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रविवार, 24 अक्तूबर 2010

masoom-musksrahat

क्या आपने भी यह महसूस किया है क़ि आजकल के बच्चों में वह मासूमियत-वह भोलापन नहीं दिखता जो पहले था. मैंने अपने निजी अनुभव में पाया क़ि जिन बच्चों को हम काफी laad करते रहे है;वे भी कई बार आंखे झुकाकर-आंखे फेरकर हमारे आगे से निकल जाते है और अगर आंख मिल भी जाये तो उनके होंठों पर मुस्कराहट तक नहीं आती.मेरी जानकारी के एक अच्छे-खासे घर के दो बच्चे[सात से दस साल क़ि आयु के] हमे बड़ी ढीठता के साथ देखते हुए निकल जाते है. अगर हम उन्हें बुलाये तो हाथ से मनाही का संकेत कर आगे बढ़ जाते है.कई बार तो यह लगता है क़ि आज के बच्चे हम से भी jyada बड़े हो गए है.हम आज भी अपने मित्रों को 'बॉय-फ्रेंड' 'गर्ल-फ्रेंड' के रूप में नहीं देखते पर आजकल के दस से बारह वर्ष के बच्चों क़ि बातों ने  मुझे चकित ही कर दिया. एक दिन मेरे घर की बाहर की सड़क पर इस आयु- वर्ग के तीन बच्चे खेल रहे थे तभी एक बच्चा कुछ दूर खड़ी अपनी क्लास क़ि sahpathhini से बात करने चला गया.इस पर एक बच्चा दूसरे बच्चे से बोला -'देख वो अपनी गर्ल फ्रेंड से बात कर रहा है.'एक अन्य घटना ने भी मुझे चकित कर दिया था.मेरे ही पड़ोस के कुछ बच्चे मेरे घर के बाहर लगी बेल को noch-nochkar कूड़ा फैला रहे थे.मैंने उन्हें danta तो वे शर्मिंदा न होकर आंख दिखाते हुए चले तो गए पर बाद में उन्होंने यह योजना बनाई की रोज कूड़ा फैलाकर जाया करेगे.यद्यपि वे मेरी सजगता के कारण सफल नहीं हो पाए.इतने छोटे बच्चों की इसी budhdhi देखकर मुझे  यह महसूस हुआ कि क्या बच्चे अब मासूम नहीं रहे?क्योंकि जब मै छोटी थी और किसी ने अपने घर के बाहर गिरे फूल उठने पर मुझे टोका था; मै घर भागकर आ गयी थी और मुझे कई दिन तक यह डर रहा था ki वे मेरे घर आकर मेरी शिकायत न करदे.आजकल के बच्चों के लिए तो बस मै यही प्राथना kar सकती हूँ कि ''हे प्रभु ! इनके होठों पर मासूम मुस्कराहट लौटा दो और उनके ह्रदय में वही कोमल भावनाए भर दो जिनके कारण बच्चे भगवान क़ा रूप कहलाते आये हैं!''

9 टिप्‍पणियां:

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

समय के साथ साथ सब कुछ परिवर्तित होता जाता है। केवल बच्चे ही नहीं बड़ों के व्यवहार और मानवीय संबंधों में भी तो अंतर आया है।

Anita ने कहा…

अब मासूमियत देखनी है तो और छोटे बच्चों में देखनी होगी, आजकल सब कुछ फास्ट फारवर्ड जो हो रहा है.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

yahan to hamari baat ho rahi hai....
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shikha didi mere blog par aapke ek vote ki zaroorat hai...plzz visit

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आप चर्चा मंत के चर्चाकार के रूप में जुड़ना चाहती है!
आपका स्वागत है!
कृपया मेरे इस मेल पर सम्पर्क करें!
roopchandrashastri@gmail.com
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अरे!
वर्ड वेरी फिकेशन तो हटा दीजिए!
टिप्पणी करने में असुविधा होती है!

swaran lata ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख बधाई सच कहा समय का असर मासूमियत पर सबसे ज्यादा ही पडा है
बच्चे समय से बहुत ज्यादा समझदार(चालाक)हो गये है
http://swaad-achala.blogspot.com/भी आप का इंतजार कर रहा है

Archana writes ने कहा…

lekh acha hai...aur aajkal k bachhe pahle se jyada smart b ho gaye hai....

Archana writes ने कहा…

aap pls apne comments se word verification hata dijiye...isse oro ko comments dene me problem nahi aayegi...shikha ji

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

समय ने सब कुछ बदल दिया है मानवीय संबंधों में बहुत अंतर आया है मासूमियत अब खोजने की चीज है आज कल का जीवन बहुत तेज है......
धन्यवाद .....

मदन शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख बधाई