क्यूँ बेवजह हो कर रहे 'इस्लाम' को बदनाम ?
हमको भी न करना मियां आज से सलाम !
तसलीम माँ को करना कैसे है गैर -वाजिब ?
ये सोचकर तो देखो बन्दों अरे नादानों !
मज़हब की आड़ लेकर बाँटों न वतन अपना ,
नापाक इरादों का तूफ़ान दो अब थाम !
माँ को सलाम करना है '' वन्देमातरम ''
इससे नहीं घट सकती 'अल्लाह' की कभी शान !
सिर झुकाना ये नहीं ये सिर्फ शुक्रिया ,
उस माँ का जिसने बख्शी सहूलियत तमाम !
जन्नत है जमी अपनी हिंदुस्तान की ,
क्यों इससे अदावत का ले रहे इल्ज़ाम ?
जिस गोद में खेले उसको जो दे इज्ज़त ,
अल्लाह की नज़र में बन्दा वही इक़बाल !
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .मन को छू गयी .आभार . अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
सार्थक अभिवक्ति।
अपने देश, समाज, मातृभूमि का सम्मान न करना भला कौन धर्म सही बतायेगा?
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