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शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

हमारी भावुकता को भुनाना बंद कीजिये !

हमारे जीवन के हर दिन पर आज बाजार की नजर है .नव वर्ष का प्रथम दिन हो या वेलेंटाइन डे ,होली हो या दीपावली ,रक्षाबंधन दशहरा हो या ईद हो या लोहड़ी-क्रिसमस सब दिन बाजार के निशाने पर.मोबाइल कम्पनियां हों या टी.वी.,कार,वाशिंग मशीन की कम्पनियां लोगों को त्यौहार के बहाने लुभाने में कसर नहीं छोडती.हद तो तब हो जाती है जब ये कम्पनियां अपने विज्ञापन कानूनों का उल्लंघन करते हुए विवाह उत्सव पर अपनी वस्तु को खरीदने का खुलेआम प्रचार करती है.देखिये-

ये  कौन नहीं जानता की मोटरसायकिल से लेकर कार तक की डिमांड वर पक्ष वधु पक्ष से करता है और इस डिमांड ने लाखों वधुओं को असमय कालका ग्रास बना डाला .एक ओर जहाँ  सुधि
वर्ग यह मांग करता रहा है कि विवाह आदि उत्सव सादगी के साथ संपन्न किये जाये वहीँ ये कम्पनियां इस पवित्र संस्कार को भी भुनाने में लगी हुई है .
                शैम्पू के विज्ञापन   देखिये - छोटी बच्चियों को बाल बढाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है .विज्ञापन में बच्ची लम्बे बाल खोलकर स्कूल जाती हुई दिखाई जाती है .ऐसे जाते है बच्चे स्कूल ?ऐसे विज्ञापन बच्चों को भ्रमित करते हैं औए माता-पिता के सिर का दर्द बन जाते हैं .
               हमारी भावनाओं का व्यावसायिक लाभ उठाने में चतुर ये कम्पनियां हर उस शख्स को अपना ब्रांड एम्बेसडर बना देती है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने क्षेत्र में 
नाम कमा लिया हो .अमिताभ बच्चन से लेकर सुशील कुमार तक -

        
एक सिर का तेल ए. सी.  से ज्यादा ठंडक देता है और एक वाशिग पाउडर कपडे को नए से भी ज्यादा चमकदार बना देता है -ऐसे विज्ञापन क्या साबित करते हैं ?ये कम्पनियां आखिर हमे मानसिक तौर पर इतना कमजोर क्यों मानती हैं ?भावुक बनाकर -बेवकूफ बनाकर --इन्हें अपना माल बेचना है चाहे इससे हमारा -हमारे समाज का कितना भी अहित हो !
                              हमे अब इनसे सजग रहना होगा .जब भी कोई विज्ञापन हमारी भावनाओं को भुनाना चाहे -हमे उसका पुरजोर विरोध कर अपना पक्ष रखना ही होगा वर्ना ऐसे विज्ञापनों के लिए तैयार हो जाइये -
                ''माँ की ममता  से मीठी है अपनी घुट्टी ;
             ले लो ये साईकिल करती गाड़ी की छुट्टी ;
             पत्नी से ज्यादा हितकारी कार हमारी ;
            इस टैबलेट से मिट जाएगी हर बीमारी ;
       विज्ञापन ऐसे सबको हैरान करेंगे ,
    विज्ञापन की दुनिया की चलो सैर करेंगे .'' 
       

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

माँ!से मत करना गद्दारी !

२१ फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा  दिवस मनाया गया  .भाषा सभी महान हैं .ब्रह्म का साक्षात् रूप हैं .मानव को प्राप्त अमूल्य वरदान हैं जिसके माध्यम से हम अपने मन के भावों को दूसरों तक प्रेषित करते हैं .हम भारतीय हैं और हमारी मातृभाषा ''हिंदी'' है किन्तु अनेक कारणों से ''अंग्रेजी ' भाषा को ''हिंदी ''की तुलना में महान साबित करने का चलन चल गया है .मेरा मानना है की दोनों की तुलना ठीक नहीं .दोनों भाषाएँ महान हैं पर चूँकि ''हिंदी'' हमारी मातृभाषा है इसलिए हमे किसी भी अन्य भाषा के समक्ष इसे नीचा दिखाने की परवर्ती पर रोक लगानी चाहिए .''अंग्रेजी''माँ जैसी हो सकती है पर माँ! नहीं इसलिए इसे ''मौसी 'की संज्ञा देते हुए यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है -
 ''दोनों भाषा ,दोनों बहनें ,
दोनों सम आदर अधिकारी ,
माँ ! हिंदी ,मौसी अंग्रेजी ,
दोनों पर मैं जाऊं वारी ,
लेकिन कितना प्यार जता ले ;
धन-वैभव-उपहार जुटा दे;
खान-पान-सम्मान दिला दे ;
हर एशो -आराम सजा दे ;
मौसी फिर भी माँ से हारी ,
माँ! हमको मौसी से प्यारी .
माँ! भरती भावों में प्राण ,
देती रसना को आराम ,
मौसी प्रज्ञा में है रहती ,
माँ! का मन में है स्थान ,
मत करना ''माँ!'' से गद्दारी ,
माँ! हमको मौसी से प्यारी .
आप बेशक अंग्रेजी में कम कीजिये ,बोलिए -पर हिंदी भाषी को नीचा दिखाने का प्रयास मत कीजिये .हो सके तो खुद भी ज्यादा से ज्यादा हिंदी बोलिए .
        ''जय हिंदी -जय हिन्दुस्तान ''

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मोबाईल मियां क़ा जलवा.

मोबाईल मियां पूरे चार्ज होकर ;सिल्क क़ा कुरता पायजामा पहन; पान चबाते हुए ,''जट -यमला-पगला -दीवाना ' की धुन पर झूमते हुए मेरे घर के सामने से निकले ही जा रहे थे कि मैंने उनको आवाज लगा दी --'मियां मोबाईल कैसे मिजाज हैं ?' तुरंत मुंह से पीक थूकते हुए बोले --''हमारे मिजाज क्या पूछते हो !हम तो हैं ही तंदुरुस्त .किसकी मजाल जो हमारे आगे बिना सिर झुकाए निकाल जाये ?हम तो कहते हैं जनाब जरा सी.बी.आई. जाँच करवा लो हर किसी की जेब में हम न हो तो हमारा नाम मोबाईल नहीं !हर घर,दफ्तर,कॉलेज ,सड़क --सब जगह हमारा ही जलवा है .कल तो मजा आ गया -पूछो क्यों ?....हमारे ही कारण एक शागिर्द ने अपने उस्ताद को धुन डाला .इसे कहते है असली मोहब्बत .सुबह;दोपहर;शाम .....और रात तक में मुझे साथ रखते हैं यानि पूजा के समय भगवान क़ा,भोजन के समय मनोरंजन क़ा शाम के समय प्रेमिका और रात के समय दिल के सबसे करीब क़ा फर्ज निभा रहा हूँ मैं .जनाब बड़े से बड़ा मंत्री हो या किसी दफ्तर क़ा चपरासी --सबके कान पर बस मैं ही मैं !मैं मेल हूँ या ....फीमेल ----इसकी खोज तो तुम ही करते रहो .............अब और सुनो -कितनी ही लड़कियां मुझ पर आई मिस कॉल से ही प्रेम रोगी हो गयी और इलाज के लिए प्रेमी के साथ घर-बार छोड़ कर फरार हो गयी .सुना है ...पंचायतें लड़कियों के साथ मेरी बढती घनिष्ठता  पर आँखे तरेर रही है ........पर जनाब कौन डरता है ?पंचायत के दौरान पञ्च-परमेश्वर की जेब में पड़ा मैं तो ठहाका लगाकर हँसता रहता हूँ .''''' मैंने मोबाईल मिया को समझाते हुए कहा ''मियां इतना इतराना अच्छा नहीं ...कहीं किसी दिन कोई उठाकर न पटक दे आपको .''' मोबाईल मियां मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले '''मेरी फ़िक्र छोड़ो जनाब ....तुम्हरी जेब में मैं पड़ा बज रहा हूँ ....जरा देखो तो कौन है ?'' मैंने अपनी जेब से मोबाईल निकाला इतने में ही मोबाईल मियां मटकते हुए आगे खिसक लिए .

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

गारंटी दीजिये

क्या रावन ने माता सीता क़ा हरण उनके परिधान देखकर किया था ?अथवा दुष्शासन ने देवी  द्रौपदी  क़ा चीर हरण उनके परिधान देखकर किया था ? या फूलन देवी के साथ अमानुषिक कुकृत्य करने वाले उसकी वेशभूषा को देखकर ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए थे ?----सभी क़ा उत्तर मेरी द्रष्टि में ''नहीं'' है फिर क्यों हमारी पंचायतें बार-बार लड़कियों की वेशभूषा  को लेकर नए-नए फरमान निकाल रही हैं ?गाँव भैंसवाल  की बत्तीस खाप ने पूर्व में भी लड़कियों के मोबाईल फोन रखने को प्रतिबंधित कर एक बहस को जन्म दे दिया था वही गुरूवार [४-२-२०११] को पंचायत ने लड़कियों के जींस-टॉप व् मिनी स्कर्ट पहनने पर पाबन्दी लगाकर एक और नयी बहस को जन्म दे दिया .पंचायत क़ा मानना है कि  लड़कियों को पाश्चात्य   सभ्यता से प्रेरित होकर ऐसी वेशभूषा नहीं पहननी   चाहिए इससे छेड़छाड़   की घटनाये बढती है .ये बात तो मै भी मानती हूँ कि ''जैसा देश वैसा भेष ' के आधार पर हमारे गाँव में जींस-टॉप पहने लडकी को एक विचित्र   जीव की भांति देखा जाता है जबकि शहरों में यह स्थिति नहीं है .इसलिए लड़कियों को स्वयं   यह निर्णय लेने दे कि उन्हें कब -कहाँ-कैसे वस्त्र धारण करने हैं? कुछ लड़कियां मात्र आधुनिक दिखने की चाह में या अपने साथ की लड़कियों से अलग दिखनें के लिए ऐसी वेशभूषा धारण करती हैं जो उनके परिवार-समाज की आँखों में चुभने लगती है .लड़कियों को इस ओर खुद ध्यान देना होगा पर ऐसे तुगलकी  फरमान निकालने वाले क्या यह गारंटी दे सकते है कि जींस- टॉप -मिनी स्कर्ट की जगह साडी -सलवार-सूट पहनने वाली लड़की के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी!