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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

happy new year -2011

मेरी ओर से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये स्वीकार करें !

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

एक नया सनकपन...

जातिवाद एक ऐसा शब्द है जो शायद भारत में कभी गैर-प्रासंगिक नहीं हो पायेगा .सात समुन्द्र पार तक अपनी मेधा क़ा लोहा मनवाने वाले हम भारतीय आज भी कितने संकुचित दायरे में सिमटे हुए हैं उसका उदहारण है आप सभी के घर के बाहर से आते -जाते ''वाहन'' .इन पर आगे या पीछे ध्यान  से देखिएगा चलाने  वाले  की जाति क़ा नाम लिखा होगा .हमारे क्षेत्र में तो ये फैशन काफी चल रहा है .किसी पर लिखा है -गुर्जर ,तो किसी पर -जैन ,नामदेव ,सैनी आदि  .बहुत समय से ये तो देखते आये थे कि रोब ग़ालिब करने के लिए गाड़ियों  व् बाइक्स  पर -पुलिस ,प्रेस आदि  तो लिखा रहता था किन्तु इस नए सनकपन क़ा क्या कीजिये ?क्या यह वही नयी पीढ़ी है जो प्रेम के नाम पर धर्म  व् जाति की दीवारें तोड़ डालने के लिए तो अति उत्सुक है पर मन में अब भी अपनी जाति के गर्व को सजाये बैठी है .ये नए भारत को किस नयी दिशा में ले जायेगे इस पर विचार करने की भी जरूरत है .मैं तो इन सनकियों से इतना ही कहना चाहूंगी कि हम सबसे पहले हिन्दुस्तानी है और उससे भी पहले एक इंसान .जातियों में न बटे  और न बांटे  .वाहनों पर लिखवाना ही है तो ''हिन्दुस्तानी ''ही लिखवाएं .देखिये  फिर  कितने गौरव  की अनुभूति  होती है  !

रविवार, 12 दिसंबर 2010

kayron laut aao manavta ki or

वाराणसी विस्फोट ने पिछले सभी जख्मों को हरा कर दिया .धमाके में दो -एक नन्ही सी बच्ची व् एक महिला की जान चली गयी .धमाके में मारी  गयी बच्ची के माता -पिता के दिल से पूछिए  ''कैसे सह पायेगे यह सदमा ?''कितने कायर और बुजदिल  हैवान है ये जो मासूमों को लगातार अपना शिकार बना रहे है ! ये हैवान जब गिरफ्त में आते है तो जेल में प्रताड़ित किये जाने की शिकायते कर सम्पूर्ण विश्व में मानवाधिकार की गुहार लगाते  है .कैसा मानवाधिकार ? जिस समय अंधी धार्मिकता,अंधे प्रतिशोध से लबालब भरे हुए अंधाधुंध गोलियां बरसाते  हुए ''कसाब '' अपने साथियों के साथ हजारों घरों को उजाड़ रहा था -तब वह क्या मानव था ?नहीं वो एक हैवान था.........फिर अब मानव कैसे हो गया ? गरीबी की दुहाई  मत दे ऐसे कायर .गरीबी अलग बात है और हैवान होना अलग बात .अपनी जिन्दगी की कीमत नहीं समझते तो कही एकांत में बारूद बांधकर  अपने जिस्म के चीथड़े उदा  ले .भीड़ में आकर मानव बम ....नहीं दानव बम बनकर क्यों मासूमो को क़त्ल कर रहे हो ?कूड़ेदान में ,स्कूटर में विस्फोटक छिपाकर रखने वाले कायरों क्या मिल गया एक नन्ही सी जान को उसके माता-पिता से जुदा करके ? जरा सोचो और इस अँधेरी राह पर से वापस लौट आओ --मानव जीवन की ओर ....बिना किसी प्रतिशोध की भावना क़ा जीवन व्यतीत करो और पश्चाताप भी  कर लो  मासूमों की अनगिनत  हत्याओं   क़ा    

रविवार, 5 दिसंबर 2010

imandari ki misal

हिन्दुस्तान दैनिक के ५ दिसंबर २०१० के अंक में छपी खबर ''छात्रा ने लौटाए स्कूल में मिले रूपये '' ने अनायास ही मेरा ध्यान आकर्षित किया .मुज़फ्फरनगर के भोपा के गॉव जौली के उच्च प्राथमिक विद्यालय  की छात्रा चंचल बेनीवाल ने यह साबित कर दिया क़ि''बच्चे मन के सच्चे होते है .''शनिवार की सुबह जब चंचल स्कूल पहुची तो उसे स्कूल के परिसर में एक हजार  रूपये मिले जिसे उसने उठाकर स्कूल के अध्यापक को दे दिए . अध्यापक श्री करतार सिंह जी ने जाँच के बाद रूपये सही व्यक्ति को दे दिए .ऐसी खबरे उदहारण है हमारी नई पीढ़ी के लिए और हमारे लिए .एक हजार रूपये देखकर किसका मन नहीं डोलेगा ? चंचल जैसी छात्रा की जितनी तारीफ की जाये कम है .उसके माता-पिता और शिक्षकों  द्वारा दिए गए संस्कार भी प्रशंनीय  है. '' शाबाश चंचल '' हमेशा ऐसे ही इमानदारी की मिसाल कायम करती रहना और ............आप भी.

बुधवार, 24 नवंबर 2010

ladkiyon par hi pratibandh kyon ?

उत्तर प्रदेश की शामली तहसील के लांक गाँव  की पंचायत में शराब न पीने , झगडा न करने ;भाईचारा बनाने आदि अच्छे फैसलों के साथ-साथ यह फैसला भी किया गया कि गाँव की लड़कियां मोबाईल क़ा प्रयोग न करे . मोबाईल के प्रयोग से युवा पीढ़ी के भटकाव क़ा खतरा रहता है .मेरी सोच में यह फैसला  उचित नहीं है क्योकि मोबाईल अगर लड़कियों को भटका रहा है तो लड़कों को क्यों नहीं ? यदि देखा जाये तो लडको की तुलना में लड़कियों के मोबाईल फोन प्रयोग करने क़ा प्रतिशत ही क्या है ? वास्तव में ऐसे फैसले समाज में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं ला सकते है .युवा वर्ग को लड़का-लड़की में कैसे बाँट सकते है ? मोबाईल पर लड़कियों के अशलील वीडियों बनाने वाले लड़के है तो क्या उनका मोबाईल प्रयोग जायज ठहराया  जा सकता है?अथवा किसी परेशानी में घर से बाहर लड़की क़ा घर पर मोबाईल से संपर्क करना नाजायज कहा जा सकता है? नहीं कभी नहीं !! कमी मोबाईल अथवा अन्य किसी भी गैजेट में नहीं है--- कमी है प्रयोग करने वाले के आचरण में .सभी माता-पिताओं ;शिक्षकों को इस ओर ध्यान देना होगा जिससे युवा-वर्ग भटकाव के मार्ग पर न बढे और लड़कियों पर अनुचित प्रतिबन्ध न लगाये जा सकें. 

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

betiyon ko bechra mat banaiye..

''हिन्दुस्तान '' दैनिक समाचार -पत्र के १० नवम्बर २०१० के अंक में ''दहेज़ में कार मांगने पर दुल्हन के पिता को हार्ट-अटैक ;मौत'' खबर पढ़कर आँखें नम हो गयी .बेटी की बारात २३ नवम्बर को आनी थी .दुल्हन के पिता कुछ दिन पहले सगाई की रस्म अदा क़र आये थे. शादी में ५१ हज़ार की नकदी के अलावा बाइक और फर्नीचर देना तय हुआ था . लड़के वालों ने फोन पर धमकी दे दी की यदि दहेज़ में कार देनी है तो बारात आएगी वर्ना कैंसिल समझो.'समझ में नहीं आता विवाह जैसे पवित्र संस्कार को ''ब्लैकमेलिंग' बनाने वाले ऐसे दानवों के आगे लड़की के पिता कब तक झुकते रहेंगे. अनुमान कीजिये उस पुत्री के ह्रदय की व्यथा क़ा जो जीवन भर शायद इस अपराध बोध से न निकल पायेगी कि उसके कारण उसके पिता की जान चली गयी.होना तो यह चाहिए था की जब वर पक्ष ऐसी ''ब्लैकमेलिंग'' पर उतर आये तो लड़की क़ा पिता कहे कि ''अच्छा हुआ की तुमने मुझे विवाह पूर्व ही यह दानवी रूप दिखा दिया.मेरी बेटी क़ा जीवन स्वाहा होने  से bach   गया '' पर ऐसा कब होगा और इसमें कितना समय लगेगा? ये कोई नहीं बता सकता.मै तो बस इतना कहूँगी----
            '''बेटियों को इतना बेचारा मत बनाइये;
      क़ि विधाता भी सौ बार सोचे इन्हें पैदा करने से पहले..''

रविवार, 7 नवंबर 2010

prashn--kaun ameer-kaun gareeb?

टी.vi. के एक कार्यक्रम में प्रस्तुतकर्ता---''दर्शकों आज हम लेकर आये हैं एक अलग -हटकर इंटरव्यू .एक ओर हैं भारत के सबसे अमीर व्यक्ति श्री अमीर और दूसरी ओर है bharat क़ा सबसे गरीब व्यक्ति ' बेचारा गरीब.' अब हम इनसे chand प्रश्न करके जानेगे क़ि श्री अमीर कितने सुख से जीवन बिताते हैं और बेचारा गरीब कितना दुखी रहता है?
प्रश्न१---आप दोनों यह बताये ki कितनी देर सो पाते है  रोज?
श्री अमीर--सच बताऊँ कभी-कभी मैं इतना व्यस्त रहता हूँ क़ि दिन भर में एक घंटे भी नहीं सो पाता.कभी इतना तनाव हो जाता है क़ि ए.सी. की ठंडक में और नरम-गरम गद्दे-लिहाफ से भी गर्मी-सर्दी में सुकून की नीद नहीं आती.
बेचारा गरीब--मैं तो किसी भी पेड़ की छाव में गर्मी व् अलाव जलाकर सर्दी में गहरी नीद में सो जाता हूँ. अब मेरी जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं होती isliye डर या तनाव कैसा.मुझे न कुछ खोने की चिंता और न कुछ सँभालने क़ा तनाव.[इसके साथ ही उसका जोरदार ठाह्का]
प्रशन२-- आप दोनों को खाने में क्या-क्या पसंद है?
श्री अमीर-अजी छोडये....ये प्रश्न ..पसंद नापसंद तो तब मायने रखता है जब मैं अपनी इच्छा से कुछ खा सकू.डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर ;डिप्रेशन और भी न जाने कितनी मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हूँ.डाक्टर के निर्देशानुसार सुबह शाम दवाइयां खाता हूँ .....जिन्दा हूँ!
बेचारा गरीब--मुझे तो सभी पकवान पसंद हैं.हलवा-पूरी.समोसे;चाट. जब भी मौका लगता hai जी भर कर खाता हूँ.
प्रशन३-अपने परिवार को कितना समय दे पाते है?
श्री अमीर--कई-कई महीने परिवार से नहीं मिल पाता.पत्नी सामाजिक कार्यों से बाहर जाती रहती है.बेटा अमेरिका में रहता है ,बेटी कनाडा में padti है .न मेरे पास समय है और न उनके पास.साल में एक दिन किसी तरह nikal कर साथ बीता लेते है.
बेचारा गरीब--अजी हमारा क्या?....हम सब तो साथ-साथ मजदूरी करते हैं,काम के साथ बतियाते भी रहते है.साथ बैठकर खाना खाते है.सारा परिवार साथ ही रहता है.
प्रशन४-- आगे जिन्दगी में क्या पाना चाहते है?
श्री अमीर-और दौलत;शोहरत .......नहीं...नहीं......थोडा सुकून,परिवार क़ा साथ ;अच्छा सवास्थ्य.
बेचारा गरीब---मैं तो संतुष्ट हूँ.कुछ पाने के चक्कर में तो सब आराम ही हराम हो जाता है मेरा तो बस एक ही मन्त्र है''दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ'''.
प्रशन५--किस se डरते है?
श्री अमीर-सब कुछ लुट जाने से.
बेचारा गरीब--किसी से नहीं.है ही क्या मेरे पास जो लुट जायेगा.मैं खुश हूँ.थोडा खाता हूँ पर आनद से,कुछ लुट जाने क़ा डर नहीं--सुकून ही सुकून हैं.
प्रस्तुतकर्ता---तो दर्शकों आपने आज के interview  की बातों से जान ही लिया होगा की बेचारा अमीर भी कितना गरीब है और श्री गरीब कितना सुखी है.interview कैसा लगा ?जरूर बताइयेगा.

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

yaad rakhiyega

हम अपनी खुशियों me इतने खो जाते  है क़ि हमे याद ही नहीं रहता क़ि इन खुशियों को मनाने क़ा अधिकार  हमे ऐसे  ही नहीं मिल गया. अभी karavaachoth क़ा utsav  बड़े उत्साह के साथ मनाया गया. बाजारों में खरीदारी करती महिलाओं क़ि ख़ुशी देखते ही बनती थी. व्रत रखकर सायंकाल को पति क़ा मुख देखकर; छलनी से चंद्रमा को देखकर;व्रत खोला होगा. अपने सदा सुहागन रहने की मन्नत मांगी होगी पर एक prshan मेरे ह्रदय में अनायास ही इस मौके पर दस्तक दे रहा है क़ि कितनी सुहागने पति -मुख व् चद्रमा -दर्शन से पूर्व उन लाखों शहीदों को dhanywad देती होंगी की 'आपके बलिदानों के कारण ही हमें आज यह सौभाग्य  प्राप्त हुआ है ?क्या सुहागनों ने उन 'अमर सुहागनों 'क़ा भी धन्यवाद किया होगा क़ि'यदि आप अपने पतियों को सीमाओं पर; खतरनाक ऑपरेशनों  पर ख़ुशी- ख़ुशी तिलक लगाकर विदा न करती तो शायद कितनी ही मांगों क़ा सिंदूर लुट जाता? 'अमर सुहागन' कौन hai ? इसका उत्तर मै अपनी इन पंक्तियों में दूंगी---
'हे शहीद क़ि प्राण प्रिय ;तू ऐसे शोक क्यों करती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से ही; हर दुल्हन मांग को भरती है;
सब सुहाग  क़ि raksha हित ;करवाचोथ व्रत करती हैं;
ये dekh के तेरी आँखों से ;आंसू क़ि धारा
 बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा ;हर दिल क़ि धड़कन कहती है;

जिसका प्रिय हुआ शहीद यहाँ ;वो 'अमर सुहागन 'रहती है.
शहीदों ;अमर सुहागनों के साथ-साथ ह्रदय से dhanyvad कीजिये उन बड़े दिल वाले माता-पिताओं क़ा ;जिन्होंने अपने 'ह्रदय के टुकडो'  को अपने दिल पर पत्थर रखकर भेज दिया  देश हित हेतु .'करवाचोथ' पर चूक गए तो क्या हुआ ''अहोई-अष्टमी' पर अपने बेटों को दुलारते हुए याद रखियेगा क़ि कंही 'संदीप उन्नीकृष्णन'[मुंबई आतंकवादी हमले में शहीद] के माता-पिता जैसे महान दंपत्ति भी है जिन्होनें इकलौते पुत्र को भी देश-सेवा में समर्पित कर दिया.याद रखेंगे न ! उन क़ा ह्रदय से धन्यवाद करना! 

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

masoom-musksrahat

क्या आपने भी यह महसूस किया है क़ि आजकल के बच्चों में वह मासूमियत-वह भोलापन नहीं दिखता जो पहले था. मैंने अपने निजी अनुभव में पाया क़ि जिन बच्चों को हम काफी laad करते रहे है;वे भी कई बार आंखे झुकाकर-आंखे फेरकर हमारे आगे से निकल जाते है और अगर आंख मिल भी जाये तो उनके होंठों पर मुस्कराहट तक नहीं आती.मेरी जानकारी के एक अच्छे-खासे घर के दो बच्चे[सात से दस साल क़ि आयु के] हमे बड़ी ढीठता के साथ देखते हुए निकल जाते है. अगर हम उन्हें बुलाये तो हाथ से मनाही का संकेत कर आगे बढ़ जाते है.कई बार तो यह लगता है क़ि आज के बच्चे हम से भी jyada बड़े हो गए है.हम आज भी अपने मित्रों को 'बॉय-फ्रेंड' 'गर्ल-फ्रेंड' के रूप में नहीं देखते पर आजकल के दस से बारह वर्ष के बच्चों क़ि बातों ने  मुझे चकित ही कर दिया. एक दिन मेरे घर की बाहर की सड़क पर इस आयु- वर्ग के तीन बच्चे खेल रहे थे तभी एक बच्चा कुछ दूर खड़ी अपनी क्लास क़ि sahpathhini से बात करने चला गया.इस पर एक बच्चा दूसरे बच्चे से बोला -'देख वो अपनी गर्ल फ्रेंड से बात कर रहा है.'एक अन्य घटना ने भी मुझे चकित कर दिया था.मेरे ही पड़ोस के कुछ बच्चे मेरे घर के बाहर लगी बेल को noch-nochkar कूड़ा फैला रहे थे.मैंने उन्हें danta तो वे शर्मिंदा न होकर आंख दिखाते हुए चले तो गए पर बाद में उन्होंने यह योजना बनाई की रोज कूड़ा फैलाकर जाया करेगे.यद्यपि वे मेरी सजगता के कारण सफल नहीं हो पाए.इतने छोटे बच्चों की इसी budhdhi देखकर मुझे  यह महसूस हुआ कि क्या बच्चे अब मासूम नहीं रहे?क्योंकि जब मै छोटी थी और किसी ने अपने घर के बाहर गिरे फूल उठने पर मुझे टोका था; मै घर भागकर आ गयी थी और मुझे कई दिन तक यह डर रहा था ki वे मेरे घर आकर मेरी शिकायत न करदे.आजकल के बच्चों के लिए तो बस मै यही प्राथना kar सकती हूँ कि ''हे प्रभु ! इनके होठों पर मासूम मुस्कराहट लौटा दो और उनके ह्रदय में वही कोमल भावनाए भर दो जिनके कारण बच्चे भगवान क़ा रूप कहलाते आये हैं!''

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

badta bhrashtachar utaardayee hum

बढ़ता  भ्रष्टाचार  ...जिम्मेदार कौन   !

हम अक्सर अपने देश की विकास गति बाधित होने ; समस्याओं का समाधान न होने अथवा भ्रष्टाचार के लिए अपने नेताओं को पूर्णरूप से उत्तरदायी ठहरा देते हैं;किन्तु सच्चाई के साथ स्वीकार करें तो हम भी कम जिम्मेदार  नहीं है. पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक कितने मतदाता है जो अपने घर आए प्रत्याशी से साफ-साफ यह कह दें क़ि हमें अपने निजी हित नहीं सार्वजानिक हित में आपका योगदान चहिये.हम खुद यह सोचने लगते है क़ि यदि हमारा जानकर व्यक्ति चुन लिया गया तो हमारे काम आसानी से हो जायेंगे.चुनाव -कार्यालय के उद्घाटन से लेकर वोट खरीदने तक का खर्चा हमारे प्रतिनिधि पञ्च वर्ष में निकाल   लेते हैं.हमारे प्रतिनिधि हैं ;हममें से हैं-भ्रष्ट  हैं -तो हम कैसे ईमानदार हैं?  नगरपालिका से लेकर लोकसभा तक में हमारा प्रतिनाधित्व करने वाले व्यक्ति उसी मिटटी; हवा; प्रकाश; जल ;से बने हैं-जिससे हम बने हैं. यदि हम ईमानदार समाज ;राष्ट्र  चाहते हैं तो हुमेंपहले खुद ईमानदार होना होगा . हमें खुद से यह प्रण करना होगा क़ि हम अपने किसी काम को करवाने के लिए रिश्वत-उपहार नहीं देंगे;यहाँ तक क़ि किसी रेस्टोरेंट के वेटर को टिप तक नहीं देंगे. ये टिप ;ये उपहार; रिश्वत- सरकारी  निजी विभागों   में बैठे  कर्मचारियों;वेटर; प्रत्येक विभाग  के ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारियोंमे लोभ रूपी राक्षस को जगाकर भ्रष्टाचार  का मार्ग प्रशस्त करते हैं.टिप पाने वाला आपका काम अतिरिक्त स्नेह से करता है किन्तु अन्य के प्रति ;जो टिप नहीं दे सकता ; उपेक्षित व्यवहार  करता है ...मतलब  साफ़ है प्रत्येक    के प्रति समान कर्तव्य निर्वाह -भाव से बेईमानी. सरकारी नौकरी लगवानी हो तो इतने रूपये तो देने ही होंगे-ऐसे विवश-वचन प्रत्येक  नागरिक के मुख पर है.क्यों नहीं हम कहते क़ि नौकरी लगे या न लगे मैं एक भी पैसा नहीं दूंगा..कुछ लोग इस सम्बन्ध में हिसाब लगाकर कहते हैं-एक बार दे दो फिर जीवन भर मौज करो! किन्तु आप यह रकम देकर न केवल किसी और योग्य का पद छीन रहें हैं बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी भी भ्रष्टाचार संस्कार रूप में दे रहें हैं. ईश्वर-अल्लाह-गुरुनानक-ईसा मसीह---- जिसके भी आप भक्त हैं ;जिसमे भी आप आस्था रखते हैं; उनके समक्ष खड़े होकर ;आप एकांत   में यदि यह कहें क़ि मैने  ये भ्रष्ट आचरण इस कारण या उस कारण किया है तो प्रभु हसकर कहेंगे--यदि तूने  कुछ गलत नहीं किया है तो मुझे बताकर अपने कार्य को न्यायोचित क्यों ठहराना चाह रहा है. अत: अपनी आत्मा  को न मारिये !भ्रष्टाचार को स्वयं के स्तर से समाप्त करने का प्रयास कीजिये.