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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

वाह ! क्या जज़्बा है !



''वाह क्या जज्बा है !''



[यह आलेख समर्पित है अपने संस्कारों  को भुलाकर -दिशाहीन हुए ऐसे किशोरों व् युवाओं को जो स्वयं तो समाज के लिए एक कलंक बन ही जाते हैं पर किशोरियों व् युवतियों के लिए भी भयंकर समस्या पैदा कर देते हैं .इस आलेख को मात्र पढियें  ही मत -कुछ सोचिये भी -यही मेरा अनुरोध है .]

''अबे टिंकू चल देखते हैं वहां सड़क पर इतनी भीड़ कैसे लगी है ?लगता है किसी की धुनाई चल रही .......''हाँ  मिंकू  चल देखते हैं .''......दोनों ने जाकर देखा तो पाया ये उनका दोस्त ''चिंकू '' ही  था .दोनों ने भीड़ में खड़े एक व्यक्ति से पूछा -''भाई जी इस लड़के की पिटाई क्यों की जा रही ?.....वो व्यक्ति कुछ भड़कते हुआ बोला -''मजनू बनता है साला !लड़की ट्यूशन पड़ने जा रही थी स्कूटी पर ..साले  ने इतनी जोर से अपनी बाइक से स्कूटी में टक्कर  मारी कि  लड़की सड़क पर गिर पड़ी .'' टिंकू -मिंकू अफ़सोस जाहिर करते हुए थोडा पीछे  हट लिए ..... टिंकू ने मिंकू के कान के पास जाकर धीरे से कहा -''अबे सुन मिंकू जल्दी से यहाँ से निकल लेते हैं .कल हमने भी तो चिंकू की बाइक पर पीछे बैठकर छेड़ा था इस लड़की को गाना गाकर .''.....''हाँ यार तू ठीक कह रहा है .''दोनों ऐसा सोचकर वहां से खिसक लिए .दूसरी गली में आते ही सामने से आती हुई तीन किशोरियों को देखकर उन दोनों का मन मचल उठा .टिंकू उनके पास से गुजरता हुआ  अपने बालों में स्टाइल से हाथ घुमाते  हुए  गुनगुनाने लगा -''......मेरी अदा भी आज क्या कर गयी ....''ठीक से गुनगुना भी न पाया था कि उनमे से एक लड़की ने जोरदार तमाचा उसके मुहं पर जड़ दिया और उसके बाल पकडती हुई बोली ''....जानता है यहाँ के थानेदार की बेटी हूँ मैं !''....टिंकू को पिटता देख मिंकू चुपके से वहां से निकल लिया .जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर कदम बढ़ाते हुए जब वह घर से कुछ ही दूर रह गया था उसे पड़ोस के वर्मा जी की बेटी चंपा दिखाई दी .न चाहते हुए भी उसके मुहं से ''सीटी'' निकल ही गयी .''सीटी'' पूरी निकलती उससे पहले ही पीछे से किसी ने उसकी गर्दन दबोचते हुए कहा -''रोज़-रोज़ छेड़ता है मेरी बेटी को आज सारी गर्मी निकाल देता हूँ ''....यह कहकर वर्मा जी ने उसके मुहं पर दस-एक चांटे रसीद कर दिए .चांटों के प्रहार से बौखलाया हुआ जब वह होश में आया तब सामने न तो चंपा थी और न ही वर्मा जी .सामने खड़े थे उसके लूटे-पिटे मित्र चिंकू व् टिंकू .चिंकू ने आगे बढ उसके कंधे पर हमदर्दी से हाथ रखते हुए कहा -''मंजिल पाने के लिए ऐसे जुल्मों को तो सहना ही पड़ता है .हिम्मत मत हारना .कल को मिलते है लड़कियों के स्कूल की छुट्टी के टाइम पर गोल चौराहे पर .तब तक सिकाई-विकाई  करके इस थोपडे को भी तो ठीक करना है .''यह कहकर चिंकू लंगड़ाता हुआ चल दिया .तीनो के ह्रदय में बस यही भाव था कि-''ऐसे जुल्मों से घबराना नहीं है .हमें लगे रहना है .यही तो है ''असली जज़्बा ''.
                                shikha kaushik 


13 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

ये भी पूंछ ही हैं आशिकों की |
आसानी से सीधी नहीं होने वाली |
हाँ
१२ साल में
इस बार जरुर सीधी हो जाएगी ||

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sahi mara hai aalekh ko aise vishay par.badhai.

Nirantar ने कहा…

विचारों को
उथल पुथल मचाने दो
नया करने का ज़ज्बा
बरकरार रहने दो
निरंतर अच्छा लिखते
रहो

S.N SHUKLA ने कहा…

shikha ji

BAHUT mushkil hui padhane men, itne chhote letter, kripaya type ka aakar thoda bada karen. rachna achchhi lagi.badhai

vidhya ने कहा…

बहुत ही सुन्दर

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

are font thoda bada kar leejiye to ham bhi padh len

विभूति" ने कहा…

nice...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सरहनीय व्यंग्य शिखा बधाई और शुभकामनाएं |

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सरहनीय व्यंग्य शिखा बधाई और शुभकामनाएं |

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

अरे काममें का नहीं लेख का फॉण्ट बढाइये वैसे मैंने पढ़ लिया है

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सामयिक लेख।
किशोरों और युवाओं को इस से सीख लेनी चाहिए।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

महत्वपूर्ण संदेशपरक कथात्मक आलेख लिखा है आपने.
इस मुद्दे पर सभी को गहराई से विचार करना चाहिए.