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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
इस बार सौरव हम तुम्हारे साथ नहीं...
आई.पी.एल .-४ की नीलामी में सौरव गांगुली सहित अनेक प्रतिष्ठित खिलाडियों -सनथ जयसूर्या ,चमिंडा वास,मार्टिन गुप्तिल,सीमोन केटीज़ , चमरा सिल्वा ,मार्क बाउचर आदि को कोई खरीदार नहीं मिला .सौरव ने इसे अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर ट्विट्टर पर के.के.आर. क़ा एड्रेस हटाकर अपने गुस्से क़ा इज़हार कर एक नया तूफ़ान खड़ा कर दिया. सौरव गांगुली जैसे टॉप ब्रेकेट के क्रिकेटर को कोई खरीदार न मिल पाने पर आई.पी.एल.कमिश्नर चिरायु अमीन ने कहा "क़ि टीमो क़ा मानना है क़ि पूर्व भारतीय कप्तान क़ा चार लाख डॉलर बेस मूल्य ज्यादा है .वेस्ट इन्दीस के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा और क्रिस गिल क़ा भी यही हाल रहा."मामला विशुद्ध व्यावसायिक है फिर इसे सौरव गांगुली व् उनके प्रशंसकों ने अपनी प्रतिष्ठा से क्यों जोड़ दिया?यह समझ से परे है.हम सभी जानते हैं क़ि क्रिकेट क़ा २०-२० अर्थात टनाटन संस्करण सिर्फ मनोरंजन व् पैसा बनाने क़ा खेल है फिर जब आप नीलामी के लिए बाज़ार में खड़े हो गए तो क्या प्रतिष्ठा-मान-सम्मान ?आपने खुद ही अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाई है और आई.पी.एल.टीम के मालिक पर दोष डाल दिया .कोलकाता नाईट राईडर्स के सह मालिक के नाते शाहरूख खान को सौरव गांगुली की बोली न लगाये जाने क़ा ज़िम्मेदार बना दिया गया.उनके पुतले को गांगुली के प्रशंसकों ने जूतों की माला पहनाई और उनका पुतला फूंका .भाई किसलिए?पहली बात तो आई.पी.एल.में खेलकर कोई खिलाडी देश क़ा मान तो बढ़ा नहीं रहा,बस अपनी जेबें भर रहा है फिर इनसे कैसी सहानुभूति और फिर अगर आप अच्छी क्रिकेट और क्रिकेटर के प्रशंसक हैं तो जब पिछली बार पाकिस्तान के किसी भी खिलाडी क़ा चयन नहीं हुआ था तब आप क्यों चुप रहे?मेरा मानना है की २०-२० के इस व्यावसायिक खेल में आयु निर्धारण होना चाहिए जिससे कम उम्र के अच्छे खिलाडी इसमें खेलकर नाम व् दाम कमा सकें.उम्रदराज़ खिलाडी तो प्रतिष्ठा के साथ इसे जोड़कर सारे खेल क़ा मज़ा ही किरकिरा कर देते हैं और स्पष्ट शब्दों में लिखूंगी -इस बार सौरव हम तुम्हारे साथ नहीं,क्या आप हैं?
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10 टिप्पणियां:
आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ .....यहाँ बात पूरी तरह व्यावसायिकता की है....ये खिलाडी भी तो व्यावसायिक तौर पर ही खेल रहे है....यहाँ तो देश का प्रतिनिधित्व भी नहीं करना.....तो कैसी नाराजगी...वैसे भी गांगुली अपना मूल्य कम करने को भी तैयार नहीं...ये तो दादा की दादागिरी है .....
आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ .सौरव को इस मामले में पूरी व्यावसायिकता से काम लेते हुए अपनी व अपने प्रशंसकों की नाराजगी पर नियंत्रण करना चाहिए ...
Apnea sahi likha hai, jab aap bazaar men nilaam hone ke liye khade ho gaye to fir kaisa maan samman
Khel se khel ki bhawana hi khatm hoti ja rahi hai.
-Gyanchand Marmagya
Apnea sahi likha hai, jab aap bazaar men nilaam hone ke liye khade ho gaye to fir kaisa maan samman
Khel se khel ki bhawana hi khatm hoti ja rahi hai.
-Gyanchand Marmagya
अच्छा लिखा। यह बात खासकर-
जब आप नीलामी के लिए बाज़ार में खड़े हो गए तो क्या प्रतिष्ठा-मान-सम्मान ?
आपने चिट्ठाचर्चा में अपने ब्लॉग को जोड़ने के लिये कहा तो देखने आया। अच्छा लगा। आगे की चर्चाओं में आपके ब्लॉग के लेख की चर्चा करने की कोशिश करेंगे।
लिखती रहें।
आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ| धन्यवाद|
शिखा जी, असली खिलाडी तो वही है, जो समय के साथ चले, अन्यथा स्वयं ही पीछे हटे।
---------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
ek dum sahi kaha hai aapne .... bahut achhi post ....
baat to aapki
theek
aur
steek lagti hai ... !!
जब आप नीलामी के लिए बाज़ार में खड़े हो गए तो क्या प्रतिष्ठा-मान-सम्मान ?
यह सही है...अच्छा लिखा है....
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