कॉंग्रेस ने गुजरात के निलंबित आई.पी.एस.अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट को मणिनगर सीट पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उतारकर अपने विरोधियों का मुहं बंद कर दिया है . गुजरात दंगों का सच सामने लाने वाले बहादुर एवं ईमानदार अधिकारी संजीव भट्ट के परिवार को जो ज्यादती झेलनी पड़ी है -उसका जवाब जनता नरेंद्र मोदी को हराकर दे सकती है .जो लोग ''वन्दे मातरम'' का उद्घोष करते हुए एवं ''राष्ट्रीय ध्वज '' लहराते हुए दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरुद्ध सीना तानकर खड़े थे और भ्रष्टाचार के लिए एकमात्र जिम्मेदार 'कॉंग्रेस 'को ठहराने की जिद पर अड़े थे क्या आज गुजरात में जाकर श्वेता के साथ खड़े हो सकेंगें ?क्या वे भ्रष्टाचार से भी ज्यादा गंभीर मुद्दे साम्प्रदायिकता के खिलाफ श्वेता के कदम से कदम मिलाकर नरेन्द्र मोदी को हराने की मुहीम में शामिल होंगें ?पिछले दस साल से गुजरात में लोकतंत्र की धज्जिया उड़ाते इस तानाशाह के खिलाफ खड़े होने का साहस करने वाली श्वेता ने 'नेता के रूप में' मोदी से अपने को कमतर आंकते हुए कहा है की -''हालाँकि मैं मानती हूँ की मेरा और मोदी का मुकाबला बराबरी का नहीं है '' लेकिन इस सन्दर्भ में ये उल्लेखनीय है की श्वेता और मोदी का मुकाबला बराबरी का हो ही नहीं सकता क्योंकि सच और झ्हूठ का कोई मुकाबला होता ही नहीं .गुजरात दंगों के मुख्य दोषी नरेंद्र मोदी को भले ही किसी अदालत द्वारा सजा न सुनाई गयी हो क्योंकि उनके आतंक के चलते एक एफ.आई.आर.तक उनके खिलाफ किसी थाने में दर्ज न हो सकी किन्तु बहादुर व् ईमानदार अधिकारी संजीव भट्ट ने उनके आतंक के आगे घुटने नहीं टेके .फिर भट्ट परिवार के सच और मोदी के झूठ का मुकाबला कैसे हो सकता है ?श्वेता जिस सच का हाथ थामकर मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी हैं उस सच का ओहदा मोदी के झूठ और षड्यंत्रों से कहीं ऊँचा है .नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी को समझ लेना चाहिए की श्वेता का उनके खिलाफ खड़ा होना ''सत्यमेव जयते ''की एक शुरुआत भर है .ये सिलसिला अब दूर तक जारी रहेगा .गुजरात के प्रत्येक नागरिक से श्वेता जैसे बहादुर -ईमानदार उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की अपील करते हुए मैं यही कहूँगी -
''आतंक के आगे घुटने मत टेको !
जिंदगी को मौत बनने से रोको !
हर हालत को सह जाना हौसला नहीं !
एक बार खिलाफत करके भी देखो !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
5 टिप्पणियां:
कॉंग्रेस पार्टी का ये कदम वास्तव में प्रशंसनीय है .श्वेता जी की जीत या हर मायने नहीं रखती ख़ुशी केवल ये है कि कोई तो है जो असत्य व् अन्याय के विरुद्ध झंडा बुलंद कर रहा है .शिखा जी सार्थक आलेख हेतु आभार
"हर हालत को सह जाना हौसला नहीं!
एक बार खिलाफत करके भी देखो!!"
क्या यह उसी संजीव भट्ट की पत्नी है जिसने नौ साल बाद जुबान खोली, झूठा हल्फ़नामा अदालत में जमा किया/करवाया।
शीर्षक गलत है यह होना चाहिए था,
श्वेता के साथ कांग्रेस का हाथ,
सपनों पर कब पहरा है फिर बिल्ली को खाब में भी छिछ्ड़े नजर आयें तो आयें .1984 के दंगे लोग भूल जाते हैं जिनके चित्र आज भी विदेशी गुरुद्वारों में लटकें हुए हैं .मोदी से पहले भी गुजरात में दंगे हुए हैं,(पहरा मोदी पर है ) उनका कहीं कोई ज़िक्र नहीं .कश्मीर के विस्थापित पंडित दिल्ली में धूल चाट रहें हैं ,खून मोदी का ज्यादा लाल है .है तो दिखेगा .चुनाव लड़ना सबका संविधानिक अधिकार है स्वेता भट्ट चुनाव में विजयी हों शुभ कामनाएं दोनों को कोंग्रेस को भी उनके बौद्धिक हिमायतियों को भी .
काँग्रे बस इस्तमाल करेगी श्वेता का ...
शायद ये बात देर बाद समझ आएगी उन्हें ...
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