सुब्रमण्यम स्वामी जी बहुत योग्य व् ज्ञानी महापुरुष हैं .इनका सारा ज्ञान गाँधी परिवार को लांछित करने में ही प्रकट होता है .चर्चित होने के लिए राहुल गाँधी की अनर्गल आलोचना करने वालों की कमी नहीं है फिर यूं .पी.चुनाव परिणाम ने तो ऐसे सभी ज्ञानियों को जैसे राहुल की निंदा खुले आम करने का सुअवसर प्रदान कर दिया है .शालीनता की सीमाओं को लान्घतें हुए स्वामी ने एक बहुत ही भद्दी ट्वीट की -
स्वामी का यह ट्वीट है-' अखिलेश में और बुद्धू में क्या फर्क है? अखिलेश की उम्र 38 वर्ष है और उसके तीन बच्चे हैं ,बुद्धू की उम्र 42 है और वह अभी तक बच्चा है।'
ये बताने की जरूरत नहीं की यहाँ ''बुद्धू '' कहकर राहुल को ही निशाना बनाया गया है .स्वामी जी फिर आपको मैं मिलवाती हूँ कुछ और आपके द्वारा निर्दिष्ट ''बुद्धू'' की परिभाषा पर खरे उतरते व्यक्तियों से -
*हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे अब्दुल कलाम -अब अस्सी से ऊपर और अविवाहित हैं ...कोई संतान नहीं .
*पूर्व प्रधानमंत्री-श्री अटल बिहारी बाजपेई -अस्सी से ऊपर उम्र और अविवाहित .....एक बेटी गोद ली है .
*स्वर कोकिला -लता मंगेशकर जी -अस्सी से ऊपर उम्र ....अविवाहित ..कोई संतान नहीं .
*पूर्व मुख्य मंत्री [यूं.पी.] मायावती जी -पचास से ऊपर उम्र ..अविवाहित ...कोई संतान नहीं .
*केन्द्रीय मंत्री -कुमारी शैलजा .....अविवाहित
*प्रसिद्द अभिनेता -सलमान खान ....चालीस से ऊपर ...अविवाहित
*प्रसिद्द सीरियल निर्माता -एकता कपूर
*प्रसिद्द फिल्म निर्देशक -करण जोहर
यदि ये सब ''बुद्धू'' हैं स्वामी जी तो आप ही ज्ञानी पद को सुशोभित करे और विशेष ''अखिलेश '' की प्रशंसा करें .
शिखा कौशिक
4 टिप्पणियां:
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
bhale hi rajniti ka kshetr ho bolne ke kuchh niyam to hone hi chahiye khas taur par swami ji jaise anargal pralap karne valon par.
भाषा गत शालीनता विमर्श की पहली शर्त है लेकिन एक फलसफा और है -आप सड़क पर चले जा रहें हैं ,पीछे से आवाज़ आती है 'देखो बुद्धू 'आप पीछे मुडके देखते ही क्यों है ?आप तो बुद्ध है नहीं .लेकिन यदि आप देखतें हैं तो मतलब यह लगाया जा सकता है आप ऐसा कहलाये जाने के पात्र हैं .
बहर सूरत ,मंद मतिबालक ,कागभगोड़ा और 'मम्मीजी ' 'इस दौर के कुछ प्रतीक ज़रूर बन चलें हैं .इससे इनकार कैसे कीजिएगा ?बुद्धू माने वह जो आप कह बूझ रहीं हैं यह सब कैसे जानतें हैं .आपके पूरे वक्तव्य में एक विरोधाभास है .कलाम साहब और बाजपाई जी और विपरीत लिंगी लता जी को भी आप विमर्श में घसीट लाई.तर्केतर बात है यह .प्रजा तंत्र में नेम कालिंग का रिवाज़ है .हम तो पैसे देतें हैं फिर भिओ हमारा koi नाम ही नहीं रखता रखेगा तो बुरा नहीं मानेंगे ,कुछ दे ही रहा है ले तो नहीं रहा न .
भाषा गत शालीनता विमर्श की पहली शर्त है लेकिन एक फलसफा और है -आप सड़क पर चले जा रहें हैं ,पीछे से आवाज़ आती है 'देखो बुद्धू 'आप पीछे मुडके देखते ही क्यों है ?आप तो बुद्ध है नहीं .लेकिन यदि आप देखतें हैं तो मतलब यह लगाया जा सकता है आप ऐसा कहलाये जाने के पात्र हैं .
बहर सूरत ,मंद मतिबालक ,कागभगोड़ा और 'मम्मीजी ',राष्ट्री रो -बोट' ,राष्ट्रीय बन्दर 'इस दौर के कुछ प्रतीक ज़रूर बन चलें हैं .इससे इनकार कैसे कीजिएगा ?बुद्धू माने वह जो आप कह बूझ रहीं हैं यह सब कैसे जानतें हैं ???.आपके पूरे वक्तव्य में एक विरोधाभास है .कलाम साहब और बाजपाई जी और विपरीत लिंगी लता जी को भी आप विमर्श में घसीट लाई.तर्केतर बात है यह .प्रजा तंत्र में नेम कालिंग का रिवाज़ है .हम तो पैसे देतें हैं फिर भी हमारा कोई नाम ही नहीं रखता, रखेगा तो बुरा नहीं मानेंगे ,कुछ दे ही रहा है ले तो नहीं रहा न .
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