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शुक्रवार, 3 जून 2011

पिता के साथ धोखा मत कीजिये !

पिछले वर्ष हमारे जिले में एक प्रेमी युगल घर से फरार हो गए थे .पुलिस ने दो लाशों की शिनाख्त उन दोनों के रूप में कर भी दी थी .क़त्ल के आरोप में लड़की के पिता-भाई  को पुलिस ने  गिरफ्तार कर लिया  और १४-१५ वर्षीय भाई ने पुलिस के समक्ष यह स्वीकार कर लिया कि उसने ही ये क़त्ल किये हैं .कहानी में मोड़ तब आया जब फरार प्रेमी युगल जिन्दा वापस लौट आये .पुलिस के पास इस बात का जवाब नहीं था कि यदि ये दोनों जिन्दा हैं तो वे लाशें किसकी थी ?बाद में लड़के के घर वालों ने लड़की को स्वीकार कर लिया और उसके गर्भ में पल रहे शिशु को भी .ये तो इस कहानी का सुखद अंत हो गया पर उस लड़की ने पिता के विश्वास को जिस तरह तोडा है कम से कम मैं तो उससे कभी सहमत नहीं हो सकती .वह लड़की घर से बाहर अपनी मौसी के यहाँ रहकर कोई प्रिओफैनल कोर्स कर रही थी .जब हमारे माता-पिता इस पुरुष प्रधान समाज में भी हमें यह मौका देते है कि हम  आर्थिक रूप से सक्षम बन सकें  तब हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम घर से बाहर रहकर  भी अपने माता पिता की इच्छाओं का ध्यान  रक्खे .मेरी जानकारी की एक अति विदुषी  महिला प्रवक्ता हैं .वे बताती हैं कि उनकी रुचि विज्ञानं विषय में थी किन्तु इसके लिए को .एड  .कॉलिज में प्रवेश लेना पड़ता .जिस समय उनके प्रवेश लेने की बात थी तभी एक लड़की किसी कॉलिज के  लड़के के साथ घर से भाग गयी और उनके पिता ने इस डर से कि कंही हमारे साथ भी ये हादसा न हो जाये उनका उस कॉलिज में प्रवेश नहीं कराया .असंयमित  ऐसी लडकिया यह नहीं सोच पाती कि उनके एक गलत कदम से कितनी लड़कियों का भविष्य फिर से चौखट के भीतर धकेल दिया जाता है .ऊपर जिस घटना का जिक्र मैंने किया है उसमे बाद में यह बात भी सामने आई कि लड़की के पिता ने उसके इस कदम से शर्मिंदा होकर जहर खा लिया था इसी कारण छोटे भाई ने क़त्ल का आरोप अपने पर लेकर अपने पिता को पुलिस के उत्पीडन से बचाने का प्रयास किया था .मैं केवल इतना कहना चाहूंगी ऐसी लड़कियों से कि जब आप ऐसे कदम उठाती हैं तब एक बार अपने पिता के बारे में सोचिये जिसने आपको सब कुछ दिया पर आप केवल अपने स्वार्थ में अंधी होकर उनकी भावनाओं  से धोखा कर जाती है .
                                           शिखा कौशिक 

15 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

sahi vicharon se bhara aalekh jo aaj kee lagbhag poori yuva peedhi ko padhna chahiye.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आप धन्य है, जो एक लेडी होकर इतनी गहरी बात के बारे में लेख लिखा है,
आज जब मां बाप बच्चों को पूरी छूट देते है, तो उन्हें भी मर्यादा में रहना ही चाहिए,

Unknown ने कहा…

अगर आप की जैसा आज के बच्चे समझने लगे तो शायद ऐसे हादसे न हो
vikasgarg23.blogspot.com

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

शिखा जी बहुत ही विचारणीय और महत्वपूर्ण बात उठाई है आपने .....
आपको इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहूंगी .....
जरा सी गलती से कई ज़िंदगियाँ बर्बाद हो सकती हैं ......
माता-पिता बच्चों का कभी बुरा नहीं चाहते ...
उन्हें विश्वास में लेकर ऐसे कदम उठाने चाहिए ...

रेखा ने कहा…

माता पिता तो अपने बच्चो का कभी बूरा नहीं चाहते है. बच्चे ही गलतियाँ कर जाते है.

रेखा ने कहा…

माता पिता तो अपने बच्चो का कभी बूरा नहीं चाहते है. बच्चे ही गलतियाँ कर जाते है.

Vivek Jain ने कहा…

बहुत ही सार्थक पोस्ट है ये, बधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Sunil Kumar ने कहा…

विचारणीय पोस्ट ,आँखें खोलने में सक्षम , आभार

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

माता पिता का मान रखना भी बच्चों की जिम्मेदारी है.....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

आपके विचारों से युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिले, यही कामना करता हूं।

नीलांश ने कहा…

bahut accha likha aapne......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छी सोच है आपकी बहुत ... किसी भी ऐसे कदम को उठाने से पहले लड़का और लड़की दोनो को पीएचए वालों के बारे में ज़रूर सोचना चाहिय ....

रविकर ने कहा…

धीरे-धीरे ही सही विद्वानों के सत्संग का लाभ उठाने लग पड़ा हूँ.
दीदी जिद्दी है की आप.
आकलन करने का प्रयास रहेगा मेरा .
प्रथम पुरस्कार की अंधेर (देर तो बहुत हो गई) से ही सही पर ---
बहुत-बहुत बधाई

रविकर ने कहा…

@ मानव जाति मेरा परिवार है और मैं अपने आस-पास विचरण करने वाले जीवों को भी उतना ही स्नेह करती हूँ जितना अपने परिवार से |

कई जीव मेरी इस कविता में भी हैं, प्रभु से निवेदन है कि हमेशा पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व का सानिध्य आपको प्राप्त हो |

भोग-विलासी दुनिया में जो जीव विचरते हैं
सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |

सुअर-लोमड़ी-कौआ-पीपल,तुलसी-बरगद-बिल्व
अपने गुणकर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं

तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |

हक़ उनका है जग-सागर में, फेंके चाफन्दा*
जीव-निरीह फंसे जो आकर, आहें भरते हैं |

भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे
इस जल्पक* अज्ञानी के तो बोल तरसते हैं ||

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

शिखा जी ,

बिलकुल सही बात लिखी है आपने | जो माता-पिता अपना सब कुछ दांव पर लगाकर अपने बच्चों के आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं , उन्हें हमेश खुश रहते देखना चाहते हैं , बच्चों को भी उनका ध्यान रखना चाहिए |

कोई ऐसा कदम न उठायें जिससे माँ-बाप को दुःख पहुँचे |