''कौशल'' ब्लॉग [  http://shalinikaushik2.blogspot.com ]  मेरी कहानियां [ http://shikhapkaushik.blogspot.com ] आदि।          

2 -सामूहिक ब्लॉग -  इस प्रकार के ब्लॉग का निर्माण सार्वजानिक व् सामूहिक महत्व के विषयों पर ब्लॉगर्स को अपनी राय अपनी रचनाओं के माध्यम से एक ही ब्लॉग रुपी मंच पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें ब्लॉग स्वामी स्वयं भी ब्लॉग व्यवस्थापक की भूमिका निभाता है अथवा अन्य किसी ब्लॉगर को व्यवस्थापक के रूप में नियुक्त कर सकता है। ऐसे ब्लॉग पर ब्लॉग -स्वामी अन्य ब्लॉगर्स को योगदान हेतु ब्लॉग -लिंक भेजकर ब्लॉग में शामिल होने हेतु आमंत्रित करता है। ये लिंक अन्य ब्लॉगर्स को अपने मेल में प्राप्त होता है। इस ब्लॉग -लिंक पर क्लिक कर अन्य ब्लॉगर योगदानकर्ता के रूप में सामूहिक ब्लॉग से जुड़ जाता है और यह ब्लॉग उसके डैशबोर्ड पर दिखाई देने लगता है। योगदानकर्ता के रूप में जुड़े ब्लॉगर सामूहिक ब्लॉग पर समय समय पर ;जिस विशिष्ट विषय के आधार पर ब्लॉग का निर्माण किया गया ,स्वयं ब्लॉग पोस्ट प्रकाशित कर सकता है।
                             आज हिंदी ब्लॉग -जगत में सामूहिक ब्लोग्स की भरमार है। इनमें कुछ साहित्यिक उद्देश्य से सृजित किये गए हैं जैसे ''रचनाकार '[ www.rachanakar.org ], तो कुछ अन्य ब्लोग्स को ब्लॉग जगत

से परिचित करने के उद्देश्य से सृजित किये गए हैं जैसे -चर्चामंच [http://charchamanch.blogspot.com] . इसी प्रकार

नारी को केंद्र में रखकर भी अनेकों सामूहिक ब्लॉग्स का निर्माण जारी है ;जिनमें भारतीय नारी

[http://bhartiynari.blogspot.com]ब्लॉग ने

महत्वपूर्ण स्थान बनाया


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1-हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास [लेखक : रविन्द्र प्रभात , प्रकाशक :हिंदी साहित्य निकेतन ,बिजनौर , भारत ,वर्ष -2011 ,पृष्ठ -180 , ISBN 978 -93 -80916 -14 -9 ]


2-Author: भारत-दर्शन संकलन-link-http://www.bharatdarshan.co.nz/magazine/articles/122/hindi-font-downloads.html

* हिंदी ब्लॉगिंग और महिला सरोकार -
              यह एक संतोषप्रद तथ्य है कि हिंदी ब्लॉगर्स में महिला ब्लॉगर्स की संख्या दिन -प्रतिदिन बढ़ रही है। प्रसिद्ध हिंदी ब्लॉगर्स में कई महिला ब्लॉगर्स के नाम भी सम्मान के साथ लिए जाते हैं। ''अप्रैल 2013 , में लगभग 50 ,000 हिंदी ब्लॉगर्स थे जिनका एक चौथाई हिस्सा महिला ब्लॉगर्स के लेखनाधीन था। ''1
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1 -''BLOGGING IN HINDI FOR 10 YEARS , CITY FOLK WIN LAURELS -THE TIMES OF INDIA '' timesofindia.indiatimes.com.com'' Retrieved 2014-06-11
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यह भी एक स्वाभाविक सी बात है कि जब महिलायें लिखेंगी तो निश्चित रूप से उनका लेखन  -''एक महिला होने के नाते '' महिलाओं की समस्याओं पर ही अधिक केंद्रित होगा किन्तु प्रशंसनीय तथ्य यह है कि अनेक पुरुष ब्लॉगर्स ने भी महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों को गंभीरता के साथ उठाया यद्यपि कुछ पुरुष ब्लॉगर्स ने अपनी ब्लॉग पोस्ट में स्त्री के प्रति उसी परम्परागत रूढ़िवादी सोच को प्रस्तुत किया।
                                     महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों को उठाने  में जिस सामूहिक ब्लॉग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है , वह है ''भारतीय नारी '' सामूहिक ब्लॉग। मुख्य धारा की मीडिया के साथ कदम मिलाते हुए 'भारतीय नारी '' ब्लॉग ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति ब्लॉग -जगत के साथ साथ आम जन तक युगों युगों से शोषित नारी की आवाज़ पहुँचाने का स्तुत्य प्रयास किया।

*'भारतीय नारी' ब्लॉग की स्थापना व् उद्देश्य -  भारतीय नारी ब्लॉग की स्थापना 23 जुलाई 2011 को हिंदी ब्लॉगर व् इस ब्लॉग की व्यवस्थापक शिखा कौशिक द्वारा की गई थी। व्यवस्थापक के निमंत्रण पर अन्य प्रबुद्ध ब्लॉगर इस सामूहिक ब्लॉग से योगदानकर्ता के रूप में जुड़ते गए। आज पचास से अधिक ब्लॉगर इस ब्लॉग पर अपना अमूल्य योगदान दे रहें हैं। जिनमे प्रमुख योगदानकर्ताओं के नाम इस प्रकार हैं -
Prem Prakash
Kunal Verma
सारिका मुकेश
Pratibha Verma
Dr. sandhya tiwari
DR. ANWER JAMAL
हरीश सिंह
रेखा श्रीवास्तव
Neelkamal Vaishnaw
kanu.....
The World Is Mine
Shalini Kaushik
godharavs1947
Atul Shrivastava
सरिता भाटिया
bhuneshwari malot
Shastri JC Philip
हरकीरत ' हीर'
shyam Gupta
Anjali Maahil
रेखा
वाणी गीत
Anju pokharana
Prerna Argal
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
shravan shukla
रज़िया "राज़"
deepak kumar garg
रचना दीक्षित
deepti sharma
sadhana vaid
नीरज पाल
रविकर
mridula pradhan
Sawai Singh Rajpurohit
savan kumar
Rushabh Shukla
अंकित कुमार हिन्दू
Mahesh Barmate
Sonali Bhatia
Sunita Shanoo
आशा बिष्ट
अशोक कुमार शुक्ला
wgcdrsps
ई. प्रदीप कुमार साहनी
इस ब्लॉग की विशिष्टता इस बात में भी है कि महिला मुद्दों पर केंद्रित ब्लॉग होते हुए भी इसपर पुरुष ब्लॉगर्स को योगदानकर्ता के रूप में जोड़ा गया जैसा इससे पूर्व नारी आधारित ब्लॉग्स में नहीं किया गया था।
                                             महिला मुद्दों को उठाने में सक्रिय भूमिका निभाते हुए इस ब्लॉग पर लगभग 1400 ब्लॉगपोस्ट प्रकाशित की जा चुकी है , जिन पर 5753 टिप्पणियां भी प्राप्त की जा चुकी हैं।
उद्देश्य -ब्लॉग निर्माण के समय ही योगदानकर्ताओं के सूचनार्थ यह ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया गया था कि उनकी ब्लॉगपोस्ट इन विषयों पर आधारित होनी चाहिए -

*भारतीय नारी ब्लॉग पर इन विषयों से सम्बंधित पोस्ट करें -

-नारी जीवन से सम्बंधित समस्याएं - *दहेज़ प्रथा

 *महिलाओं के खिलाफ अपराध [घर में अथवा बाहर ]

*नारी शोषण के विभिन्न रूप *कामकाजी महिलाओं की समस्याएं

. *नारी सशक्तिकरण *नारी सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं में बढती मूल्य -हीनता
*दहेज़

-*दहेज़ कानून के पक्ष -विपक्ष में तर्क . *महिलाओं से सम्बंधित कानून व् इनमे सुधार की

आवश्यकता .

 *समाज में आये परिवर्तनों का नारी जीवन पर प्रभाव -सकारात्मक व् नकारात्मक . *माता ,

भगिनी [बहन ],पुत्री ,सहधर्मिणी व् मित्र रूप में नारी के प्रेरणाप्रद सहयोग के संस्मरण

. *नारी की सामाजिक ,राजनैतिक ,आर्थिक प्रगति हेतु सार्थक आलेख .

*भारतीय - नारी ब्लॉग पर प्रस्तुत पोस्ट का स्वरुप - *इस ब्लॉग पर साहित्य की

किसी भी विधा में आप अपनी बात रख सकते हैं वो कविता ,कहानी ,आलेख ,व्यंग्य संस्मरण ,

लघु कथा  आदि कुछ भी हो सकता है .

आप स्त्री हैं या पुरुष -सभी का स्वागत है ' 1  
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1 -भारतीय नारी ब्लॉग मुख्य पृष्ठ [http://bhartiynari.blogspot.com]
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योगदानकर्ताओं ने उपर्युक्त वर्णित विषयों पर अपनी ओजपूर्ण रचनाओं व् गंभीर आलेखों को प्रस्तुत कर परिवर्तित भारतीय सामाजिक -राजनैतिक -सांस्कृतिक परिस्थितियों में महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों को केंद्र में लाने का सफल प्रयास किया है और यही इस ब्लॉग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है।
 -*भारतीय नारी ब्लॉग और महिला सरोकार -  हमारे धर्मग्रंथों में भले ही यह कहा गया हो कि ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवताः '' किन्तु व्यवहार में ''स्त्री स्वातन्त्र्यं न अहर्ती '' का पालन किया जाता है। उसकी पूजा की तो बात छोड़िये उसको मानवी तक का दर्ज़ा नहीं प्रदान किया जाता इस पुरुष -प्रधान समाज में। ऐसे में प्रसिद्ध लेखक के एस तूफ़ान का यह कथन भारतीय नारी की यथार्थ सामाजिक स्थिति के सम्बन्ध में सटीक प्रतीत होती है -'' भारतीय सामाजिकता के इतिहास में वेद , पुराण , स्मृतियाँ , काव्य , ग्रन्थ एवं साहित्य आदि युगों युगों से नारी की स्थिति पर अपनी अपनी टीका -टिप्पणी तो करते आये हैं किन्तु यह एक कठोर सत्य है कि नारी -जाति को समाज में वह स्थान कदापि प्राप्त नहीं हुआ जिसकी वह वास्तविक अधिकारिणी है। ''1
                                 भारतीय नारी ब्लॉग पर पुरुष की छाया मात्र बनकर रह गयी समस्त अधिकारों से शून्य ,घरेलू काम की मशीन व् संतानोत्पादन का साधन बनी नारी के जीवन से लेकर आकाश की ऊचाईयां चूमती आधुनिक नारी के हौसलों की उड़ान तक को ब्लॉगर्स ने अपनी ब्लॉग पोस्ट का विषय बनाया। हम निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत इनका अध्ययन कर सकते हैं -
*पितृसत्तात्मक समाज और नारी जीवन - भारतीय नारी ब्लॉग ने पितृसत्ता के जरिये स्त्रियों की विभिन्न शोषणकारी , दमनकारी परिस्थितियों को चित्रित कर प्रश्न उठाया कि स्त्री को स्त्री होने के कारण क्यों शोषित , उत्पीड़ित व् अपमानित किया जाता है ?  5 दिसंबर 2012 को ''प्यार शादी धोखा और भरोसा '' शीर्षक से हरीश सिंह द्वारा प्रस्तुत पोस्ट[ डिंपल मिश्र से हुयी बातचीत और जनचर्चाओ तथा मीडिया में आई खबरों पर प्रकाशित] में डिम्पल मिश्र नामक युवती के संघर्ष को रेखांकित किया गया जो भारतीय पुरुष के उसी परम्परागत छल का शिकार हुई थी जिस छल का शिकार सदियों पहले शकुंतला को होना पड़ा था अर्थात गन्धर्व विवाह के पश्चात समाज के समक्ष विवाह से इंकार करते हुए स्त्री को सार्वजानिक रूप से लांछित करने की पुरुष की कुत्सित प्रवर्ति। डिम्पल के शोषण व् संघर्ष को चित्रित करते हुए हरीश सिंह लिखते हैं -''अपने पिता और अपना पेट पालने के लिए वह रिलायंस में काम करने लगी, उसका काम था बकाया बिलों की वसूली करना, एक दिन वह भूल से अपने निजी मोबाइल द्वारा एक बकायेदार ठाणे निवासी विपिन मिश्र को फ़ोन कर दिया, विपिन मूलतः भदोही जनपद के गोपीगंज थाना क्षेत्र के मूलापुर गाँव का रहने वाला है,
उसका no मिलने के बाद विपिन बार बार फ़ोन करने लगा, वह उसकी कंपनी के गेट पर खड़ा होकर इंतजार करता, पीछा करके उसके घर तक आता, विपिन ने डिंपल के पिता को भी भरोशे में लिया, डिंपल के पिता शादी के लिए परेशान थे, विपिन ने कहा की वह भी अकेला है, उसके पिता से उसकी नहीं बनती, दोनों शादी करके खुश रहेंगे, विपिन द्वारा बार बार दबाव दिए जाने से डिंपल के पिता ने एक दुर्गा मंदिर में दर्जनों लोंगो के सामने हिन्दू रीती रिवाज़ के साथ डिंपल और विपिन की शादी कर दी, दोनों पति पत्नी विपिन के घर पर रहने लगे,
जब इसकी भनक विपिन के पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र को मिली तो वे मुंबई पहुंचे और डिंपल को घर से मारपीट कर भगा दिए, उस दौरान विपिन ने साथ दिया और दोनों आकर डिंपल के पिता के घर आकर रहने लगे, कुछ दिन तक दोनों प्रेम से साथ रहने लगे, विपिन अपने घर भी आने जाने लगा, इसी दौरा डिंपल के पेट में विपिन का बच्चा पलने लगा, विपिन का मोह भी डिंपल से भंग होना शुरू हो गया,
डिंपल के पिता अपनी बेटी के लिए विपिन के  पिता से भी गिडगिडाने लगे तब विपिन के पिता ने दस लाख रूपये दहेज़ की मांग रखी और कहा की बिना दहेज़ लिए स्वीकार नहीं करेंगे,
८ अप्रैल २०११ को सदमे के चलते डिंपल के पिता का निधन हो गया, २ मई को जब अस्पताल में डिंपल ने मासूम अंचल को जन्म दे रही तो उसे अस्पताल में भरती कराकर विपिन दादा के बीमारी का बहाना बनाया और ५ मई को इलाहबाद जनपद के हंडिया तहसील निवासी राकेश कुमार पाण्डेय की बेटी क्षमा पाण्डेय से भरी दहेज़ लेकर विवाह कर लिया, इसकी जानकारी काफी दिन बाद डिंपल को हुयी, वह विपिन से रोने गिडगिडाने लगी, पर उसका असर विपिन पर नहीं पड़ा, वे लोग डिंपल की दूसरी शादी करना चाहते थे, पर वह तैयार नहीं थी,
पति की बेवफाई का शिकार बनी डिंपल ने सोशल मीडिया का सहारा लिया, फेसबुक के जरिये वह भदोही के लोंगो को दोस्त बनाना शुरू किया, अपना दुखड़ा वह सबको सुनाने लगी,
उधर ११ सितम्बर को उलहास्नगर के थाने में मुकादम दर्ज कराया पर एक गरीब की सुनवाई पुलिस नहीं की, उल्टा उसे ही परेशान किया जाता रहा, पुलिस स्टेसन  में बुलाकर उसे अपमानित किया जाता और विपिन को कुर्सी पर बैठकर पुलिस चाय पिलाती, उसकी गरीबी का मजाक बनाया जाता, अपनी मासूम बेटी को लेकर वह दर दर की ठोकरे खाती रही,
सब जगह से निराश होकर उसने भदोही में रहने वाले अपने फेसबुक के दोस्तों से कहा की यदि मैं आपकी बेटी या बहन होती तो भी आप ऐसा ही करते, मेरी कोई नहीं सुनेगा तो मैं अपनी बेटी के साथ आत्महत्या कर लूंगी,
भदोही के लोंगो का इमान उसने जगाया और लोग उसकी मदद में खड़े हुए, उसे भरोषा दिलाया,
फेसबुक के जरिये अपनी जंग की शुरुआत करने वाली एक अबला रणचंडी बन गयी, जन हथेली पर लेकर अपने बेटी के साथ वह आ पहुंची भदोही,
३० नवम्बर को वह बारात लेकर मूलापुर गाँव पहुँचने का एलान कर दिया, मोहल्ले के लोंगो से क़र्ज़ लेकर वह हवाई जहाज़ के आई थी और सीधे पति के घर पहुंची. मुंबई से चलकर अकेली आने वाली औरत को हजारो लोंगो का साथ मिला, बैंड बाजे के साथ वह धमक पड़ी पति की चौखट पर, उसकी हिम्मत थी की वह रणचंडी बन चुकी थी क्योंकि वह अपने बेटी को नाजायज़ नहीं कहलाना चाहती थी, एक फूल अंगारा बन चूका था,''2 पर प्रश्न ये उठता है कि पितृसत्तात्मक समाज में कब तक महिला को ऐसी नारकीय स्थितियों से गुज़रना पड़ेगा ?

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1 -रूपायन :अमर उजाला दैनिक समाचार पत्र , 20 नवम्बर 1998 : के एस तूफ़ान [नारी लेख]
2 भारतीय नारी ब्लॉग [http://bhartiynari.blogspot.com]5 दिसंबर 2012 को ''प्यार शादी धोखा और भरोसा '' शीर्षक से हरीश सिंह
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 भारतीय नारी का जीवन पितृ -सत्तात्मक   समाज में अत्यन्त दयनीय रहा है। भारतीय नारी की इसी व्यथा को अभिव्यक्त करते हुए भारतीय नारी ब्लॉग  पर ''7 अगस्त 2015 '' की अपनी पोस्ट ''आखिर कब तक '' में महिला ब्लॉगर सोनाली भाटिया प्रश्न उठाती हैं -

आखिर कब तक
लोगो के सवालो के कटघरो
में खड़ी रहेगी लडकियाँ
आखिर कब तक
इज्ज़त और मान के
लिये तरसती रहेगी लडकियाँ
आखिर कब तक
अपने छोटे छोटे हक़
के लिए लड़ती रहेगी लडकियाँ''1
      स्त्री जीवन के एक और पहलू पर प्रकाश डालती हुई महिला ब्लॉगर श्रीमती भुवनेश्वरी मालोत की भारतीय नारी ब्लॉग पर 24 दिसंबर 2011 को ''महिलाए ही नसबंदी क्यो कराये ,पुरूष क्यों नहीं'' शीर्षक से प्रस्तुत पोस्ट ने गम्भीर चिंतन के लिए सभी को विवश कर दिया। भुवनेश्वरी जी लिखती हैं -
''परिवार की खुषहाली  के लिए पति-पत्नि दोनों का समान अधिकार है तथा वे दोनो ही संयुक्त रूप से जिम्मेदार है।पुरूष नसबंदी बहुत ही सरल,सुलभ और व्यवहारिक आॅपरेषन है,ऐसे में महिलाओं को आगे नसबंदी कराने धकेल देना कहा तक न्याय संगत है।''
        कुल मिलाकर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पुरुष ने आज तक स्त्री को पददलित बनाकर रखा हुआ है। जब तकपितृसत्ता का अस्तित्व है , तब तक स्त्री -पुरुष की सच्ची समानता पर आधारित व्यवस्था के बारे में सोचना भी दिन में तारे जैसा कपोल -कल्पित विचार है।
*विवाह संस्था : कुरीतियों ,कुप्रथाओं ,विकृतियों के कारण नारी -व्यक्तित्व की बलिवेदी - भारतीय संस्कृति में व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को चार भागों में विभक्त कर , प्रत्येक भाग के कुछ नियम निर्धारित किये गए। इस व्यवस्था को आश्रम व्यवस्था  का नाम दिया गया।  चारो आश्रमों -ब्रह्मचर्य , गृहस्थः , वानप्रस्थ एवं सन्यास में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। विवाह संस्कार इस आश्रम का महत्वपूर्ण संस्कार है और भारतीय स्त्रियों के लिए सोलह संस्कारों में से मात्र 'विवाह संस्कार ' को ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि पुरुष प्रधान हमारे समाज की यह मान्यता है कि पति की सेवा करना ही समस्त संस्कारों की पूर्णता है
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1-ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2015/08/blog-post_7.html
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प्राचीन काल में स्वयंवर एवं गन्धर्व विवाहों के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि तब कन्या अपनी रुचि के अनुसार वर चुनने के लिए सर्वथा स्वतंत्र थी किन्तु धीरे धीरे विवाह के  सम्बन्ध में स्त्री की स्वतंत्रता का हरण हो गया। मानवोचित अधिकारों से वंचित स्त्री एक ऐसी संपत्ति बनकर रह गयी जिसे उसके संरक्षक विवाह के नाम पर जिसे चाहें सौंप दें और पति के नाम वाला व्यक्ति उसके साथ जैसा चाहे व्यवहार करने के लिए सामाजिक रूप में स्वतंत्र घोषित किया गया। विवाह के साथ ही अवांछनीय परम्पराओं ने अनेक कुरीतियों , कुप्रथाओं  को जन्म दिया जिसने भारतीय नारी के जीवन को अनेक त्रासदियों व् विडंबनाओं से भर दिया। इनका विश्लेषण हम निम्न बिंदुओं के अंतर्गत कर सकते हैं -
* दहेज़ प्रथा - भारतीय समाज में विवाह के सम्बन्ध विभिन्न समस्याओं में से 'दहेज़ 'की समस्या सबसे भीषण समस्या है। अनेक प्रकार से प्रताड़ित की जाती हुई विवाहिता को दहेज़ लोभी ससुराल वाले मौत की नींद सुलाने में भी पीछे नहीं हटते। भारत में दहेज़ -हत्या के रूप व्  ये आंकड़ें चौंकाने वाले हैं -
'Dowry deaths relate to a bride’s suicide or murder committed by her husband and his family soon after the marriage because of their dissatisfaction with the dowry. Most dowry deaths occur when the young woman, unable to bear theharassment and torture, commits suicide by hanging herself or consuming poison. Dowry deaths also include bride burningwhere brides are doused in kerosene and set ablaze by the husband or his family. Sometimes, due to their abetment to commit suicide, the bride may end up setting herself on fire.[41] Bride burnings are often disguised as accidents or suicide attempts. Bride burnings are the most common forms of dowry deaths for a wide range of reasons like kerosene being inexpensive, there being insufficient evidence after the murder and low chances of survival rate. Apart from bride burning, there are some instances of poisoning, strangulation, acid attacks, etc., as a result of which brides are murdered by the groom’s family.
India, with its large population, reports the highest number of dowry related deaths in the world according to Indian National Crime Record Bureau.[43] In 2012, 8,233 dowry death cases were reported across India, while in 2013, 8,083 dowry deaths were reported. This means a dowry-related crime causes the death of a woman every 90 minutes, or 1.4 deaths per year per 100,000 women in India. For contextual reference, the United Nations reports a worldwide average female homicide rate of 3.6 per 100,000 women, and an average of 1.6 homicides per 100,000 women for Northern Europein 2012.''1    
भारतीय नारी ब्लॉग पर  समाज के लिए कलंक बनी इस प्रथा के विरोध में समय समय पर ब्लॉग पोस्ट
प्रकाशित की  जाती रही हैं। 8 जुलाई 2011 को 'विवाह अथवा ब्लैकमेलिंग ?'' शीर्षक से प्रकाशित पोस्ट में
दहेज़ की माँग के कारण दुल्हन के पिता की हुई मौत की खबर को आधार बनाते हुए स्पष्ट रूप से ये सन्देश
दिया गया कि दहेज़ के नामपर वर पक्ष द्वारा  की जाने वाली ब्लैकमेलिंग के आगे अब वधू -पक्ष को झुकना बंद करना होगा -''हिन्दुस्तान '' दैनिक समाचार -पत्र में कुछ समय पूर्व  ''दहेज़ में कार मांगने पर दुल्हन के पिता को हार्ट-अटैक ;मौत'' खबर पढ़कर आँखें नम हो गयी थी  .बेटी की बारात आने में कुछ ही दिन रह गए थे  .दुल्हन के पिता कुछ दिन पहले सगाई की रस्म अदा क़र आये थे. शादी में ५१ हज़ार की नकदी के अलावा बाइक और फर्नीचर देना तय हुआ था . लड़के वालों ने फोन पर धमकी दे दी कि यदि दहेज़ में कार देनी है तो बारात आएगी वर्ना कैंसिल समझो.'समझ में नहीं आता विवाह जैसे पवित्र संस्कार को ''ब्लैकमेलिंग' बनाने वाले ऐसे दानवों के आगे लड़की के पिता कब तक झुकते रहेंगे. अनुमान कीजिये उस पुत्री के ह्रदय की व्यथा क़ा जो जीवन भर शायद इस अपराध बोध से न निकल पायेगी कि उसके कारण उसके पिता की जान चली गयी.होना तो यह चाहिए था कि जब वर पक्ष ऐसी ''ब्लैकमेलिंग'' पर उतर आये तो लड़की क़ा पिता कहे कि ''अच्छा हुआ कि तुमने मुझे विवाह पूर्व ही यह दानवी रूप दिखा दिया.मेरी बेटी क़ा जीवन स्वाहा होने  से बच  गया '' पर ऐसा कब होगा और इसमें कितना समय लगेगा? ये कोई नहीं बता सकता.मै तो बस इतना कहूँगी----          '''बेटियों को इतना बेचारा मत बनाइये; क़ि विधाता भी सौ बार सोचे इन्हें पैदा करने से पहले..''2

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1 Dowry system in India-वेब लिंक -https://en.wikipedia.org/wiki/Dowry_system_in_India
2 -भारतीय नारी ब्लॉग -ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2011/08/blog-post_9593.html
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    एक अन्य पोस्ट में महिला ब्लॉगर शालिनी कौशिक  ने जिसका शीर्षक था ''दहेज़ :अकेली लड़की की मौत '' [दिनांक -2 जुलाई 2013 को प्रकाशित ]में ये विचार प्रस्तुत किये -''एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .''1  दहेज़  का दानव कितनी बेटियों को निगल चुका है इसका अनुमान भी दिल को दहला जाता है। कठोर दहेज़ कानूनों के निर्माण के पश्चात भी इस दहेज़ रुपी कलंक से भारतीय नारी की स्थिति नारकीय बनी हुई है। इस दहेज़ प्रथा के कारण समाज में कन्या -जन्म एक अभिशाप माना जाने लगा। दहेज़ की राशि न जुटा पाने के कारण माता -पिता अपनी कन्या का विवाह अशिक्षित ,वृद्ध , कुरूप , अपंग एवं अयोग्य लड़के के साथ करने को विवश हो जाते हैं। दहेज़ के कारण माता -पिता को रकम उधार लेनी पड़ती है या जमीन ,जेवर एवं मकान आदि को गिरवी रखना पड़ता है। प्रश्न यह भी ''भारतीय नारी '' ब्लॉग पर उठाया गया है ब्लॉगर्स द्वारा कि दहेज़ हत्या में दोषी कौन है -ससुरालवाले या मायके वाले ? ''समाज की भेंट चढ़ती बेटियां '' शीर्षक वाली ब्लॉग -पोस्ट में कविता वर्मा जी यही प्रश्न करती हैं - '''साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है .सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ....जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ?''
यह एक विडंबना ही  है कि दहेज़ कुप्रथा को लेकर प्रश्न तो हर मंच से उठाए जाते रहे हैं पर अब तक इस कुप्रथा को रोक पाने में न तो कानून ही कारगर भूमिका निभा पाया है और न ही जागरूक करने वाली ऐसी ब्लॉग पोस्ट।
*नारी विरूद्ध अपराध - स्त्री के विरूद्ध घर व् बाहर अनेक जघन्य अपराध किये जा रहे हैं। बलात्कार से लेकर तेज़ाब उड़ेलने तक इन अपराधों की एक लम्बी फेहरिस्त है। भारतीय नारी ब्लॉग के योगदानकर्ताओं ने अपनी सजगता का परिचय देते हुए स्त्री विरूद्ध अपराधों पर अपनी सामयिक पोस्ट प्रस्तुत की और समस्या का समाधान प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया।
                                     ''कन्या भ्रूण -हत्या '' एक ऐसा क्रूर अपराध है जो स्त्री -बीज को इस संसार से नष्ट कर देना चाहता है। अपराध की प्रवर्ति तब और गम्भीर हो जाती है जब स्वयं एक स्त्री इस अपराध में साथ देती है। कारण कुछ भी हो। 2 जुलाई २०१२ को भारतीय नारी ब्लॉग पर माहेश्वरी मालोत द्वारा 'कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय'' शीर्षक के अंतर्गत इसी ओर ध्यानाकर्षण कराया गया -बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहा उसे आत्म-संतोष का आभास होता है, लेकिन जैसे ही पता पडता है, ये कन्या-भ्रूण है तो वह इसको नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। कन्या-भ्रूण हत्या के लिए सभी जिम्मेदार है, सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी माॅ और उसके परिजनो पर है, एक माॅ परिजनो के दबाब में आकर अपने ही  पेट में पल रहे कन्या-भ्रूण की हत्या करने पर उतारू हो जाती है।इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके गांव-गंाव में लोगो को नाटको व मंचो के द्धारा कन्या के महता को समझाना होगा। डाक्टर को अपने पेशे के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे कृत करने से मना करना हेागाडाक्टरो के लिए सख्त नियम लागू करके,दोषी डाक्टरो के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।''  
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1 -ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2013/02/blog-post_5016.html
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महिलाओं के विरूद्ध अपराध में जो अपराध सर्वाधिक जघन्य है , वो है ''बलात्कार '' . बलात्कार को स्त्री की पवित्रता -अपवित्रता के साथ जोड़कर स्त्री -गरिमा को रौंदने का ये एक हथियार बना डाला। इंद्र द्वारा अहिल्या के साथ किये गए जारकर्म से आरम्भ हुए इस कुकृत्य की यात्रा 16 दिसंबर 2012 के क्रूर निर्भया काण्ड से होती हुई सतत जारी है और बलात्कृत होने का सारा दोष  स्त्री के सिर पर ही मढ़ दिया जाता है। भारतीय नारी ब्लॉग पर ''सुरक्षा नारी की '' शीर्षक के अंतर्गत प्रेरणा अर्गल इसी दुःखद स्थिति को अभिव्यक्त करते हुए कहती हैं -
''इंसान नहीं कोई वस्तु है वो
किसी भी सामान से बहुत सस्ती है वो
कैसे भी किसी ने भी उसका उपयोग किया
जिसने चाहा जब चाहा उसको बेइज्जत किया
बेइज्जत होकर भी अपना ही चेहरा छुपाती है वो


अपनों से भी सहानुभूति की जगह दुत्कारी जाती है वो
कोई और अपराध में अपराधी अपना मुंह छुपाता है
ये ऐसा अपराध है इसमें सहनेवाला ही अपना सिर झुकाता है
आज नई सदी में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है   ''1


  आज स्त्री  के तरक्की की ओर बढ़ते क़दमों को देखकर परम्परावादी पुरुष वर्ग तिलमिला उठा है। बलात्कार व् छेड़छाड़ जैसी घटनाओं के लिए महिलाओं के चाल चलन व्  वेशभूषा को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। भारतीय नारी ब्लॉग के योगदानकर्ता डॉ श्याम गुप्त पुरुषों में बढ़ती वहशी प्रवर्ति के लिए स्त्रियों के बदलते आचरण को जिम्मेदार मानते हैं। वे अपनी ब्लॉग पोस्ट  ''अमर्यादित पुरुष '' में लिखते हैं -पहले महिलायें कहा करतीं थीं- ‘घर-बच्चों के मामले में टांग न अड़ाइए आप अपना काम देखिये|’ आजकल वे कहने लगीं हैं- ‘घर के काम में भी पति को हाथ बंटाना चाहिए, बच्चे के काम में भी| क्यों? क्योंकि अब हम भी तो आदमी के तमाम कामों में हाथ बंटा रही हैं, कमाने में भी |
 दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती  हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |  
क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी  होगयी  उसकी  गर्हित सोच |
 उसकी  गर्हित सोच ,  भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |''2
  पुरुष वर्ग की इसी सोच ने स्त्रियों के जीवन को नरक बना डाला और  मर्यादा के नाम पर कितनी ही सीताओं को आत्महत्या के लिए विवश कर दिया।
                           पुरुष का स्त्री को शारीरिक व् मानसिक तौर पर उत्पीड़ित करने का कुचक्र यही नहीं थमा। जब स्त्री पर उसका हर वार बेकार गया तो उसने उसके वज़ूद को तेज़ाब से जला डालने का हथियार अपने हाथ में ले लिया।

1 -ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2012/08/blog-post_7234.html
2 -http://bhartiynari.blogspot.in/2014/12/blog-post_1.html

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स्त्री पर किये जाने वाले तेजाबी हमलों पर प्रश्न उठाते हुए भारतीय नारी ब्लॉग पर 26 जनवरी 2016 की अपनी ब्लॉग पोस्ट में ब्लॉगर प्रदीप कुमार साहनी तेजाब पीड़िता की व्यथा को अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं -कैसा तेरा प्यार था ?
कुंठित मन का वार था,
या बस तेरी जिद थी एक,
कैसा ये व्यवहार था ?
माना तेरा प्रेम निवेदन,
भाया नहीं जरा भी मुझको,
पर तू तो मुझे प्यार था करता,
समझा नहीं जरा भी मुझको ।
प्यार के बदले प्यार की जिद थी,
क्या ये कोई व्यापार था,
भड़क उठे यूँ आग की तरह,
कैसा तेरा प्यार था ?
बदन की मेरी चाह थी तुम्हे,
उसे ही तूने जला दिया,
आग जो उस तेजाब में ही था,
तूने मुझपर लगा दिया ।
देख के शीशा डर जाती,
क्या यही मेरा संसार था,
ग्लानि नहीं तुझे थोड़ा भी,
कैसा तेरा प्यार था ?
दोष मेरा नहीं कहीं जरा था,
फिर भी उपेक्षित मैं ही हूँ,
तुम तो खुल्ले घुम रहे हो,
समाज तिरस्कृत मैं ही हूँ ।

ताने भी मिलते रहते हैं,
न्याय नहीं, जो अधिकार था,
अब भी करते दोषारोपण तुम,
कैसा तेरा प्यार था ?1
8 अप्रैल 2013 को भारतीय नारी ब्लॉग की 'बेटियों घर से निकलना देखभाल कर '' में कांधला [शामली ] में चार मुस्लिम बहनों पर हुए तेज़ाबी हमले को आधार बना कर ये कविता प्रस्तुत की गयी -

 बेटे नहीं किसी के न भाई किसी के ,
ये पले शैतान की गोद खेलकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !घूमते हैं शख्स कई तेजाब लिए हाथ ,
तुमसे उलझ जायेंगे ये जान-बूझकर ,
बेटियों घर से निकलना देख-भाल कर !  
मासूम बच्चियां भी अब हमारे समाज में सुरक्षित नहीं हैं। गम्भीर होती जा रही इस समस्या को भी भारतीय नारी ब्लॉग पर उठाया गया 13 मार्च 2013 को  मासूम बच्चियों के साथ किये जा रहे यौन अत्याचारों के लिए आधुनिक नारी को दोषी ठहराने की प्रवर्ति को अपनी ब्लॉग पोस्ट का विषय[[मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं ].
 बनाते हुए भारतीय नारी ब्लॉग की योगदानकर्ता शालिनी कौशिक ने यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया   -आधुनिक महिलाओं पर यह जिम्मेदारी डाली जा रही है तो ये नितान्त अनुचित है क्योंकि यह कृत्य इन बच्चियों के साथ या तो घर के किसी सदस्य द्वारा ,या स्कूल के किसी कर्मचारी या शिक्षक द्वारा ,या किसी पडौसी द्वारा किया जाता है और ऐसे में ये कहना कि वह उसकी वेशभूषा देख उसके साथ ऐसा कर गया ,पूर्ण रूप से गलत है यहाँ महिलाओं की आधुनिकता का तनिक भी प्रभाव नहीं कहा जा सकता .मासूम बच्चियों के प्रति यौन दुर्व्यवहार का पूर्ण रूप से जिम्मेदार हमारा समाज और उसकी सामंतवादी सोच है ,जिसमे पुरुषों के लिए किसी संस्कार की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती ,उनके लिए किसी नैतिक शिक्षा को ज़रूरी नहीं माना  जाता . यह सब इसी सोच का दुष्परिणाम है .ऐसे में समाज में जो थोड़ी बहुत नैतिकता बची है वह नारी समुदाय की शक्ति के फलस्वरूप है और यदि नारी को इसी तरह से दबाने की कोशिशें जारी रही तो वह भी नहीं बचेंगी और तब क्या हल होगा उनकी सहज कल्पना की जा सकती है.''3
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1-ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2016/01/Acidattack.html
2 -http://bhartiynari.blogspot.in/2013/03/blog-post_13.html
3-ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2013/04/blog-post_4.html
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*******सामयिक महिला सम्बन्धी घटनाओं व् बदलते सामाजिक मूल्यों पर प्रखर अभिव्यक्ति भारतीय नारी ब्लॉग की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता कही जा सकती है। किसी भी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया इस ब्लॉग के योगदानकर्ताओं -ब्लॉगर्स की विशेषता है और यह सन 2011 ई में स्थापित होने के बाद से घटी हर घटना के सम्बन्ध में प्रस्तुत ब्लॉग पोस्ट से जाना जा सकता है जैसे -
*जुलाई 2012  में गुवाहाटी में महिला के साथ एक पत्रकार द्वारा छेड़छाड़ की  घटी अमर्यादित घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुए भारतीय नारी ब्लॉग पर रविकर की ये पक्तियाँ पठन योग्य हैं -
-घृणित मानसिकता गई,  असम सड़क पर फ़ैल ।
भीड़ भेड़ सी देखती, अपने मन का मैल ।
अपने मन का मैल, बड़ा आनंद उठाती ।
करे तभी बर्दाश्त, अन्यथा शोर मचाती ।
भेड़ों है धिक्कार, भेड़िये सबको खाये  ।
हो धरती पर भार , तुम्हीं तो नरक मचाये ।।
औरतों के प्रति पुरुषों की दकियानूसी सोच से दो चार होते ही भारतीय नारी ब्लॉग के योगदानकर्ता नीरज पाल ने ''फिर इतना दिखावा क्यों '' पोस्ट में पुरुष प्रधान समाज से पूछ ही डाला -अभी बीते दिनों की ही बात है, ज्यादा समय नहीं गुज़रा है, गुडगाँव की एक बड़ी ही डेलिकेट पार्टी का सदस्य बनकर मैं एक मुशायरे में शामिल हुआ और जनाब जो देखने को मिला , वह मेरी आँखें चुधियाने के लिए काफी था, सच कहूँ तो बड़े ही उम्रदराज़, खुशमिजाज़ और अछे लोगों की महफ़िल थी और साथ में था बड़ा ही मौजूं बयान, और वो यह कि “ औरत सिर्फ देखने और भोगने के लिए होंती है, अन्यथा कुछ भी नहीं” मै शर्मसार था और मेरे दमाग में एक ही प्रश्न बार बार घूम रहा था की “फिर इतना दिखावा क्यूँ?”2
19 जुलाई 2014 की अपनी ब्लॉग पोस्ट में योगदानकर्ता शालिनी कौशिक ने लखनऊ में घटी बलात्कार की एक घटना को आधार बनाते हुए यही सन्देश प्रसारित करने का प्रयास किया कि आमजन की नज़र अब हर घटना पर है। प्रशासन को सजग होकर कार्य करना होगा। वे लिखती हैं - अभी दो दिन पहले ही ये समाचार समाचार पत्रों की सुर्खियां बना हुआ था और बता रहा था उत्तर प्रदेश के बिगड़ते हुए हालात की बदहवास दास्ताँ .एक तरफ महिलाओं के साथ उत्तर प्रदेश में दरिंदगी का कहर ज़ारी है और दूसरी तरफ कोई इसे मोबाईल और कोई नारी के रहन सहन से जोड़ रहा है .भला यहाँ बताया जाये कि एक महिला जो कि दो बच्चों की माँ है उसके साथ ऐसी क्रूरता की स्थिति क्यूँ नज़र आती है जबकि वह न तो कोई उछ्र्न्खिलता का जीवन अपनाती है और न ही कोई आधनिकता की ऐसी वस्तु वेशभूषा जिसके कारण आजके कथित बुद्धिजीवी लोग उसे इस अपराध की शिकार होना ज़रूरी करार देते हैं ?यही नहीं अगर ऐसे में उत्तर प्रदेश की सरकार यह कहती है कि यहाँ स्थिति ठीक है तो फिर क्या ये ही ठीक स्थिति कही जाएगी कि नारी हर पल हर घडी डरकर सहमकर अपनी ज़िंदगी की राहें तय करे .3
इनके अतिरिक्त अनवर जमाल द्वारा प्रस्तुत ब्लॉग पोस्ट -''यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?''[22 नवम्बर 2013 ]में तरुण तेजपाल द्वारा किये गए सहकर्मिणी के यौन शोषण के मुद्दे का विश्लेषण किया गया। डॉ श्याम गुप्त द्वारा प्रस्तुत ब्लॉग पोस्ट   ''भारतीय राजनीति के आकाश में नारियों का योगदान ....'' में वैदिक काल से लेकर वर्तमान राजनीति में महिलाओं के योगदान का विवेचन अत्यन्त गहराई के साथ किया गया - स्वतन्त्रता पश्चात काल में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनैतिक शक्ति का पूरे विश्व में डंका बजा | आज न जाने कितनी महिलायें मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, राजनयिक, ग्राम-प्रधान आदि बनाकर देश की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम किये हुए हैं, इसे सम्पूर्ण विश्व देख व जान  रहा है |

अप्रैल 2014 में दलित महिलाओं के सम्बन्ध में दिए गए विवादस्पद बयान के बाद जब बाबा रामदेव की निंदा हुई तो उसमे भारतीय नारी ब्लॉग के योगदानकर्ता तरुण कुमार सावन  ने सटीक शब्दों में अपनी राय रखते हुए कहा कि -प्रश्न सिर्फ यौग गुरू बाबा रामदेव के बयान का नहीं हैं,न ही भौगी आशाराम बापू का हैं।यह पूरे संत समाज पर लागू होता हैं। आख़िर वो समाज को किस रास्ते पर ले जाना चहाते हैं। यह बयान किसी नेता ने दिया होता तो और बात थी क्योंकि नेता तो जुबान के यूं भी कच्चे होते हैं।लेकिन यह संत के वचन हैं जिसकी गुंज दूर तक सुनाई देती हैं।संत समाज के माथे पे लगा यह वह कलंक हैं,जो गंगा नहाने पर भी नहीं धुलेगा।
 उमा भारती जी द्वारा घरेलू महिला के सम्बन्ध में की गयी अनुचित टिप्पणी [ ' 'वाड्रा को जेल भेजने की बात पर घरेलू महिला की तरह रो रही हैं प्रियंका ] को भी भारतीय नारी ब्लॉग पर हाथों हाथ लिया गया और 24 अप्रैल 2014 की पोस्ट में ये सन्देश दिया गया कि -''ऐसा ब्यान एक महिला का दूसरी महिला के खिलाफ सबसे अभद्र श्रेणी का बयान कहलाया जायेगा .''
महिला दिवस से लेकर वैलेंटाइन दिवस तक , लिव -इन -रिलेशनशिप से लेकर -बाल विवाह तक- महिला सरोकार से जुड़ा कोई ऐसा मुद्दा नहीं जो भारतीय नारी ब्लॉग की पोस्ट में न प्रकाशित हुआ हो। नारी गरिमा को पुनर्स्थापित करने में संलग्न इसके योगदानकर्ता नियमित रूप से ब्लॉग पोस्ट प्रकाशित कर महिला मुद्दों को बहस के केंद्र में बनाए रखते हैं जो कहीं न कहीं स्त्री सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है।

1 -14 जुलाई 2012 -ब्लॉग शीर्षक ''भीड़ भेड़ सी देखती, अपने मन का मैल ।''ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2012/07/blog-post_7839.html

2 -5 दिसंबर २०१४ -ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2014/12/blog-post_47.html
3 -लखनऊ की निर्भया की कहानी, पिता की जुबानी;ये है उत्तर प्रदेश की हवा सुहानी, ब्लॉग लिंक -http://bhartiynari.blogspot.in/2014/07/blog-post_2484.html
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निष्कर्ष -वास्तव में  हिंदी ब्लॉगिंग ने महिलाओं के साथ युगों युगों से किये जा रहे अन्यायों के विरूद्ध  अभिव्यक्ति प्रदान करने का एक व्यापक मंच प्रदान किया है। ''भारतीय नारी '' सामूहिक ब्लॉग पर दिन -प्रतिदिन प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट यही प्रमाण प्रस्तुत कर रही हैं। स्त्री स्वायत्ता के सटीक माध्यम के रूप में महिला ब्लॉगर अपने अनुभवों को संसार के समक्ष प्रस्तुत कर रही हैं , इससे बढ़कर हर्ष की बात क्या हो सकती है। भारतीय नारी ब्लॉग पर स्त्री के समानाधिकार जैसे गम्भीर मुद्दों को प्रखर ढंग से उठाकर इससे जुड़े ब्लॉगर्स ने स्त्री मुक्ति आंदोलन को गति प्रदान की है और नारी को धार्मिक -सामाजिक -आर्थिक -राजनैतिक रूप से पुरुष के समान दर्ज़ा प्रदान किये जाने की जोरदार वकालत की है। स्त्री जीवन के यथार्थ को चित्रित करने , उसके उत्पीड़न -शोषण को रोकने , सामाजिक परम्पराओं में गुँथी जाति ,धर्म , लिंग आधारित विषमता को दूर करने में '' भारतीय नारी '' ब्लॉग के योगदानकर्ताओं ने ''महिला सरोकारों '' के माध्यम से साहित्य एवं रचनाधर्मिता से स्वयं को जोड़ा है। निश्चय ही ''भारतीय नारी '' ब्लॉगपर प्रकाशित की जाने वाली हर पोस्ट महिला सरोकार से सम्बंधित विमर्श को एक नवीन दिशा प्रदान करेगी।