ब्लोगिंग और ग़ालिब की शायरी [भाग दो ]
कुछ टिप्पणीकार तो साधारण पोस्ट की भी इतनी प्रशंसा कर देते हैं की ब्लोगर स्वयं यह सोचने को मजबूर हो जाता है कि ऐसा क्या लिख दिया है मैंने कि ये टिप्पणीकार इतनी तारीफ कर रहे हैं -
''दिल से तेरी निगाह जिगर में उतर गई ,
दोनों को इक अदा में रजामंद कर गयी .''
लेकिन ऐसा नहीं कि केवल प्रशंसा ही हो .अति आलोचना का भी शिकार बनना पड़ता है .ब्लोगर खुद को कोसता है कि किस मनहूस घडी में मैंने यह पोस्ट डाली थी ? मुंह-दर-मुहं हो तो मार-पिटाई तक भी बात पहुँच सकती है पर ब्लॉग-जगत की गरिमा बनायें रखने के लिए ब्लोगर आलोचनाकार को बार-बार ''जी'' लगाकर अपनी बात समझानें का प्रयास करता है .इस पर भी यदि आलोचनाकार न माने तो दिल में ये तो आता ही है -
''हर एक बात पर कहते हो तुम कि तू क्या है ;
तुम्ही कहो कि ये अंदाजे -गुफ्तगू क्या है .''
थोडा सख्त लिख दिया तो आलोचनाकार ब्लोगर को ''अशिष्ट'' की संज्ञा देने में एक मिनट नहीं लगाता. होतें रहें आप सक्रिय-ईमानदार ब्लोगर पर आलोचनाकार की टिप्पणिया आहात तो कर ही जाती है -
''होगा कोई ऐसा भी कि ''ग़ालिब ''को न जाने ;
शाइर तो वह अच्छा है पर बदनाम बहुत है .''
पर साहब जी ब्लोगिंग करते-करते ब्लोगर भी पक्का हो जाता है .दो दिन हुए नहीं इस घमासान को कि फिर एक नयी पोस्ट तैयार -
''रोने से और इश्क में बेबाक हो गए;
धोये गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए .''
अब टिपण्णी प्राप्त करनी है तो अन्य के ब्लॉग पर जाकर करनी भी होगी .जब तक ऐसी भावना मन में नहीं आती ब्लोगर का उद्धार होना मुश्किल है -
''हाँ भला कर तेरा भला होगा ;
और दरवेश की सदा क्या है .''
भूले-भटके किसी ऐसे ब्लॉग पर पहुँच जाएँ जहाँ अनुसरनकर्ताओं की संख्या सौ-दो सौ-या हज़ार हो तो मन मचल उठता है और थोडा उदास भी हो जाता है अपने अनुसरनकर्ताओं की संख्या याद कर -
''ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता .''
लेकिन चाहने से क्या होता है?ये तो अन्य ब्लोगर्स का हक़ है कि वे आपके ब्लॉग का अनुसरण करें न करें .हर ख्वाहिश पूरी हो ये जरूरी तो नहीं -
''हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले .
[....जारी ]
शिखा कौशिक
9 टिप्पणियां:
bahut sahi kaha hai aapne mirza ghalib ne to barso pahle hi kah diya tha aur aapke madhyam se yahan bhi kahlwadiya-
''''हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले .''
ब्लॉग्गिंग और शायरी का खूब रंग जमाया है..... बहुत बढ़िया :)
कोई हमें बतलाये ,के हम बतलाएं क्या ?
मेरे टिपण्णी कार -तुम मेरे पास होते हो गोया ,जब कोई दूसरा नहीं होता ।
कहतें हैं कि "ब्लोगर "का है अंदाज़े ब्यान और ,
हैं और भी सुखन -बर दुनिया में बहुत अच्छे ,
कहतें हैं कि "चिठ्ठाये "का अंदाज़े ब्यान और ."अच्छा लगा -चिठ्ठा -गीरी के संग ग़ालिब को देख कर ,..............(दस्त को देखके घर याद आया )इसकी जगह कोई दूसरी लाइन आपको लिखनी है .
वाह मस्त बहाव भावों का ||
खुशफहमी का शिकार मत हो जाना |
इतना अच्छा भी नहीं लिखा है आपने |
पढ़िये इसी लेख को ||
इससे अच्छा था पहला पार्ट ||
आप लिख सकती हैं इसी को इससे अच्छा |
* * * * * *
हे प्रभु | कैसे तीन अंको में होंगे मेरे फालोवार || अभी तो २५ भी नहीं |
कम से कम २५ टिप्पणियां लिखीं निरंतर --
पर डाक्टर ने जवाब दे दिया ||
बंद कर दिया क्लिनिक जाना और क्या --
दन्त के दर्द में इक लौंग दबाना --
और दर्द भागना --
अच्छा है --
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता .''
लीजिये इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म
गिले शिकवें यूं ना किया कीजिये ....
क्या बात है -अद्भुत! ब्लॉग-शायरी !
शिखा जी!
शायरी की दुनिया में कदम....
ये नया अन्दाज़ अच्छा लगा।
''रोने से और इश्क में बेबाक हो गए; धोये गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए .''.....blogging our shaayeri kaa khoobasoorat combination.
aap ka vichar mareleya utsah hai
thanks
ब्लौगिंग और शायरी का अनूठा संगम ...
शानदार !
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