फ़ॉलोअर

शनिवार, 28 मई 2011

दहेज़ की आग



राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ''विवाह '' के एक संवाद ने हमारे समाज की सच्चाई को कितने गहराई के साथ कुरेदा था  यह फिल्म देखने के करीब एक-डेढ़ साल बाद तक मुझे झंझोरता है .जब फिल्म की नायिका को एक हादसे में बुरी तरह जलने  के बाद अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तब उसके ससुराल वाले उससे मुह न मोड़कर तय मुहूर्त में अस्पताल में ही शादी की व्यवस्था  करते  है यह देखकर डॉक्टर द्वारा कहे गए ये शब्द कितने मर्मस्पर्शी है कि-''हमने तो आज तक दुल्हनों को जलकर अस्पताल लाते हुए देखा है पर आज किसी लड़की को दुल्हन बनते हुए यहाँ पहली बार देख रहे हैं ''.
                   एक लड़की जब दुल्हन बनकर जाती है उसके ह्रदय में कितना डर होता है अपने भविष्य को लेकर ,कितना दुःख होता है अपने सगो से बिछड़ने का -उस पर यदि ससुराल में उसके साथ बुरा व्यवहार  किया जाये तो वो किस हद तक टूट जाती होगी यह अनुमान लगाना कठिन तो नहीं है !लेकिन हर दिन दहेज़ की आग में दुल्हनें जलाई जा रही हैं .
                    दहेज़ प्रथा को समाप्त करने का काम युवा पीढ़ी ही कर सकती है और उन्हें करना भी चाहिए .
                                                                शिखा कौशिक 

16 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"दहेज़ प्रथा को समाप्त करने का काम युवा पीढ़ी ही कर सकती है और उन्हें करना भी चाहिए" .

बिलकुल सही कहा आपने.अगर हम युवा जागरूक रहें दहेज की भीख में मिली वस्तुओं के बजाय अपनी मेहनत की कमाई से सुविधाएँ जुटाने में विश्वास रखें तो इस प्रथा को समाप्त होते देर नहीं लगेगी.दहेज न लेने की एक सार्थक जिद परिवार वालों को आपकी बात मानने को मजबूर कर सकती हैं.

सादर

सुज्ञ ने कहा…

मार्मिक कथन था वह!!

सभी के पिछे आदर्श गुणों का प्रसार जरूरी है।

एक जागरूक आलेख!!

रेखा ने कहा…

आपका सोचना बिलकुल ठीक है और इसके लिए युवाओं को ही आगे बढ़कर पहल करना होगा जो सबसे ज्यादा प्रभावी रहेगा.

Shalini kaushik ने कहा…

dahej hamare samaj ke liye kodh ke saman hai aur hame milkar hi ise door bhagana hoga kyonki iske liye ''DOTS''yuva peedhi ke lalchrahit irade hi ho sakte hain.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत संवेदनशील आलेख ....

Jyoti Mishra ने कहा…

really dowry is the most disgusting practice still going on in our society... Awareness and denial of it can only eradicate this !!

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

एक अति जागरूक आलेख!

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

यह एक बहुत अच्छा प्रयास है लोगों की जागरूकता जरूरी

आभार

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

दहेज की कुप्रथा को युवा पीढ़ी ही समाप्त कर सकती है।
सामयिक और ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

व्यक्ति ही अपनी मानसिकता में सुधार ला कर इस सामाजिक बुराई का अंत कर सकता है.कोई फ़रिश्ता नहीं आने वाला.हम सुधर गए ये तो समाज अपने आप ही सुधार जायेगा.

virendra sharma ने कहा…

प्रेरक प्रसंग आवाहन करता कुछ बदलो नया करो जड़ता तोड़ो ...

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सही कहा है आपने...इसका विरोध बहुत जरूरी है...

Sunil Kumar ने कहा…

"दहेज़ प्रथा को समाप्त करने का काम युवा पीढ़ी ही कर सकती है और उन्हें करना भी चाहिए" .
एक जागरूक आलेख!!

alka mishra ने कहा…

अर्थात अब आप भी ये अपेक्षा रखती हैं कि अस्पताल समाज में सार्थक भूमिका निभाएं.

मैं सोच रही थी कि मैं भी आलतू-फालतू सोचती हूँ ,ईलाज तो वे ठीक से कर नहीं पाते तो और काम क्या करेंगे.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और विचारोत्तेजक प्रस्तुति ...
आपने सही कहा आजके युवा को आगे आना होगा और इस कुप्रथा को समाज से समाप्त करना होगा ..

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत संवेदनशील आलेख|धन्यवाद|