[इन.कॉम से साभार ]
जब भी कोई हिन्दुस्तानी सच कहने की हिम्मत दिखाता है उसे सबकी आलोचना का शिकार होना पड़ता है .आखिर क्यों ? जम्मू -कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री ने २४ कैरेट शुद्ध सवाल पूछा है -क्या भारत में तब भी ऐसी ही मूक प्रतिक्रिया होती यदि j &k विधानसभा ''अफजल गुरु ''की फांसी की सजा पर दया हेतु फिर से विचार हेतु प्रस्ताव पारित करती .उनका कहना सौ फीसदी सच है .आज तमिलनाडु की सरकार ने श्री राजीव गाँधी हत्याकांड के तीन दोषियों की फांसी की सजा पर दया के आधार पर पुनर्विचार का प्रस्ताव पारित कर जिस परम्परा का बीजारोपण किया है अगर उमर अब्दुल्लाह जी इसे आगे बढ़ाते हैं तो उसमे गलत क्या है ?केवल ये न कि राजीव जी एक पार्टी विशेष के थे -इससे आगे हमारे राजनीतिज्ञ और उनके चेले कुछ सोच नहीं पाते .इसलिए उनके हत्यारों को सजा मिले या न मिले किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता पर ''अफजल गुरु ''का नाम आते ही इन सभी के खून में उबाल आ जाता है .इस मुद्दे को सियासी रंग में रंग दिया जाता है .देश की अस्मिता पर हमले का नाम देकर भावनाओं को भड़काया जाता है .यदि वे तीन तमिल हमारे पूर्व प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या करके भी दया के हक़दार हैं तो अफजल गुरु क्यों नहीं ? मेरा मानना है कि सभी हत्यारों को जितनी जल्दी हो फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए .सभी हत्यारों को सजा मिलने में जब भी देर हो हमारी प्रतिक्रिया एक समान होनी चाहिए .तभी हम कह सकते हैं -हम केवल हिन्दुस्तानी है -हिन्दू या मुसलमान नहीं .वरना उमर जी जैसा सवाल करने का हक तो हर हिन्दुस्तानी मुसलमान को है ही .
शिखा कौशिक
23 टिप्पणियां:
जब तक कलमकारों सच को सच कहने का ऐसा होसला रहेगा तब हमारे राष्ट्र की बहुरंगी एकता कायम रहेगी |आपके होसले को मेरा नमन |
bilkul sahi kah rahi hain aap .
सही कहा आपने।
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कसौटी पर अल्पना वर्मा..
इसी बहाने बन गया- एक और मील का पत्थर।
theek kaha aapne. is tarah ka bhedbhaav kyon.
After all they all have committed crime for which they deserve punishment !
heavy weight punch ji , absolutely you are right , appreciable your vision & issue .... thanks .
आपने वाकई बेबाक बात कहने का साहस दिखाया है, शाबाश
सही कहा आपने।आपके होसले को नमन |....
सही कहा आपने।
शिखा जी अभिवादन .. जय श्री कृष्ण .. कहना तो सब का यही मानना भी यही लेकिन सुनते कहाँ हैं उनके कान ..सब जगह ढोल ही पीटना पड़ेगा ?..सराहनीय प्रयास ..बेबाक
धन्यवाद
भ्रमर ५
मेरा मानना है कि सभी हत्यारों को जितनी जल्दी हो फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए .सभी हत्यारों को सजा मिलने में जब भी देर हो हमारी प्रतिक्रिया एक समान होनी चाहिए .तभी हम कह सकते हैं -हम केवल हिन्दुस्तानी है -हिन्दू या मुसलमान नहीं
shalini ji aise hi prayas to safal hokar kisi sutra ka nirman karte hain ..............aabhar is prsuti ke liye
SAHI KAHA AAPNE
अफज़ल गुरु की सज़ा मुआफी की बात करना अपने को सेक्युलर वीर की श्रेणी में रखना है .अफज़ल गुरुओं को सुरक्षा कवच मुहैया करवाना ही तो धर्म निरपेक्षता है .कई सेक्युँल्र पुत्र पुत्रियों ने ओसामा के खात्मे पर भी इस्लामिक रीतिरिवाज़ से उसे सुपुर्दे ख़ाक करने का सवाल उठाया था .ये दादुर अब अन्ना टीम और राम देव जी के खिलाफ मुखर हैं .
एक गलत प्रथा की शुरुआत हो चुकी है हिन्दुस्तान में ... इसकी निंदा होनी चहिये न की हिन्दू मुस्लिम बना बना कर किसी मुजरिम को बचाने की कोशिश ...
baat saaf hai..ya to aap fansee ki sazaa de sakte hai athva nahee...kanoon aur samaaj ki apnee jagah hoti hai aur nafrat aur jazbaton me behkar faisle nahi hote
Apne blog par fir se sajag hone ke prayaas me hoon:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
शिखा जी - यह पूछने का हक हर एक भारतीय को है - सिर्फ भारतीय मुस्लमान को ही क्यों? क्या आपको लगता है कि राजीव जी सिर्फ हिन्दुओं को प्रिय थे या सिर्फ मुसलमानों को प्रिय थे ?
यह एक गलत precedent set किया जा रहा है - जो सिर्फ एक समुदाय नहीं - हर समुदाय के लिए गलत precedent है | इस मुद्दे को कृपया धर्म से न जोड़ा जाए !!
मैं सौ प्रतिशत सहमत हूँ कि यह गलत है - चहू तरफा दृष्टी से गलत ...
किसी को कोई हक नहीं है | जो इनकी सजा माफ़ करने की वकालत कर रहे हैं , उन्हें भी फाँसी पर लटका देना चाहिये चाहे वो उम्र अब्दुल्ला हों , प्रकाश सिंह बादल हों या कोई तमिल नेता
http://premchand-sahitya.blogspot.com/
यदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |
जब हम कश्मीर को अपना मानते हैं तो वहां से उठ रही आवाजों को भी अपनी मानते हुए संवाद करने ही चाहिए.
एक उभरती युवा प्रतिभा
मुद्दे का बहुत सही विश्लेषण किया है आपने ...
शिखा जी नमस्कार,आप सही कह रही हैं कोई भी हो प्रतिक्रिया प्रक्रिया देश द्रोहियों के लिये समान होनी ही चाहिये।
शिखा जी नमस्कार,आप सही कह रही हैं कोई भी हो प्रतिक्रिया प्रक्रिया देश द्रोहियों के लिये समान होनी ही चाहिये।
यदि धर्म के नाम पर ही ऐसे सवाल पूछे जाएँगे तो ये मत भूलिए कि दूसरी तरफ से भी इतने सवाल उछाल दिए जाएँगे कि सुनने वालों के कान बहरे हो जाएँगे क्योंकि हर एक के पास अपने हिस्से के सवाल हैं.अफजल गुरू के नाम पर लोगों का खून इसलिए खौल उठता हैँ क्योंकि ये मामला ताजा ही हैं वर्ना आपको बताना चाहिए कि लोग दाऊद के नाम पर उतना क्यों नहीं भडकते जबकि पहले उसको लेकर लोगों में बहुत गुस्सा था.आम आदमी तो हर आतंकवादी को फाँसी के फंदे पर देखना चाहता हैं हाँ राजनेता जरूर अपने स्वार्थों के चलते भेदभाव करते हैं.उदाहरण के लिए उमर अब्दुल्ला जी को ही लीजिए कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर कभी गंभीर नजर नहीं आए जबकि कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम के दोषी अलगाववादी जो कभी सेना के डर से पाकिस्तान भाग गए थे उन्हें किसी सद्भावना मिशन के तहत वापस बुलाना चाहते हैं और इसके पीछे तर्क देते हैं कि इनका ह्रदय परिवर्तन हो गया हैं.अब जरा सोचिए कि कल को मुस्लिमों के प्रति विभिन्न अपराधों में जेलों मे बंद अपराधी ये कहें कि हम सुधर गए हैं और भारत सरकार उन्हें छोडने का निर्णय कर लें तो क्या उमर अब्दुल्ला(मैं आम मुसलमानों की बात नहीं कर रहा) इसे स्वीकार कर लेंगे.वैसे आपके इस सवाल का जवाब मैंने अपनी पोस्ट पर एक टिप्पणी में भी दिया हैं,आप देख सकती हैं और चाहें तो खुद भी सवाल पूछ सकती है
http://rajansingh2002.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
शिखा जी,
हो सकता हैं आपको न मिली हो अतः एक बार फिर से अपनी टिप्पणी भेज रहा हूँ, कृप्या इसे प्रकाशित करें-
यदि धर्म के नाम पर ही ऐसे सवाल पूछे जाएँगे तो ये मत भूलिए कि दूसरी तरफ से भी इतने सवाल उछाल दिए जाएँगे कि सुनने वालों के कान बहरे हो जाएँगे क्योंकि हर एक के पास अपने हिस्से के सवाल हैं.अफजल गुरू के नाम पर लोगों का खून इसलिए खौल उठता हैँ क्योंकि ये मामला ताजा ही हैं वर्ना आपको बताना चाहिए कि लोग दाऊद के नाम पर उतना क्यों नहीं भडकते जबकि पहले उसको लेकर लोगों में बहुत गुस्सा था.आम आदमी तो हर आतंकवादी को फाँसी के फंदे पर देखना चाहता हैं हाँ राजनेता जरूर अपने स्वार्थों के चलते भेदभाव करते हैं.उदाहरण के लिए उमर अब्दुल्ला जी को ही लीजिए कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर कभी गंभीर नजर नहीं आए जबकि कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम के दोषी अलगाववादी जो कभी सेना के डर से पाकिस्तान भाग गए थे उन्हें किसी सद्भावना मिशन के तहत वापस बुलाना चाहते हैं और इसके पीछे तर्क देते हैं कि इनका ह्रदय परिवर्तन हो गया हैं.अब जरा सोचिए कि कल को मुस्लिमों के प्रति विभिन्न अपराधों में जेलों मे बंद अपराधी ये कहें कि हम सुधर गए हैं और भारत सरकार उन्हें छोडने का निर्णय कर लें तो क्या उमर अब्दुल्ला(मैं आम मुसलमानों की बात नहीं कर रहा) इसे स्वीकार कर लेंगे.वैसे आपके इस सवाल का जवाब मैंने अपनी पोस्ट पर एक टिप्पणी में भी दिया हैं,आप देख सकती हैं और चाहें तो खुद भी सवाल पूछ सकती है
http://rajansingh2002.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
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