हमारे जीवन के हर दिन पर आज बाजार की नजर है .नव वर्ष का प्रथम दिन हो या वेलेंटाइन डे ,होली हो या दीपावली ,रक्षाबंधन दशहरा हो या ईद हो या लोहड़ी-क्रिसमस सब दिन बाजार के निशाने पर.मोबाइल कम्पनियां हों या टी.वी.,कार,वाशिंग मशीन की कम्पनियां लोगों को त्यौहार के बहाने लुभाने में कसर नहीं छोडती.हद तो तब हो जाती है जब ये कम्पनियां अपने विज्ञापन कानूनों का उल्लंघन करते हुए विवाह उत्सव पर अपनी वस्तु को खरीदने का खुलेआम प्रचार करती है.देखिये-
ये कौन नहीं जानता की मोटरसायकिल से लेकर कार तक की डिमांड वर पक्ष वधु पक्ष से करता है और इस डिमांड ने लाखों वधुओं को असमय कालका ग्रास बना डाला .एक ओर जहाँ सुधि
वर्ग यह मांग करता रहा है कि विवाह आदि उत्सव सादगी के साथ संपन्न किये जाये वहीँ ये कम्पनियां इस पवित्र संस्कार को भी भुनाने में लगी हुई है .
शैम्पू के विज्ञापन देखिये - छोटी बच्चियों को बाल बढाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है .विज्ञापन में बच्ची लम्बे बाल खोलकर स्कूल जाती हुई दिखाई जाती है .ऐसे जाते है बच्चे स्कूल ?ऐसे विज्ञापन बच्चों को भ्रमित करते हैं औए माता-पिता के सिर का दर्द बन जाते हैं .
हमारी भावनाओं का व्यावसायिक लाभ उठाने में चतुर ये कम्पनियां हर उस शख्स को अपना ब्रांड एम्बेसडर बना देती है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने क्षेत्र में
नाम कमा लिया हो .अमिताभ बच्चन से लेकर सुशील कुमार तक -
एक सिर का तेल ए. सी. से ज्यादा ठंडक देता है और एक वाशिग पाउडर कपडे को नए से भी ज्यादा चमकदार बना देता है -ऐसे विज्ञापन क्या साबित करते हैं ?ये कम्पनियां आखिर हमे मानसिक तौर पर इतना कमजोर क्यों मानती हैं ?भावुक बनाकर -बेवकूफ बनाकर --इन्हें अपना माल बेचना है चाहे इससे हमारा -हमारे समाज का कितना भी अहित हो !
हमे अब इनसे सजग रहना होगा .जब भी कोई विज्ञापन हमारी भावनाओं को भुनाना चाहे -हमे उसका पुरजोर विरोध कर अपना पक्ष रखना ही होगा वर्ना ऐसे विज्ञापनों के लिए तैयार हो जाइये -
''माँ की ममता से मीठी है अपनी घुट्टी ;
ले लो ये साईकिल करती गाड़ी की छुट्टी ;
पत्नी से ज्यादा हितकारी कार हमारी ;
इस टैबलेट से मिट जाएगी हर बीमारी ;
विज्ञापन ऐसे सबको हैरान करेंगे ,
विज्ञापन की दुनिया की चलो सैर करेंगे .''
ये कौन नहीं जानता की मोटरसायकिल से लेकर कार तक की डिमांड वर पक्ष वधु पक्ष से करता है और इस डिमांड ने लाखों वधुओं को असमय कालका ग्रास बना डाला .एक ओर जहाँ सुधि
वर्ग यह मांग करता रहा है कि विवाह आदि उत्सव सादगी के साथ संपन्न किये जाये वहीँ ये कम्पनियां इस पवित्र संस्कार को भी भुनाने में लगी हुई है .
शैम्पू के विज्ञापन देखिये - छोटी बच्चियों को बाल बढाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है .विज्ञापन में बच्ची लम्बे बाल खोलकर स्कूल जाती हुई दिखाई जाती है .ऐसे जाते है बच्चे स्कूल ?ऐसे विज्ञापन बच्चों को भ्रमित करते हैं औए माता-पिता के सिर का दर्द बन जाते हैं .
हमारी भावनाओं का व्यावसायिक लाभ उठाने में चतुर ये कम्पनियां हर उस शख्स को अपना ब्रांड एम्बेसडर बना देती है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने क्षेत्र में
नाम कमा लिया हो .अमिताभ बच्चन से लेकर सुशील कुमार तक -
एक सिर का तेल ए. सी. से ज्यादा ठंडक देता है और एक वाशिग पाउडर कपडे को नए से भी ज्यादा चमकदार बना देता है -ऐसे विज्ञापन क्या साबित करते हैं ?ये कम्पनियां आखिर हमे मानसिक तौर पर इतना कमजोर क्यों मानती हैं ?भावुक बनाकर -बेवकूफ बनाकर --इन्हें अपना माल बेचना है चाहे इससे हमारा -हमारे समाज का कितना भी अहित हो !
हमे अब इनसे सजग रहना होगा .जब भी कोई विज्ञापन हमारी भावनाओं को भुनाना चाहे -हमे उसका पुरजोर विरोध कर अपना पक्ष रखना ही होगा वर्ना ऐसे विज्ञापनों के लिए तैयार हो जाइये -
''माँ की ममता से मीठी है अपनी घुट्टी ;
ले लो ये साईकिल करती गाड़ी की छुट्टी ;
पत्नी से ज्यादा हितकारी कार हमारी ;
इस टैबलेट से मिट जाएगी हर बीमारी ;
विज्ञापन ऐसे सबको हैरान करेंगे ,
विज्ञापन की दुनिया की चलो सैर करेंगे .''
11 टिप्पणियां:
बहुत सही बात कह रही हैं आप
.विज्ञापन की रुपहली दुनिया आधा सच आधा-झूठ.
इसके सुनहरे जाल में उलझा जो भी बन गया उसका पूरा भूत.
बहला-फुसलाकर बोले गए झूठ को विज्ञापन कहते हैं।
प्रबुद्ध लोग इसकी मायावी चाल को समझने लगे हैं लेकिन अशिक्षित वर्ग बुरी तरह इसकी गिरफत में है।
शिखा कौशिक जी!
क्या शिक्षित और क्या अशिक्षित हर वर्ग बुरी तरह से इसकी गिरफ़्त में है। बाजारवाद किस तरह से ठगते हुए हमें तबाही की ओर ढ़केल रहा है इसका चिठ्ठा आपने बहुत करीने से खोला है। बधाई। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
विज्ञापन सच मुच जन मानस की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं.
आप का आलेख बहुत बढिया लगा.
विज्ञापनों की मायावी दुनिया में यही हो रहा है.... सटीक आलेख
विज्ञापन की रुपहली दुनिया आधा सच आधा-झूठ बढिया आलेख .
ye sab ankho ka dhokha hai dost aapne bilkul sahi kaha
सत्य कहा..इस मायाजाल में सब उलझते ही जा रहे हैं..!!
सार्थक आलेख !
बधाई !
शिखा जी , तीन चार अलग अलग ब्लोग पर आपकी भिन्न भिन्न रचनाएं पढी ! सभी एक से बढ कर एक और सामयिक विषयों के अनुरूप लगी । सार्थक लेखन के लिये बधाई !
dost isme koi bhi kush nahi kar sakta. aur har koi sabkush kar bhi sakta hai. bas ghar se shuruat karne ki der hai. har shaks apne ghar main iska virodh kare badlav nazar ane lagega.
shukriya
अब विज्ञापन कम्पनियों ने बच्चों को हथियार बना लिया है ...उनके माध्यम से ये घर घर में घुस आई है.....
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