भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने पर कश्मीर में जो सियासत खेली जा रही है वो शर्मनाक है .अफज़ल को शहीद की संज्ञा दिया जाना इसी घटिया मानसिकता का प्रमाण है -
गद्दारों की फाँसी पर कैसा मातम ?
दहशतगर्दों को शहीद मत कहना तुम !
जिस धरती की गोद में खेले , जिसने पाला ,
उस पर वार करें जो बनकर निर्मम ,
दहशतगर्दों को शहीद मत कहना तुम !
जिसकी छाँव में पनपे और रहे सुरक्षित ,
काट रहे जड़ उसकी ज़ालिम ये दुश्मन ,
दहशतगर्दों को शहीद मत कहना तुम !
है शहीद जो देश पे जान लुटाता है ,
जिसके बलिदानों से महके है गुलशन ,
दहशतगर्दों को शहीद मत कहना तुम !
जयहिंद ! वन्देमातरम ! जय भारत !
शिखा कौशिक 'नूतन '
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .एक एक बात सही कही है आपने बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी , कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
इसके जैसे सूअर को कोई शहीद कैसे कह सकता है | अच्छा हुआ मार दिया इस आतंकी जंगली सूअर को | बाला टली देश के सर से |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
दहशतगर्दों को शहीद मत कहना ....अच्छी प्रस्तुति !!
कविता के भाव सत्य और झकझोर देने वाले हैं. इस मुद्दे को उठाने के लिए बधाई! अभी दो-तीन दिन पहले एक अंग्रेजी अखबार में एमनेस्टी इंटरनेश्नल की एक टिप्पणी पढ़ रहा था. उसमें भारत में फांसी की सजा पर चिंता व्यक्त की गयी थी और वीरप्पन के चार सहयोगियों की फांसी पर रोक की मांग की गयी थी. पता नहीं ये मानवाधिकार संगठन दहशतगर्दों के मानवाधिकार के लिए इतने चिंतित क्यों रहते हैं. उनकी हिंसात्मक कार्रवाइयों में निर्दोष लोग मारे जाते हैं तो इन्हें कोई चिंता नहीं होती. यानी इन्हें दानवों के मानवाधिकार की चिंता हैं मानवों के मानवाधिकार की नहीं. ऐसे लोग ही दहशतगर्दों का महिमामंडन करते हैं. इन्हें बेनकाब करने की ज़रुरत है.
bilkul sahi likha hai aap ne
एक टिप्पणी भेजें