पूनम आपसे सहमत नहीं मैं !
दुनिया में पाप जैसा कुछ नहीं होता। जो चाहें कीजिए, बस दूसरों के भी ऐसा ही करने के अधिकार का सम्मान जरूर कीजिए। -पूनम पांडे [१९ दिसंबर 2011 ]
ऐसा क्यों होता है कि पूनम जो भी कहती हैं मैं उससे सहमत नहीं हो पाती.हो सकता है मेरी और उनकी परवरिश में अंतर हो .मेरी सोच संकुचित हो और उनकी विराट पर ये भी लगता है कि वे जो कुछ भी लिखती हैं या करती हैं सब शोहरत पाने के लिए .आखिर वे इस सार्वभौम सत्य से कैसे इंकार कर सकती हैं कि कर्म दो प्रकार के होते हैं -पाप व् पुण्य कर्म .हम जब छोटे थे तब से ही हमें अच्छे व् बुरे में अंतर बताकर अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है .अमूमन सभी भारतीय परिवारों में ऐसी ही शिक्षा दी जाती है पर पूनम की सोच सभी से अलग है .पाप व् पुण्य के न होने पर हम जीवन के लक्ष्य कैसे निर्धारित करेंगे ?आज हम कोई गलती करते है तो उसे सुधार कर प्रभु से प्रार्थना करते है कि -हे प्रभु हमें शक्ति देना हम जीवन में पुण्य पथ पर अग्रसर हो .हम पाप के मार्ग पर न बढे .''पर यदि पाप व् पुण्य में अंतर ही नहीं तो कर्मों का विश्लेषण ही नहीं होगा .मैं तो ऐसे मत का समर्थन ही नहीं कर सकती .कर्म में निहित भावना ही उसे पाप-पुण्य में विभाजित करती है .पाप-पुण्य के विभाजन बिना सार्थक जीवन व् समाज की कल्पना करना भी असंभव है ..पूनम जी कुछ तो ऐसा भी कीजिये या लिखिए जिससे हम जैसे साधारण नागरिक भी सहमत हो सके .
शिखा कौशिक
[विचारों का चबूतरा ]
दुनिया में पाप जैसा कुछ नहीं होता। जो चाहें कीजिए, बस दूसरों के भी ऐसा ही करने के अधिकार का सम्मान जरूर कीजिए। -पूनम पांडे [१९ दिसंबर 2011 ]
ऐसा क्यों होता है कि पूनम जो भी कहती हैं मैं उससे सहमत नहीं हो पाती.हो सकता है मेरी और उनकी परवरिश में अंतर हो .मेरी सोच संकुचित हो और उनकी विराट पर ये भी लगता है कि वे जो कुछ भी लिखती हैं या करती हैं सब शोहरत पाने के लिए .आखिर वे इस सार्वभौम सत्य से कैसे इंकार कर सकती हैं कि कर्म दो प्रकार के होते हैं -पाप व् पुण्य कर्म .हम जब छोटे थे तब से ही हमें अच्छे व् बुरे में अंतर बताकर अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है .अमूमन सभी भारतीय परिवारों में ऐसी ही शिक्षा दी जाती है पर पूनम की सोच सभी से अलग है .पाप व् पुण्य के न होने पर हम जीवन के लक्ष्य कैसे निर्धारित करेंगे ?आज हम कोई गलती करते है तो उसे सुधार कर प्रभु से प्रार्थना करते है कि -हे प्रभु हमें शक्ति देना हम जीवन में पुण्य पथ पर अग्रसर हो .हम पाप के मार्ग पर न बढे .''पर यदि पाप व् पुण्य में अंतर ही नहीं तो कर्मों का विश्लेषण ही नहीं होगा .मैं तो ऐसे मत का समर्थन ही नहीं कर सकती .कर्म में निहित भावना ही उसे पाप-पुण्य में विभाजित करती है .पाप-पुण्य के विभाजन बिना सार्थक जीवन व् समाज की कल्पना करना भी असंभव है ..पूनम जी कुछ तो ऐसा भी कीजिये या लिखिए जिससे हम जैसे साधारण नागरिक भी सहमत हो सके .
शिखा कौशिक
[विचारों का चबूतरा ]
2 टिप्पणियां:
आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ ......
आपकी बात सही है,
अन्यथा सदाचार और अनाचार में अन्तर कौन करेगा, अनाचार का सम्मान करते हुए तो अनाचारयुक्त अराजकता फैल जाएगी।
यह तो ऐसा हुआ कि भ्रष्टाचार जैसा कुछ नहीं होता, आप भी करो और दूसरों के भ्रष्टाचार का आदर करो?
एक टिप्पणी भेजें