''विद्रोही सीता की जय'' लिख परतें इतिहास की खोलूँगी !
त्रेता में राम दरबार सजा ; थी आज परीक्षा सीता की ,
तुम करो प्रमाणित निज शुचिता थी राजाज्ञा रघुवर की ,
वाल्मीकि संग खड़ी सिया के मुख पर क्षोभ के भाव दिखे ,
सभा उपस्थित जन जन संग श्री राम लखें ज्यों चित्रलिखे .
नारी का यूं अपमान न हो इसलिए त्यागा रानीपद ;
मैने छोड़ा साकेत यूं ही ना घटे कभी नारी का कद ,
नारी का मान बढ़ाने को सब मौन मैं अपने तोडूंगी ,
नारी जाति सम्मान हित ....
अग्नि परीक्षा शस्त्र लगा पुरुषों के हाथ मेरे कारण ;
भावुकता में ये भूल हुई पाप हुआ मुझसे दारुण ,
मत झुकना तुम अन्याय समक्ष सन्देश सभी को ये दूँगी .
नारी जाति सम्मान हित ....
इस महाभयंकर भूल की मैं दूँगी खुद को अब यही सज़ा ;
ये भूतल फटे अभी इस क्षण जाऊं इसमें अविलम्ब समा ,
अपराध किया जो मैंने ही दंड मैं उसका झेलूंगी ,
नारी जाति सम्मान हित .....
नारी धीरज को मत परखो सीता ने ये सन्देश दिया ;
सन्देश यही एक देने को निज प्राणों का उत्सर्ग किया ,
'विद्रोही सीता की जय ''लिख परतें इतिहास की खोलूँगी
जय सीता माँ की बोलूंगी ..जय सीता माँ की बोलूंगी !
शिखा कौशिक 'नूतन' [नूतन रामायण ]