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मंगलवार, 31 मई 2011

भ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन ?




१५ अगस्त १९४७ को भारतवासी विदेशी दासता से मुक्त हुए .भारतीय संविधान के अनुसार हम भारतीय ''प्रभुत्व संपन्न गणराज्य के नागरिक ' हैं परन्तु विचारणीय प्रश्न यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमने जिस राष्ट्र का सपना संजोया था क्या आज का भारत वही भारत है ?...जिन संकल्पों के साथ देश के सामाजिक -आर्थिक विकास की आधारशिला रखी गयी  थी क्या हम उन पर अटल रहे ?..आँखें खोल कर देखिये आज हमारा राष्ट्र किस गंभीर समस्या से जूझ रहा है .पिछले कुछ समय में भ्रष्टाचार के अनेक मामलें जिनमें -२जी स्पेक्ट्रम घोटाला ,.राष्ट्रमंडल खेल से सम्बंधित घोटाला ,आदर्श सोसाइटी घोटाला,आई .पी. एल .घोटाला ,एल.आई.सी.का आवास कर्ज घोटाला आदि प्रमुख हैं -उभरकर सामने आये हैं .इस स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आज हमारे समक्ष ''भ्रष्टाचार ' ''एक चुनौती बनकर खड़ा हो गया है .यद्यपि ''भ्रष्टाचार'' देश के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है किन्तु आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि आज तक बड़े-बड़े घोटालों में लिप्त भ्रश्ताच्रियों को कोई सजा नहीं मिल पाई क्योकि भ्रष्टाचार निवारण के लिए जो भी तंत्र बनाये गए -वो चाहे विभागीय जाँच हो या केन्द्रीय सतर्कता आयोग ,लोकायुक्त अथवा सी.बी.आई.-ये सब एजेंसिया भ्रष्टाचार की आंधी को थामने में पूर्णतया  विफल रही है .                                        ''ट्रांसपेरेंसी इंटर्नेशनल   'से लेकर 'ग्लोबल फिनांशियल इंटीग्रीटि  [g.f.t.] की ताजा रिपोर्ट भी यह संकेत करती है कि सन १९९०-९१ में अपनाये उदारीकरण के पश्चात् हमारे देश में भ्रष्टाचार तेज़ी से बढ़ा है  .ट्रांसपेरेंसी इंटरनॅशनल  की रिपोर्ट के अनुसार २००९ में भारत भ्रष्टतम राष्ट्रों की सूची में ८४ वें नंबर पर था ,लेकिन अब और भ्रष्ट होकर ८७ वें स्थान पर पहुँच चुका है.
      हर ओर भ्रष्टाचार है -चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो अथवा नौकरशाही  ,न्यायपालिका हो अथवा सेना -राजा-प्रजा सब भ्रश्तर में बराबर के जिम्मेदार हैं .लीलाधर जूगडी की ये पंक्तियाँ यहाँ सटीक  बैठती  हैं -

                                       ''इस व्यवस्था में 
                                         हर आदमी कही न कही चोर है .''


*भ्रष्टाचार आंकड़ों पर एक नज़र -

*स्वतंत्रता के पश्चात् जो महाघोटाले हुए हैं उनमे दस बड़े घोटालें इस प्रकार हैं -बोफोर्स घोटाला ,हर्षद मेहता कांड ,केतन पारिख कांड,हवाला घोटाला ,चारा घोटाला ,तेलगी घोटाला ,सत्यम घोटाला ओर २जी स्पैक्ट्रम घोटाला .इन दस महाघोटालों में एक अनुमान के अनुसार घोटालेबाज जनता का तीन लाख करोड़ रूपया हजम कर गए .कहने की आवश्यकता नहीं कि इतनी बड़ी रकम से देश को विकास पथ पर अग्रसर करने में कितनी सहायता मिलती .घोटालों में सीधे तौर पर राजनेताओं व् नौकरशाहों की जुगलबंदी सामने आई . 

*एक अनुमान के अनुसार स्विस बैंक में भारतीयों का ७० लाख करोड़ रूपया जमा है .कानूनविद रामजेठमलानी का मानना है कि यदि यह पैसा भारत वापस आ जाये और आज की जनसँख्या के हिसाब से सारे परिवारों में बाँट दिया जाये तो प्रत्येक भारतीय परिवार को ढाई लाख रूपये मिलेंगें .भारत की अर्थव्यवस्था अगले तीस साल तक के लिए कर्ज़ रहित हो जायेगीऔर विदेशों से लिया गया सारा क़र्ज़ भी चुकता हो जायेगा किन्तु क्या इतने भ्रष्ट राजनैतिक परिवेश में ये पैसा वापस आने की उम्मीद भी की जा सकती है ?

*राजनीतिज्ञों के पश्चात् देश का सञ्चालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नौकरशाहों पर आरोप है कि वे प्रतिवर्ष ७ अरब डॉलर यानि ३१५ अरब रूपये डकार जाते हैं .नीरा यादव ,रवीन्दर सिंह,गौतम गोस्वामी   ,केतन देसाई का नाम भ्रष्टाचार के क्षेत्र में काफी जोर से उछला है .

*सेनाएं अपने त्याग व् बलिदान के लिए जानी जाती हैं किन्तु आज भारत में भ्रष्टाचार की दीमक इन्हें भी खोखला कर रही है .१९४८ में जीप घोटाला  ,१९७० के दशक में घटिया कम्बल खरीदने पर हंगामा से लेकर घोटालेबाज इतनी नीचता पर उतर आये कि शहीद जवानों के लिए खरीदे गए ताबूतों में भी पैसा खाने से पीछे न हटे.

*देश की न्यायपालिका खुद भ्रष्टाचार के घेरे में हैं .अपने पक्ष में फैसला करवानें के उदेश्य से ,जमानत हासिल करने आदि के लिए रिश्वत की पेशकश होते ही कई न्यायाधीशों  का ईमान डोल जाता है .जस्टिस वी.रामास्वामी ,जस्टिस शमित मुखर्जी  ,जस्टिस सौमित्र सेन नयायपालिका के दमन पर दाग की भांति हैं .ये और कई अन्य न्यायिक अफसरों से लेकर बाबुओं की अदालत में घूसखोरी की प्रवर्ति ने न्यायालयों को दलाली का अड्डा बना डाला है .

*अन्य घोटालों में वर्ष १९९६ में हुए चारा घोटाला में ६५० करोड़ की चपत लगी .झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर राज्य के विकास के ४हजर करोड़ के घोटालों का आरोप लगा .

*सन २०१० में तो घोटालों की भरमार रही .कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में ३.१८ करोड़ हजम किये गए .इस घोटाले को सभ्यों द्वारा डाली गयी डकैती का नाम भी दिया गया .आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर आरोप है कि इसमें उनकी मुख्य भूमिका है .आजकल सी.बी.आई. रिमांड पर है .१००० करोड़ रूपये का आदर्श सोसाइटी घोटाला [शहीदों के परिवारों के लिए बने फ़्लैट ] नैतिकता की सभी सीमाओं को लाँघ गया .नेताओं और रीयल स्टेट के दलालों का गठजोड़ इस घोटाले में सारी रकम डकार गया .२जी स्पैक्ट्रम आवंटन मामले में १.७६ लाख रूपये का घोटाला हुआ .६०० करोड़ रूपये का कर्नाटक जमीन घोटाला भी चर्चा में रहा .

                     उपरोक्त घोटालों के अतिरिक्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध काम करने वाली संस्था केन्द्रीय सतर्कता आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े हो गए जब सर्वोच्च न्यायलय ने पी. जी. थॉमस की नियुक्ति पर प्रश्नचिह्न लगा दिए .कौन है इन सब घोटालों के लिए जिम्मेदार? केन्द्रीय सर्कार,राज्य सरकार,नौकरशाही ,भ्रष्ट न्यायलय या हम सब ?वर्तमान केन्द्रीय सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों पर नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने रोचक टिप्पणी देकर पिछली सरकारों के आचरण पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए .उन्होंने कहा कि -''मौजूदा  सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है लेकिन मैं यह नहीं मानता कि यह कोई नई परिघटना है .यदि पिछली सरकार की जाँच की जाये तो वहां भी वही कहानी होगी .''अर्थात भ्रष्टाचार के लिए सत्ता में बैठे लोग जिम्मेदार हैं -यह मान लिया जाये किन्तु सेना में भ्रष्टाचार के मुद्दे  पर दी गयी एअर मार्शल [रिटायर्ड] ए. के.सिंह की टिप्पणी भ्रष्टाचार के बढते हुए जंजाल हेतु सारे समाज को ही इसके दायरे  में लेती है . .वे कहते हैं -''जो समाज में हो रहा है उससे सेना भी अछूती नहीं है .इसी समाज के लोग सेना में आते हैं इसलिए यह कहना कि अकेला सेना में  भ्रष्टाचार बढ़ा  है ठीक नहीं .समाज के सभी हिस्सों में भ्रष्टाचार बढ़  रहा है .''

*भ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन ?

समाज में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है तो आखिर दोषी कौन है ?राजनीति  ,नौकरशाही ,पुलिस विभाग,न्यायपालिका में पदासीन लोग कहाँ से आते हैं ?कौन हैं वे ?वे भी तो हमारे द्वारा चुने जाते हैं ,हमारे परिवार -समाज का ही तो हिस्सा हैं हैं .एक अनुमान कहता है की अस्सी प्रतिशत भारतीय जनता मानती है किहमारे नेता भ्रष्ट हैं किन्तु जरा अपने गिरेबान में झांककर देखिये कहीं आप अपने गली-मोहल्ले के इमानदार राजनैतिक कार्यकर्त्ता को ठुकराकर बाहुबली क्षेत्रीय  व्यक्ति को तो नहीं चुनते ?
                                     जंतर-मंतर पर नारे लगाने और अन्ना की जय-जयकार करने वालों में कितने  हैं जो अदालत में अपना काम निकलवाने  ,अपने बच्चे के अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाने हेतु -घूस ,डोनेशन,टिप,खर्चा-पानी आदि का सहारा नहीं लेते ?यह ठीक है कि बड़े-बड़े घोटालों में नेताओं -नौकरशाहों-कार्पोरेट लौबी का गठजोड़ ही सब हजम कर जाता है किन्तु क्या ये सभी हमेशा से भ्रष्ट थे अथवा इन्हें भ्रष्ट होने का मौका हमने दिया .हम चुप रहना जानते हैं ,सहन करना जानते हैं,सब कुछ देखकर नज़रअंदाज करना जानते हैं तो फिर भ्रष्टाचार पर शोर क्यों और वो भी जमीनी स्तर पर नहीं .
                                 आज सभी के दिल में धुक-पुक है कि १५ अगस्त तक जन लोकपाल विधेयक पास हो पायेगा या नहीं पर हमारी जैसी सोयी हुई जनता इसके पास होने पर भी भ्रष्टाचार का क्या बिगाड़ पायेगी ?हम क्यों उम्मीद करते हैं कि नेता बदले,नौकरशाह बदले-हम सबसे पहले खुद को क्यों नहीं बदलना चाहते  ?हम अपने अंतर्मन तक को तो समझा नहीं पाते फिर भ्रष्टाचार को समूल नष्ट क्या कर पाएंगे ?
                                  हम सब भ्रष्ट हैं क्योंकि हम प्रत्येक अवसर पर अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबाते हैं .पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलम जी के शब्दों में -''यदि वह अपनी अंतरात्मा की आवाज नहीं सुन सकता है तो यह भ्रष्टाचार की निशानी है क्योंकि ऐसा व्यक्ति सही और गलत में फर्क नहीं कर सकता .''
                  इसलिए सर्वप्रथम हमें स्वयं को सुधारना होगा .भ्रष्टाचार कैसे मिटे इस सम्बन्ध में डॉक्टर त्रिलोचन शास्त्री जी के द्वारा दिए गए सुझाव यहाँ बतलाना सार्थक रहेगा -
''हमें पूरे तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने तीन कारकों पर काम करने की आवश्यकता  है -
१-सरकार पर बड़े-बड़े उद्योग जगत,कार्पोरेट और पूंजीवादियों की मजबूत पकड़ को कम  करना होगा .
२- हमें निचले स्तर पर घूस लेने की प्रवर्ति के खिलाफ एक नई और कारगर रणनीति बनाने की जरूरत है .
३- इसके खिलाफ बुद्धिजीवियों ,स्वयंसेवी संगठनों और मीडिया को आगे आना होगा .जब तक भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा नहीं बनेगा -इसकी सफाई नहीं होगी .
                              इसके अतिरिक्त परिवार व् समाज को अपनी जिम्मेदारी उठानी होगी .डॉक्टर अब्दुल कलाम जी का यह कथन यहाँ सटीक बैठता है -'' देश को भ्रष्टाचार से मुक्त बनाने का काम माता-पिता और अध्यापक ही कर सकते हैं .'' हमें अपनी समस्त आत्मशक्ति को जगाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना होगा क्योंकि इसे बढ़ावा देने के वास्तविक दोषी भी तो हम ही हैं -
                   '' छोड़ विवशता वचनों को व्यवस्था धार बदल डालें ,
                 समर्पण की भाषा को तज क्रांति स्वर में ललकारें ,
              छीनकर जो तेरा हिस्सा बाँट देते हैं ''अपनों'' में 
           लूटकर सुख तेरा सारा लगते सेंध सपनों में ;
                 तोड़कर मौन अब अपना उन्हें जी भर के धिक्कारें 
     समर्पण की भाषा को तज क्रांति स्वर में ललकारें .''

                                                      शिखा कौशिक 


                        
                 

14 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bharshtachar ka vistrit vishleshan kiya hai aapne aur bilkul sahi kaha hai''ki is vyavastha me har aadmi kahin n kahin chor hai''.

Mariolino ने कहा…

ciao sono italiano. In Italia e nel mondo, ci sono gli stessi problemi di corruzione, molto difficili ad essere bloccati e il vostro problema mi conforta, almeno sappiamo di non essere soli con questo guaio.

Mariolino ने कहा…

magari ho scritto molto male ma spero tu riesca comunque ad interpretare qualcosa, almeno per rincuorarti un po'. In Italia ci sono appena state delle elezioni e tutta la vecchia dirigenza è stata mandata a casa. Non cambierà molto ma almeno si sarà capito che si può anche restare senza i privilegi del comando per 5 anni.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

भ्रष्टाचार जैसे विकट विषय पर बहुत ही सामयिक एवं सार्थक लेख ...
सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के दोषी हम ही हैं ...
अपने छोटे -छोटे स्वार्थों की पूर्ति अथवा कामों को आसानी से निपटाने हेतु रिश्वत को सुविधा शुल्क के रूप में देना हमारी सामान्य दिनचर्या में शामिल हो चुका है |

'बड़े चोर को गाली देते , हम हैं छोटे चोर
हम हैं छोटे चोर..... बड़े को गाली देते हैं '

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

जिसदॆश का परधानमन्त्री यॆ कह दॆ की मै मजबुर हु! अब उससॆ आगॆ सॊचनॆ विचार करनॆ का रह ही क्या गया हैऔर यॆ दॆश तॊ भगवान भरॊसॆ ही चलता था,चल रहा है ऒर चलता रहॆगा.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

सुन्दर लेख पढ़वाने के लिए आभार!

रेखा ने कहा…

इस बिषय पर मेरी पोस्ट यहाँ पढ़े .

http://achal-anupam.blogspot.com/2011/04/blog-post_27.html

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

आपका लेख सार गर्भित है_बधाई स्वीकरिए।
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भ्रष्टाचार के संस्कार घर से पड़ते हैं। प्राय: देखा गया है कि हमारी भक्ति-भावना में आत्म- शोधन, चरित्र-निर्माण पर बल नहीं होता, बिना श्रम किए मुफ्त का माल पा जाने की ओर अधिक होता है। गड़बडी यहीं से पैदा होती है। बचपन में बच्चा दस-पाँच रुपए का प्रसाद देवताओं पर चढ़ा कर उत्तीर्ण करा देने की कामना करते हैं। यदि भगवान भरोसे सफलता मिल जाती है तो हौसला बढ़ जाता है। और वह श्रम-हीन जीवन की ओर कदम बढ़ा देता हैं। आगे आदत के अनुसार बड़े काम बनवाने के लिए कहीं बड़ी रकम देनी पड़ती है तो शर्म नहीं लगती है। वह उसे सेवा शुल्क समझने लगता है। इसे वही लोग सेवा-शुल्क समझते हैं, जिनके पास समय की कमी है और भ्रष्टाचार में चढ़ाए गए धन से अधिक भ्रष्टाचार से वसूल कर लेने का जरिया है। भ्रष्टाचार की असल मार उन पर पड़ती है जिनके पास उसका मुंह बंद करने के लिए न धन होता और न कोई जरिया।
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’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सार्थक और सारगर्भित आलेख शिखा जी ! आपकी ओजपूर्ण लेखनी को सलाम ! इसमें कोई संदेह नहीं कि भ्रष्टाचार की दीमक ने ना केवल देश को खोखला किया है आम आदमी की सोच को भी कुतर डाला है ! इसी विषय पर मेरा आलेख भी पढ़ कर देखें ! सार्थक लेखन के लिये बहुत बहुत बधाई !
http://sudhinama.blogspot.com/2011/05/blog-post_30.html

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bebak lekhan!
badhai......

Coral ने कहा…

बहुत सार्थक लेख ....

prerna argal ने कहा…

correption per bahut vistrat lekh.yeh hamaare desh ki bahut badi samasyaa to hai hi.per is per sabko milkar hatane kr liye kasam leni hogi.dena wala bhi le aur lene wala bhi.itane achche lekh ke liye badhaai sweekaren.



please visit my blog and feel free to comment.thanks.

Mariolino ने कहा…

il denaro di pochi ricchi è come l'acido nella miseria dei poveri. Tutto può corrompere tutto può nascondere.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए हम सब कहीं न कहीं दोषी हैं .
गलत को चुपचाप सहना भी तो गुनाह है .
अच्छी पोस्ट , सार्थक लेख ... बधाई !